
कविता शीर्षक योग की महिमा
21 जून को पूरे विश्व में योग दिवस मनाते हैं।
भारत के ऋषि मुनियों का
दुनिया में मान बढ़ाते हैं।।
गीता,पतंजलि,उपनिषद में योग क्रिया का वर्णन है।
योग ,कर्म योग, हठ योग
सबके लिए एक दर्पण है।।
श्वसन और शरीर का एक डोर का नाता है।
हड्डी बने लचीली,यही तो योग कहलाता है।।
रोग,दोष सब दूर करे,निरोगी सदा अपनी काया हो।
मन अपने वश में रहे,हावी न जीवन में माया हो।।
प्रातःकाल सब नित्य क्रिया से
जब खाली हो जाते हैं।
खुली जगह,स्वच्छ हवा में
योग का कर्म अपनाते हैं।।
श्वसन क्रिया पर नियंत्रण भांति भांति से करते हैं।
अपनी काया बिल्कुल निर्मल
शुद्ध कर्म सब धरते हैं।।
आसन और प्राणायाम इसकी दो भुजाएं हैं।
धीरे-धीरे पूरी दुनिया अब इसको अपनाए है।।
बच्चे,बूढ़े या हो जवान सब इसको कर सकते हैं।
कर प्रयास जीवन में अपने स्वास्थ्य लाभ ले सकते हैं।।
इस मतलबी दुनिया में हर चीज का पैसा लगता है।
है महान योग जिससे हमारा प्रकृति से नाता जुड़ता है।।
हम महान हैं,पूरी दुनिया में सभ्यता हमारी निराली है।
जीवन अपना पूर्ण है इसमें नहीं कही कुछ खाली है।।
स्वरचित एवं मौलिक रचना-
विनोद कुमार वर्मा
शिक्षक,कवि गोरखपुर, उत्तर प्रदेश,भारत।