
मैं जमीन का कानूनी मालिक कब और कैसे बना
किसान को जमीन का मालिकाना हक किसने दिया या किसने दिलाया किसकी भूमिका रही मै खास तौर से हरियाणा जिला रोहतक गोहाना तहसील की बात करूंगा।
सबसे पहले रिकॉर्ड और ज्ञात कर प्रणाली #मौर्य काल में 300 BCE में उपज आधारित कर सिद्धांत पर लागू हुई थी।जिसमें जमीन जोतने वाला किसान जमीन का मालिक था किंतु जमीन लिखित रूप से उसकी नहीं थी। जितना इलाका तत्कालीन राजा ने जीता और कब्जे में लिया उतनी जमीन राज्य की थी उसमें जोत के हिसाब से कर लागू किया गया था। जो जमींदार, टैक्स कलेक्टर ऑफिसर जो उस दौर और उसके बाद के दौर में विभिन्न नामों से जाने गए जोत करने वाले किसान से टैक्स इकट्ठा कर राज्य को सौंपते थे।
इस व्यवस्था को #अलाउद्दीन_खिलजी ने सुधारा और बीच के टैक्स कलेक्टर्स को हटाकर मंडी व्यवस्था शुरू की जिसमें उपज का सीधा 50% हिस्सा सीधा राज्य के खजाने में किसान से प्राप्त करके सीधा राज्य के अधीन टैक्स कलेक्टर द्वारा जमा किया जाने लगा। इसके अलावा गैर मुस्लिमों पर जजिया और मुस्लिमों पर ज़क़ात और सौदा कर लगाया। इस व्यवस्था में किसान की उपज, दलालों और व्यापारियों की आय को दर्ज किया गया।
यह व्यवस्था थोड़े बहुत बदलाव के साथ आगे ऐसे ही चली अकबर के समय तक। #अकबर ने इस व्यवस्था में व्यापक सुधार किया अकबर ने व्यवस्था में जमीन का नाप कराया, गांव के हिसाब से जमीन बांटी, पट्टे, फरमान और कबूलियत के दस्तावेज किसानों के नाम जारी हुए। 10 साल की उपज का औसत लेकर कर निर्धारित किया गया। जमीनें राज्य के नाम ही रही जो कर वसूली के लिए अलग अलग ओहदेदारों को आवंटित की जाती रही।
1793 में #ईस्ट_इंडिया_कंपनी ने बड़े पैमाने पर भूमि की पैमाईश की, 1822 से 1855 के बीच महलवारी व्यवस्था रिकॉर्ड में लागू की गई दर्ज की गई। किसानों के नाम जमीन के टुकड़े लिखे जाने लगे, लेकिन जमीन अब भी किसान की नहीं थी। हालांकि ख़ेवट, खतौनी, जमाबंदी रिकॉर्ड होने लगी। 1850 से 1860 के बीच भूमि का नक्शा, रजिस्टर, खतौनी, खेवट सब बनाए गए। पहली बार आधिकारिक तौर पर जोत करने वाले किसानों को पुश्तैनी जोत का अधिकार कानूनी रूप से मिला जो आगे चलकर मालिकाना हक में तब्दील हुआ।
1870 और 1890 के बीच लैंड रेवेन्यू सेटलमेंट एक्ट आए। 1881 में #पंजाब_लैंडये_रेवेन्यू_एक्ट आया जिसमें हरियाणा में किसानों के नाम कानूनी तौर पर जमीन के मालिकाना हक रिकॉर्ड हुए। यही रिकॉर्ड आज के ख़ेवट, खतौनी, इंतिक़ाल का आधार बने।
फिर आया चौधरी #छोटूराम का दौर जिसमें बतौर रेवेन्यू मिनिस्टर उनके द्वारा तीन महत्वपूर्ण कानून लाए गए जिसमें पहला Punjab Relief of Indebtedness Act, 1934 जिसमें किसानों को साहूकारों के कर्ज़ से राहत दूसरा Punjab Debtors Protection Act, 1936 जिसमें किसान की ज़मीन नीलाम करना कठिन बना दिया गया और तीसरा Punjab Agricultural Produce Markets Act, 1939 जिसमें अनाज मंडी और किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसी व्यवस्था की शुरुआत हुई।
फिर आया चौधरी #देवीलाल का दौर जब उन्होंने किसानों को खसरा नंबर और नक्शा उपलब्ध करवाने की विधि को सरल बनाया। रेवेन्यू संबंधित शिकायतों के लिए रेवेन्यू लोक अदालत शुरू की। गांव के भूमि रिकॉर्ड की कॉपी हर तहसील और पंचायत कार्यालय में रखने का प्रावधान तथा बिना भुगतान के प्रतिलिप उपलब्ध करवाने की योजना शुरू की। यही योजना 1990 में "हरियाणा भूमि सूचना प्रणाली (HALRIS)” के रूप में विकसित हुई। उन्होंने लागत-आधारित भू-अधिकार' या बटाईदारी प्रथा को समाप्त करवाया। जिससे जमींदारों या साहूकारों के पास दर्ज रिकॉर्ड की ज़मीनों को किसानों के पक्ष में म्यूटेट (दाखिल-खारिज) करवाया गया। खारिज– दाखिल प्रक्रिया जो 6 महीने से अधिक का समय लेती थी उसे 30 दिन तक सीमित किया। ट्रैक्टर पर लगने वाला लग्जरी टैक्स खत्म करवाया।
इस तरह से ब्रिटिश काल से जमीन के कानूनी मालिक बने किसान आगे चलकर कर्ज मुक्त भी हुए।