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हर बारिश में अपनी किस्मत से हार मानने को मजबूर हैं बस्की सुरसा सहित कई गांवों के 10000 ग्रामीण

मांडर प्रखंड के सुरसा पंचायत में बसकी और मसमानो, नदी के किनारे बसे दो गाँव, जिनकी कहानी सुनकर दिल दहल जाता है। करीब 10,000 लोग, जिनका जीवन एक जर्जर, 40 साल पुराने पुल पर टिका है, हर बारिश में अपनी किस्मत से हार मानने को मजबूर हैं। यह पुल, जो इन गाँवों को मुडमा के मुख्य मार्ग से जोड़ता है, अब इनके लिए एक सजा बन चुका है। संकीर्ण, टूटा-फूटा, और इतना नीचा कि हल्की बारिश में भी नदी का पानी इसके ऊपर से बहने लगता है। और जब ऐसा होता है, गाँव का हर सपना, हर जरूरत, हर उम्मीद पानी में डूब जाती है। कल्पना कीजिए, एक माँ की आँखों में वो बेबसी, जब उसका बच्चा स्कूल जाने के लिए तैयार है, किताबें बस्ते में, सपने आँखों में, लेकिन नदी का पानी पुल को लील चुका है। वह बच्चा घर की चौखट पर बैठकर आंसुओं के साथ बारिश रुकने की प्रार्थना करता है। उसकी पढ़ाई, उसका भविष्य, सब कुछ उस एक पुल की दया पर टिका है। दूसरी तरफ, एक मजदूर, जिसके कंधों पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी है, शहर में काम की तलाश में नहीं जा पाता। उसकी कमाई रुकती है, और घर में चूल्हा ठंडा पड़ जाता है। रोटी के लिए तरसते बच्चों की भूखी नजरें उसकी आत्मा को चीर देती हैं।
फिर हैं वो किसान, जिनके खेतों में उगी सब्जियाँ, जिन्हें उन्होंने रात-दिन मेहनत कर, पसीना बहाकर उगाया, बाजार तक नहीं पहुँच पातीं। बारिश में फसल खेत में सड़ती है, और उनके सपने मिट्टी में मिल जाते हैं। एक किसान, जिसने कर्ज लेकर बीज बोया था, अब कर्ज के बोझ तले दबता चला जाता है। उसकी आँखों में हताशा है, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं।
यह गाँव नदी से घिरे हैं, लेकिन यह नदी अब इनके लिए जीवनदायिनी नहीं, बल्कि एक दीवार बन चुकी है। आपातकाल में हालात और भयावह हो जाते हैं। एक गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाना हो, या किसी बीमार को दवा की जरूरत हो, यह जर्जर पुल उनकी जिंदगी और मौत के बीच खड़ा हो जाता है। कितने ही परिवारों ने अपनों को खोया है, सिर्फ इसलिए कि समय पर मदद नहीं पहुँच सकी।
इन गाँवों में हर बारिश के साथ डर का माहौल बन जाता है। बच्चे, बूढ़े, जवान, सभी की साँसें उस नदी के पानी के साथ थम सी जाती हैं। यह सिर्फ एक पुल की कहानी नहीं है; यह उन 10,000 लोगों की जिंदगी का दर्द है, जिनकी आवाज़ सालों से अनसुनी रही है। यह उन बच्चों की अधूरी पढ़ाई, उन मजदूरों की खाली जेब, उन किसानों की बर्बाद फसल, और उन परिवारों की टूटी उम्मीदों की कहानी है।
सरकार के लिए यह शायद एक छोटा सा मुद्दा हो, लेकिन इन गाँवों के लिए यह उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा सवाल है। क्या इन लोगों का हक नहीं कि उन्हें एक सुरक्षित, मजबूत पुल मिले? क्या उनकी जिंदगी इतनी सस्ती है कि उनकी पुकार को अनदेखा किया जाए? यह दुख, यह बेबसी, यह तड़प सरकार तक पहुँचनी चाहिए। एक नया पुल सिर्फ ईंट और सीमेंट का ढांचा नहीं होगा; यह इन गाँवों के लिए एक नई जिंदगी, एक नई उम्मीद, और एक नया भविष्य होगा।

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