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आखिरी फैसला

आपके जीवन का कौन सा फैसला आखरी फैसला होगा, न तो आपको पता होता है और न आपके जानने वालों को। ये बात अजीब सी आप को लगी होगी। क्योंकि हम दुनिया में इतना अपनत्व फैला चुके होते हैं कि कभी उनके लगाव में फैसला करते हैं और कभी दूर जाने का बहाना ढूंढते रहते हैं। और कभी अपनी चलती हुई जीवन को और बेहतर कैसे करे इसके बारे में उत्सुक रहते है। तथा परिवार हमारा कैसे खुशहाल रहे ऐसा तरीका हम ढूंढते रहते हैं। यही फैसला होता है। जो जीवन के लिए निरंतर चलने वाली गाड़ी है जिसमें बराबर ईंधन की जरुरत पड़ती रहती है। फैसले बड़े और छोटे कई तरह के होते हैं जो फैसला परिवार, समाज, देश और दुनिया के हित में लिए जाते हैं। वो फैसले आगे चल कर उसके क्या परिणाम निकलेंगे ये समय तय करता है। हर इंसान जिस रूप में अपने जिन्दगी के ढांचे को जिस तरीके से ढालता है वैसे ही अपने जीवन में फैसल लेता है। लेकिन कोई भी फैसला आपके जीवन की आखिरी फैसला कैसे हो जाता है ये समझ से परे है। लेकिन हर इंसान का कभी न कभी लिया गया फैसला आखिरी जरुर होता हैं।
इसलिए आप लोगो को एक कहानी सुनते हैं इसके गहराइयों को समझिएगा और अनुभव कीजिएगा। कि ये फैसला था कि फैसला उपर वाले ने कर दिया।
एक घना जंगल था , दूर दूर तक वीरान हरे भरे पेड़ और झाड़ियां इसकी खूबसुरती का एहसास करा रही थी। इसी के आस पास एक बड़ा राज्य था इस राज्य का राजा बहुत प्रतापी और बहादुर था उसने अपने जीवन में कभी हार नहीं मानी, उसने अपने पराक्रम, दान और धार्मिक अनुष्ठान से पूरे प्रजा का दिल जीत लिया था। और जो भी फैसला करता सब लोग उसे स्वीकार करते थे। उसने अपने जीवन में बहुत सारे फैसले किए लेकिन किसी ने उसके फैसले को अस्वीकार नहीं किया । जब भी अपने इच्छाओं को वह अपने दरबार में रखता, सामने से आवाज आती "जी महाराज"। कुछ समय बीतता गया उसकी आवाज "जी महाराज "में तब्दील होती गयी । लेकिन क्या पता था कि एक दिन "जी महाराज" शब्द उसको इतना चुभ जाएगा कि हमेशा व्यस्त और दानी कहलाने वाला राजा अपना सब कुछ छोड़ कर कुछ समय जंगल में व्यतित करने का फैसला कर लेगा। अगले दिन वैसे ही दरबार लगी और राजा ने हर दिन के तरह अपना विचार दरबार में रखा कि मैं कुछ समय जंगल में व्यतित करना चाहता हूं। सामने से फिर आवाज आई "जी महाराज" । दूसरे दिन राजा अपने राज्य पाठ के काम को निपटा कर जंगल की तरफ निकल गया। जब जंगल का सीमा शुरु हुआ तो राजा ने अपने सिपाहियों से कहा आप लोग यही मेरा इंतजार कीजिए मैं अकेले ही जंगल में जाऊंगा। इस तरह से रोज राजा जंगल में जाते और घंटों समय पैदल चलकर व्यतित करने के बाद वापस फिर राज्य में आ जाते। धीरे धीरे समय बीतता गया और राजा को सुकून के साथ एक अजीब सी शांति मिलने लगी। इसी तरह से हर दिन के तरह राजा फिर जंगल के तरफ अपना काम निपटा कर प्रस्थान कर गये । जंगल का सीमा शुरू होते ही राजा अकेले ही जंगल में पैदल चल पड़े। और जब राजा चलते चलते कुछ दूर निकल गये। तब उनकी निगाहे सामने की तरफ पड़ी तो देखा की एक साधु बहुत ही उत्सुकता से मेरे तरफ चला आ रहा है। कुछ ही समय के बाद वह साधु राजा के बहुत करीब आ गया।
राजा ने उस साधु को देखा और मन ही मन में विचार करने लगा कि ये साधु महात्मा अगर मुझसे कुछ मांग दिए तो मैं इनको क्या दूंगा क्योंकि की इस समय मेरे शरीर पर हल्का कपड़ा की सिवा कुछ भी नहीं है। ये सोच कर राजा सहम गये । उधर साधु महात्मा जो हफ्तों से कुछ अन्य जल ग्रहण नहीं किए थे वह राजा से कुछ कहना तो चाहते थे लेकिन कुछ कह नहीं पाएं । साधु महात्मा ने राजा से कहा हे राजन आप मेरा प्रणाम स्वीकार करें। राजा ने कहा हे महात्म आपसे बहुत संयोग से मिलन हुआ है और आप हमसे कुछ मांगना चाहते थे लेकिन आप बोल नहीं पाए। तब साधु महात्मा ने कहा हे राजन मैं तो आपसे मांगना चाहता था क्योंकि मैं एक हफ्ते से कुछ खाया नहीं हूं लेकिन मैने देखा की जिस व्यक्ति के पास इस समय शरीर पर साधारण वस्त्र और पैर में चरण पादुका तक नहीं है। वह इस समय मेरा भूख कैसे मिटा देगा। इस लिए हे राजन कही आप का मान, सम्मान और स्वाभिमान पर कोई ठेस न पहुंचे इसीलिए मैं अति भूखा होते हुए भी आज से भिक्षा नहीं मांग सका। राजा कुछ समय शान्त होकर साधुके तरफ अपने भरी हुई आंखों से देखने लगे। तभी साधु महात्मा ने राजा से कहा हे राजन कभी कभी इंसान खुद फैसला नहीं कर पाता और तब भगवान फैसला सुना देते हैं। और ऊपर वाले का फैसला यही था कि न मेरे सम्मान के लिए आप कुछ बोले और न आपके सम्मान के लिए मै कुछ मांगू। इस तरह से सबका सम्मान अपने अपने जगह सुरक्षित रहा जायेगा। तब राजा ने अपनी जंगल में समय बिताने का कारण साधु महात्मा को बताया। की हे महात्मा जब भी मैं अपनी बात दरबार में रखता हूं वहां से हमेशा "जी महाराज" कह कर मेरा समर्थन कर दिया जाता है। तब महात्मा ने कहा हे राजन आपकी प्रजा का अटूट प्यार इसमें प्रदर्शित होता है और आपकी प्रजा आप पर बहुत विश्वास करती है। ये आप को देखना है कि आप का फैसला कभी किसी भी नागरिक के मान, सम्मान और स्वाभिमान को ठेस न पहुंचता हो। इसलिए कोई भी फैसला लेते समय और उसको आखिरी रूप देने से पहले उस क्षेत्र के बुद्धजीवियों से जरूर विचार विमर्श कर ले, यही राज्यधर्म है।
कहानी का सार है कि हर इंसान को हर किसी के मान सम्मान और स्वाभिमान का रक्षा करना चाहिए और फैसले को आखिरी रूप देने से पहले बार बार विचार करना चाहिए और नहीं समझ में आयें तो अपने शुभचिंतक से जरूर विचार विमर्श कर लेना चाहिए।
धन्यवाद ❤️ 🌹 🙏




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