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उर्दू के महानतम विद्वानों में से एक, सीएम नईम का निधन

चौधरी मोहम्मद नईम जो कि सी.एम. नईम के नाम से जाने जाते रहे, उर्दू भाषा और साहित्य के एक ऐसे विद्वान थे जो कि लम्बे समय से अमेरीका में रहने के बावजूद न केवल अपने मूल शहर बाराबंकी से जुडे रहे अपितु अंतिम समय तक यहाँ के लोगो के सम्पर्क में बने रहे। वे शिकागो विश्वविद्यालय में एमेरिटस प्रोफेसर थे। प्रोफेसर नईम दो अकादमिक पत्रिकाओं के संस्थापक संपादक, एक प्रमुख उर्दू पाठ्यपुस्तक के लेखक और मीर तक़ी मीर की आत्मकथा "ज़िक्र-ए-मीर" सहित विभिन्न उर्दू और हिंदी कृतियों के अनुवादक रहे। उनकी प्रकाशित कृतियों में "उर्दू क्राइम फिक्शन, 1890-1950: एन इनफ़ॉर्मल हिस्ट्री" और "ए मोस्ट नोबल लाइफ" शामिल हैं। लेकिन नईम की विरासत उनकी भाषाई उत्कृष्टता से कहीं आगे तक फैली हुई थी। उनका साहसिक रुख तब स्पष्ट हुआ जब उन्होंने नदवतुल उलेमा के अली मिया को चुनौती दी, जो अरब जगत में चर्च निर्माण का विरोध कर रहे थे। नईम ने कथित तौर पर कहा था कि अगर आप इटली में वेटिकन के पास एक मस्जिद के लिए तर्क दे सकते हैं, तो अरब में ईसाइयों को चर्च से क्यों वंचित किया जाए।
नईम का जन्म बाराबंकी में हुआ था। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय , लखनऊ , डेक्कन कॉलेज, पूना और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले से शिक्षा प्राप्त की। 1961 में, वे शिकागो विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई भाषा और सभ्यता विभाग के संकाय में शामिल हुए , और 1985 से 1991 तक इसके अध्यक्ष रहे। वे 2001 में सेवानिवृत्त हुए। वे 2009 में भारतीय उन्नत अध्ययन संस्थान, शिमला में राष्ट्रीय फेलो और 2003 में जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली में विजिटिंग प्रोफेसर रहे।

प्रोफेसर नईम के जाने से उर्दू साहित्य में एक शून्य पैदा हो गया है जिसकी भरपायी कदापि सम्भव नही है

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