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दक्षिण बिहार की तुलना में उत्तर बिहार का विकाश: एक अनदेखा सच ।

बिहार, जिसे हम दो हिस्सों में बांटकर देखते हैं दक्षिण बिहार और उत्तर बिहार और देखें भी न क्यों - इन दोनों के बीच विकास के मामले में एक गहरी खाई है। और इस खाई को भी और तेजी से बढ़ाया है आज के नेताओं ने । अपने सांस्कृतिक विरासत से समृद्ध माता सीता जी की जन्मस्थली , अपनी मृदुभाषा से समृद्ध मैथिली और भोले शिव के उपासक विद्यापति की नगरी आज भी अपनी विकाश की बाट जोह रहा है ।भौगोलिक रूप से गंगा नदी इन दोनों को अलग करती है, लेकिन विकास के स्तर पर यह विभाजन कहीं ज्यादा गहरा है। जहाँ दक्षिण बिहार, खास तौर पर पटना, गया और नालंदा जैसे जिलों में विकास की रफ्तार कुछ हद तक तेज रही है, वहीं उत्तर बिहार आज भी कई बुनियादी चुनौतियों से जूझ रहा है।


उत्तर बिहार का विकास क्यों पिछड़ गया, इसका सबसे बड़ा कारण हर साल आने वाली बाढ़ है। कोसी, गंडक, बागमती जैसी नदियां यहाँ हर साल तबाही मचाती हैं। हजारों गाँव डूब जाते हैं, फसलें बर्बाद हो जाती हैं और लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। इस प्राकृतिक आपदा के कारण इस क्षेत्र में न तो उद्योग लग पाते हैं और न ही कृषि का स्थायी विकास हो पाता है। और इसका रोना हर चुनाव में यहां के नेता रोते हैं तो क्या ये सिर्फ त्रासदी है क्या इसको अवसर में नहीं बदला जा सकता है ? उस हिसाब से तो जापान शहर को अब तक नष्ट हो जाना चाहिए क्योंकि वो भूकंपों का देश है । खैर ...........

बाढ़ और बेरोजगारी के कारण यहाँ के लोगों को हर साल पलायन करना ये एक आम बात हो गई है। लाखों की संख्या में युवा रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में जाते हैं। यह पलायन न केवल उत्तर बिहार के आर्थिक विकास को रोकता है, बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी कमजोर करता है।

सड़कें, पुल, स्वास्थ्य सेवाएं और शिक्षा - इन सभी मामलों में उत्तर बिहार दक्षिण बिहार से काफी पीछे है। जहाँ दक्षिण बिहार में सड़कों का जाल बिछाया गया है और मेडिकल कॉलेज व बेहतर अस्पताल हैं, वहीं उत्तर बिहार में आज भी लोग अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए पटना या दूसरे बड़े शहरों पर निर्भर हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी यहाँ उच्च शिक्षण संस्थानों की कमी है, जिससे छात्रों को बाहर जाकर पढ़ाई करनी पड़ती है।


यह एक दुखद सच्चाई है कि यहां के नेताओं की स्फूर्ति सिर्फ चुनावों के वक्त ही दिखती है ।उत्तर बिहार के विकास से जुड़े मुद्दे केवल चुनावों के दौरान ही उठाए जाते हैं। हर चुनाव में नेता बाढ़ को रोकने, नए पुल बनाने और रोजगार के अवसर पैदा करने का वादा करते हैं। लेकिन चुनाव खत्म होते ही ये वादे और मुद्दे ठंडे बस्ते में चले जाते हैं। लोग अगले पाँच साल तक इंतजार करते रहते हैं और फिर से वही चक्र चलता है। यहां के नेताओं में इक्षा शक्ति की कमी है ।


उत्तर बिहार के विकास के लिए सरकार और समाज दोनों को मिलकर काम करना होगा।

केवल तात्कालिक राहत देने की बजाय, नदियों को जोड़ने और बड़े बाँध बनाने जैसी स्थायी योजनाओं पर काम करना जरूरी नहीं है बल्कि इस प्रलयनकारी बाढ़ को अवसर में कैसे बदला जाए इस पर चर्चा कर उचित कदम उठाने की जरूरत है ।

कृषि आधारित उद्योगों, जैसे फूड प्रोसेसिंग और जूट उद्योग को बढ़ावा देकर रोजगार के अवसर पैदा किए जा सकते हैं। उत्तर बिहार में किसी समय मसालों में हल्दी , मोर्चा , धनिया , आदि जैसे मसाले प्रचुर मात्रा में उगाए जाते थे , लेकिन कृषि के इस औद्योगिकरण के युग में नई तकनीक से नहीं जुड़ने की वजह से आज भी ये मुख्य धारा से काफी पिछड़ा हुआ है । हालांकि यहां के लोग काफी मेहनती हैं ।

सिर्फ अच्छी सड़कें, पुल, अस्पताल और उच्च शिक्षण संस्थान बनाकर इस क्षेत्र को विकास की मुख्यधारा में नहीं लाया जा सकता है उसके लिए अवसर तलाशने की जरूरत है ।

जब तक उत्तर बिहार की समस्याओं को एक चुनावी मुद्दा न मानकर, एक गंभीर विकासात्मक चुनौती नहीं माना जाएगा, तब तक बिहार का समग्र विकास अधूरा ही रहेगा। यह समय है कि हम इन अनदेखे और उपेक्षित मुद्दों पर गंभीरता से विचार करें और उत्तर बिहार को भी विकास की समान रोशनी में लाएँ।

मनीष सिंह
शाहपुर पटोरी
@ManishSingh_PT

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2 comment  
  • Vijay Kumar Sharma

    Very very nice

  • Purushottam Jha

    बहुत बढ़िया विश्लेषण