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अपने घर की माली हालत सुधारने के लिए जब कोई लड़का अपने घर गांव से दूर परदेश कमाने जाता है, तब वहां किसी भी छोटे से छोटे काम के लिए दर दर अमीरों के यहां फरियाद करते भटकता है, साहब एक नौकरी मुझको देदो मैं गांव से आया हूं

जब कोई लड़का घर से दूर परदेस कमाने जाता है

घर का छोटा सा सपना—रसोई की खुशबू, माँ की पुकार, पिताजी की हिदायतें, बहनों की हँसी—सब छोड़कर जब कोई लड़का घर से बहुत दूर परदेस कमाने जाता है, तो वो सिर्फ नए नोट कमाने नहीं, बल्कि अपने परिवार की टूटी उम्मीदें फिर से जोड़ने निकलता है।

ऐसा नहीं है कि उसके अंदर डर नहीं होता। हर रात जब वो किसी अजनबी शहर की छत के नीचे करवटें बदलता है, तो आँखों के कोनों में देर तक जागती माँ का चेहरा, पिता की झुकी हुई कमर, या बहन की डोली का सपना घूमता रहता है।

वो अपने हिस्से की खुशियाँ, अपने गाँव की ठंडी हवा और दोस्तों की शरारतें गिरवी रख आता है सिर्फ़ इसलिए, ताकि घर में दाल में थोड़ा घी आ सके, कच्ची दीवारों की जगह पक्की छत बन सके, और बहन की विदाई धूमधाम से हो सके।

परदेस में अक्सर वह भीड़ में भी अकेला रह जाता है। शाम को थकीं आंखों और पसीने से भीगे जिस्म के साथ जब कॉल करता है, तो सिर्फ़ यही पूछता है—*“माँ, सब सही तो है ना?”*
अपनी फटी जेब, दर्द भरी हथेली और पैरों में पड़े छाले कभी घर वालों से नहीं बताता।
क्योंकि उसके लिए परिवार की हँसी ही सबसे बड़ी कमाई है।

बहुत लोग कहते हैं—वो खूब पैसे कमा रहा है, बड़ा बन गया है! मगर क्या सच में?

असल में, वो अपनी माँ के लिए दवाई, पिता के लिए इज्ज़त, बहन के लिए गहने, और पूरे परिवार के लिए सपनों की भरपाई कर रहा होता है…
और खुद, भीतर कहीं, सिर्फ़ लौटने की आस और अपनों की आवाज़ों में खोया रहता है।

कभी वक्त मिले, तो ऐसे बेटे को एक बार गले जरूर लगा लेना…
क्योंकि उसका हर कतरा अपने घर के लिए ही बहता है।

तब सिर्फ उस बन्दे की फरियाद में जो दर्द झलकता है उसे चंद पंक्तियों में बयान करती यह मार्मिक पंक्तियां-

साहब !
एक नौकरी मुझको दे दो गाँवो से मैं आया हूँ ,
बाबू जी के कर्ज मिटाने मैं कर्जे लेकर आया हूँ I
माँ का आँचल भीगा होगा अब भी मेरी यादों में ,
बहनों के हाथ उठे होंगे केवल मेरी फरियादों में I
बाबू जी कुछ बिना बताये छुप छुप कर रोते होंगे ,
पीड़ाओं से भरे हुये वो कहाँ रात में सोते होंगे II
देख के पीड़ा माँ बाबू की नंगे पांवो से मैं आया हूँ ,
साहब !
एक नौकरी मुझको दे दो गाँवो से मैं आया हूँ I

सुबह- सुबह ही पन्नालाल ब्याज मांगने आये होंगे I
सब दे दूँगा मैं जल्दी से बाबू जी यही बताये होंगे I
लेकिन वो तो आँगन में फिर भी अकड़ रहा होगा ,
और निर्दयी बनकर के वह गर्दन पकड़ रहा होगा I
इसलिये नदी की तीव्र धारा में नावों से मैं आया हूँ I
साहब !
एक नौकरी मुझको दे दो गाँवो से मैं आया हूँ I

आपके पालतु कुत्तों को मैं सुबह -शाम टहला दूँगा ,
और आपके उठने से पहले ही उसको नहला दूँगा I
घर के सारे साफ -सफाई कर लूँगा मैं हँसते-हँसते ,
जो दे देंगे वह धर लूँगा साहब मैं हँसते -हँसते I
कर्ज ,भुखमरी और निराशा के घावों को मैं लाया हूँ ,
साहब !
एक नौकरी मुझको दे दो गाँवो से मैं आया हूँ II

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