
*उज्जैन महाकाल लोक के पीछे 'गरीब लोक' जयसिंहपुरा की गरीब नवाज़ कॉलोनी में लोगों के घरों में घुसा बरसाती तालाब*
*शाहनवाज ब्रेकिंग न्यूज़*
उज्जैन। मध्यप्रदेश महाकाल की नगरी उज्जैन में जहां एक ओर करोड़ों की लागत से महाकाल लोक का निर्माण कर शहर को धार्मिक पर्यटन का केंद्र बनाया जा रहा है, वहीं उसी भव्यता की दीवारों के पीछे हकीकत एकदम उलट है।
तस्वीरें और हालात चीख-चीखकर बता रहे हैं कि गरीब नवाज़ कॉलोनी, जयसिंहपुरा में लोग किस तरह बरसाती नरक में जीने को मजबूर हैं।
*भव्य महाकाल लोक के पीछे बसी बस्ती बनी 'तालाब'*
बारिश के बाद इस पूरे इलाके में जल निकासी की कोई व्यवस्था नहीं दिखती। सड़कें नहीं, गंदे पानी की झील बन चुकी हैं। तस्वीरों में देखा जा सकता है कि ऑटो रिक्शा, ई-लोडिंग गाड़ी और ठेले पानी में आधे डूबे हैं।
घरों में पानी घुस चुका है, दीवारें गीली हो गई हैं, बिजली के खंभों से करंट फैलने का भी खतरा बना हुआ है।
*बच्चों के लिए जानलेवा साबित हो रही लापरवाही*
सबसे ज्यादा खतरा यहां रहने वाले बच्चों को है।
छोटे-छोटे बच्चे इसी गंदे पानी में चल रहे हैं, खेल रहे हैं और बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं।
मलेरिया, डेंगू, त्वचा संबंधी बीमारियां और पेट के संक्रमण तेजी से फैल रहे हैं।
इलाके के अस्पतालों में बुखार और स्किन इंफेक्शन के मरीज बढ़ रहे हैं, लेकिन शासन-प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है।
*लोगों का सवाल — "क्या हम महाकाल लोक के नागरिक नहीं?"*
यह कॉलोनी महाकाल मंदिर से महज़ कुछ कदमों की दूरी पर है, लेकिन यहाँ के हालात देखकर कोई अंदाज़ा नहीं लगा सकता कि ये धार्मिक पर्यटन का अंतरराष्ट्रीय केंद्र बनने वाले शहर का हिस्सा है।
•लोगों ने पूछा है —
"हमें महाकाल लोक का हिस्सा क्यों नहीं माना जाता?"
• "दीवारों के अंदर रोशनी है, बाहर अंधेरा क्यों?"
•"सिर्फ VIP ज़ोन ही विकास के हकदार हैं क्या?"
*सरकार व प्रशासन से मांगे:*
1. तत्काल जल निकासी की व्यवस्था कराई जाए।
2. इलाके में मेडिकल कैम्प लगाया जाए, दवा वितरण हो।
3. बच्चों व बुजुर्गों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया जाए।
4. हर साल जलभराव से जूझने वाले क्षेत्रों की स्थायी योजना बने।
5. स्वच्छता अभियान केवल पोस्टर तक सीमित न रहे, ज़मीन पर लागू हो।
यदि आज इस बस्ती की आवाज़ नहीं सुनी गई, तो आने वाले समय में ये गंदा पानी सिर्फ ज़मीन नहीं, प्रशासनिक नीतियों को भी डुबो देगा।
महाकाल के नाम पर शहर को सजाया गया है — अब वक्त है कि उस सजावट के पीछे दबे इंसानों की भी सुध ली जाए।
ये आवाज़ उज्जैन के उन हिस्सों की है, जो महाकाल लोक की दीवारों के बाहर हैं — लेकिन जीवन उनके भीतर भी धड़कता है। विकास केवल दिखावे का नहीं, ज़मीनी सच्चाई का होना चाहिए।