
भारत बढ़ाता जाए स्टंप,
आग बबूला क्यों ट्रंप।
राहुल मोदी मोदी जपता,
क्यों बिगाड़े खुदका फ्रंट।
ढंग का सवाल कुछ पूछे नाहिं,
खुद बयानों में जाता फंस।।
यदि बात भारत के नेतृत्व की करें तो वो निडर, साहसी, मेहनती, सूझवान, दिमागी वा जिस्मानी तंदुरुस्त, अच्छी बाणी, योजनाकार,नीतिवान, हार ना मानने, दुश्मनों को समझने, हर आपदा से पार पाने और दुश्मनों को सही जवाब देने वालों के हाथों में ही होनी चाहिए। इसमें कोई धर्म या जाति मायने नहीं रखती। यदि ऐसे गुण किसी भी भारतीय में हो तो उसे भारत का नेतृत्व करने के लिए अग्रसर होना चाहिए। यदि इतिहास की बात करें तो हिंदू और सिख राजे महाराजे ही जनता के हितैषी रहे हैं जिन्होंने देश धर्म की खातिर कुर्बान होने का इतिहास रचा है।
आज भारत के नेतृत्व से अमेरिका जैसे देश को भी सोचने पर मजबूर कर दिया। उसके मौजूदा राष्ट्रपति ट्रंप की भारत के बढ़ते कदमों से जलन बिलकुल साफ हो गई है। वह खुलकर सामने आ कर कह रहे हैं कि 24 घंटे के भीतर भारत पर और अधिक टैरिफ लगाएगा। दुनियां भर में बहुत बड़ी तादाद है जो मेरी सोच से इतफाक रखते हैं कि ट्रंप की दोस्ती भरोसे लाईक नहीं है, उनकी करनी और कथनी में जमीं आसमा का अंतर है। खैर भारत के पास बहुत विकल्प हैं उसके कदमों को रोक पाना ट्रंप के बस की बात नहीं रही। क्योंकि भारत के नेतृत्व ने पूरी दुनियां में अपनी पकड़ बना ली है। ट्रंप की नीति एक दिन उसपे ही भारी पड़ेगी क्योंकि अर्थ व्यवस्था तो आपसी तालमेल से ही संभव है। मनमाना टैरिफ अमेरिका से सभी देशों के रिश्ते प्रभावित जरूर करेगा। आजा का भारत खुद की निर्भरता पर यकीन करने लगा है।
हालांकि भारत का नेतृत्व करना कभी भी आसान नहीं होता क्योंकि अपने ही लोग गंदी राजनिति के चलते अच्छे कामों भी नकारने लगते हैं, बे मतलब के सवाल खड़े करके संंसद की करवाई में विघ्न डालने की होड़ में रहते हैं। जिससे संसद के रोज़ाना खर्चे का बोझ नाजायज और निष्फल हो जाता है। विपक्ष को यदि सरकार का कोई प्रॉजेक्ट अच्छा नहीं भी लगता तो उसका विरोध संसद की मर्यादा का ध्यान रखते हुए करना चाहिए। यहां पर एक एहम बात होनी चाहिए कि विपक्ष को संसद सत्र में भाग लेने से पहले खास कर विरोध दर्ज़ करने से पहले आम जनता की भी राय लेनी चाहिए। कई बार ऐसा होता है कि जनता को तो सरकार की कारगुजारी पर कोई शक नहीं होता पर विपक्ष अपनी होषी राजनिति में मग्न हो जाता है। जिससे देश का नुक्सान होता है। विपक्ष के नेता राहुल गांधी जी अपने ही सवालों में घिर जाते हैं और अपने ही बयानों में फंस जाते हैं। इससे उनकी अपनी छवि तो प्रभावित होती ही है पर सत्ता धारी को उल्टा फ़ायदा मिल जाता है।