
अल्फा और जेन ज़ी: क्या यह सबसे मूर्ख पीढ़ी है?
एक विचारात्मक लेख — डिजिटल निर्भरता और सोचने की गिरती क्षमता पर चिंता
आज की दुनिया में एक 10 साल का बच्चा iPad को बड़ों से बेहतर चला सकता है, लेकिन बिना कैलकुलेटर के साधारण गणित करने में संघर्ष करता है। ऐसे में सवाल उठता है — क्या Gen Z और Gen Alpha सच में सबसे होशियार पीढ़ी हैं या सिर्फ सबसे ज़्यादा भटकी हुई?
Gen Z (करीब 1997 से 2012 तक जन्मी पीढ़ी) और Gen Alpha (2013 के बाद जन्मी पीढ़ी) ने तकनीक के बीच जन्म लिया है। स्मार्टफोन, इंटरनेट, और AI इनके जीवन का हिस्सा हैं। ये डिजिटल दुनिया के स्वाभाविक निवासी हैं। लेकिन इस जानकारी की भरमार के बावजूद, सोचने, विश्लेषण करने और निर्णय लेने की क्षमता में गिरावट साफ़ देखी जा रही है।
गहराई से सोचने की आदत कहाँ गई?
TikTok और Instagram Reels की दुनिया में धैर्य और ध्यान की उम्र ख़त्म होती दिख रही है। शोधों के अनुसार, Gen Z की औसत ध्यान अवधि सिर्फ 8 सेकंड रह गई है। Gen Alpha, जो और भी ज्यादा स्क्रीन के बीच पले-बढ़े हैं, उनके लिए स्थिति और भी चिंताजनक हो सकती है।
बहस की जगह मीम्स ने ले ली है, और सोचने की जगह अब एल्गोरिद्म ने ले ली है। लोग अब सवाल पूछने से ज़्यादा स्क्रीन पर स्क्रॉल करने में लगे रहते हैं।
स्मार्ट तकनीक, लेकिन कमजोर दिमाग?
आज बच्चे Alexa या Google से सीधे होमवर्क के उत्तर पूछते हैं। ये सुविधाजनक है, लेकिन खुद सोचने और समाधान निकालने की आदत को खत्म कर देता है। टेक्नोलॉजी एक औज़ार है, लेकिन अब ये 'सहारा' बनती जा रही है।
शिक्षकों और नौकरी देने वालों की शिकायत है कि नई पीढ़ी को संवाद, समस्या समाधान और वास्तविक दबाव को संभालने में परेशानी होती है।
शिक्षा प्रणाली बदल रही है, लेकिन क्या असरदार है?
आज की शिक्षा डिजिटल हो रही है — स्मार्ट क्लास, ऑनलाइन असाइनमेंट, प्रेज़ेंटेशन — लेकिन सवाल ये है कि क्या हम सोचने वाले इंसान तैयार कर रहे हैं या सिर्फ स्क्रीन के गुलाम?
बच्चे आज वीडियो एडिट कर सकते हैं, ऐप बना सकते हैं, लेकिन कई बार उन्हें ईमेल लिखना, किसी से सामने बात करना, या सामान्य व्यवहारिक ज्ञान की भी कमी महसूस होती है।
लेकिन सभी को एक जैसे मत आंकिए
ये कहना गलत होगा कि पूरी पीढ़ी ही 'मूर्ख' है। बहुत से युवा रचनात्मक, संवेदनशील और जागरूक हैं। वे मानसिक स्वास्थ्य, समानता, और पर्यावरण जैसे मुद्दों को लेकर सजग हैं। लेकिन फिर भी, तकनीकी ज्ञान और व्यवहारिक बुद्धिमत्ता के बीच का अंतर बढ़ता जा रहा है।
❓ तो क्या ये सच में 'मूर्ख' पीढ़ी है?
ये इस बात पर निर्भर करता है कि आप 'बुद्धिमत्ता' को कैसे परिभाषित करते हैं। अगर बुद्धिमत्ता का मतलब है रटकर उत्तर देना, तो शायद ये पीछे हैं। लेकिन अगर मतलब है नयी चीज़ों को जल्दी अपनाना, तो ये आगे हैं।
लेकिन याद रखिए — भावनात्मक बुद्धिमत्ता, ज़मीनी समझ और तर्कशील सोच भी जरूरी है, जो शायद स्मार्टफोन नहीं सिखा सकता।
निष्कर्ष:
तकनीक तेज़ी से आगे बढ़ रही है — लेकिन अगर सोचने, समझने और सवाल करने की क्षमता पीछे छूट गई, तो हम एक ऐसी पीढ़ी तैयार कर रहे हैं जो तकनीकी रूप से होशियार लेकिन मानसिक रूप से खोखली हो सकती है।
शायद ये पीढ़ी मूर्ख नहीं है — बल्कि हमने इन्हें सोचने सिखाना बंद कर दिया है, क्योंकि अब दुनिया उनके लिए सोचती है।
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