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रक्षाबंधन विशेष: प्रेम, परंपरा और पृथ्वी के प्रति प्रतिबद्धता का पावन पर्व, एक राखी धरती के नाम भी!

आप सभी को हरियाली से भरा, पर्यावरण के प्रति जागरूक और प्रेम एवं स्नेहमयी पर्व 'रक्षाबंधन' की हार्दिक शुभकामनाएँ। एक राखी धरती के नाम भी!

Report: केदार सिंह चौहान 'प्रवर'

राखी का यह धागा केवल रक्षा का बंधन नहीं, एक कालातीत विश्वास है, जो समय की सीमाओं को लांघते हुए भाई-बहन के रिश्ते को अमरत्व प्रदान करता है। रक्षाबंधन एक दिन नहीं, एक दृष्टिकोण है — जहाँ प्रेम, सुरक्षा, समर्पण, और स्नेह जीवन के प्रत्येक बंधन को सुवासित करते हैं। यह पर्व केवल बहन द्वारा भाई की कलाई पर रक्षा-सूत्र बाँधने का प्रतीक नहीं, बल्कि उस आत्मीय संबंध का उत्सव है, जो रुधिर से नहीं, रिश्ते की रूह से जुड़ा होता है।

आज जब आधुनिकता की दौड़ में रिश्ते कृत्रिम होते जा रहे हैं, ऐसे समय में रक्षाबंधन जैसे पर्व हमें स्मरण कराते हैं कि भावनाओं का मूल्य सदा अक्षुण्ण रहा है।

रक्षाबंधन : इतिहास की दृष्टि से

रक्षाबंधन की जड़ें भारतीय संस्कृति में इतनी गहरी हैं कि इसका उल्लेख पुराणों, महाकाव्यों और ऐतिहासिक प्रसंगों में बार-बार होता है।

महाभारत में जब भगवान श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध किया था और उनके हाथ से रक्त बह रहा था, तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक किनारा फाड़कर उनके घाव पर बाँध दिया था। वह कपड़े का टुकड़ा केवल एक पट्टी नहीं, एक बंधन बन गया — और उस बंधन ने श्रीकृष्ण को जीवन भर द्रौपदी की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया।

राजा बलि और भगवान विष्णु की कथा, रानी कर्णावती और हुमायूं की ऐतिहासिक घटना — ये सब इस बात की पुष्टि करते हैं कि राखी का धागा मात्र धागा नहीं, एक ऐसा आध्यात्मिक अनुबंध है, जो रक्त-संबंधों से भी अधिक गहराई लिए होता है।

पारंपरिक पर्व से आधुनिक जागरूकता तक

समय के साथ हर परंपरा में परिवर्तन आता है। रक्षाबंधन भी इसका अपवाद नहीं। परंपरा के साथ-साथ इसकी आत्मा में भी जागृति की लहर आई है। आज यह पर्व केवल भाई-बहन का नहीं रहा, बल्कि यह समाज, संस्कृति और पृथ्वी के साथ उत्तरदायित्व का भी प्रतीक बन रहा है।

आज की राखियाँ सिर्फ सजावटी नहीं — उनमें प्रकृति की पुकार, जलवायु संकट की चेतावनी और आने वाली पीढ़ियों के लिए संदेश छिपे हैं। यही कारण है कि इस पावन पर्व ने “सीड राखी” के रूप में एक नई चेतना को जन्म दिया है।

सीड राखी : प्रकृति की रक्षा का प्रेमसूत्र

जब बहन अपने भाई की कलाई पर "सीड राखी" बाँधती है — एक ऐसी राखी, जिसमें पौधों के बीज समाहित होते हैं — तब वह न केवल भाई की सुरक्षा की कामना करती है, बल्कि धरती माँ के लिए भी जीवन का संकल्प लेती है।

सीड राखी एक प्रतीक है — संवेदनशीलता का, पर्यावरणीय चेतना का, और रिश्तों के प्रति जिम्मेदारी का। यह एक छोटे से बीज के रूप में एक बड़ा संदेश देती है :
"प्रकृति भी हमारी बहन है, उसकी रक्षा भी हमारा धर्म है।"

जब वह राखी मिट्टी में रोपी जाती है, तब उससे उगता है जीवन — एक पौधा, एक वृक्ष, जो हवा देता है, छाया देता है, और यह स्मरण कराता है कि रक्षा का अर्थ केवल एक व्यक्ति की नहीं, सम्पूर्ण सृष्टि की सुरक्षा है।

भाई-बहन : रिश्ते की रेखाओं में लिपटा जीवन

रक्षाबंधन की बात करते हुए यदि हम केवल एक औपचारिक परंपरा की बात करें, तो वह इसकी आत्मा के साथ अन्याय होगा। यह पर्व उन असंख्य यादों की गठरी है जो भाई-बहन ने मिलकर गूंथी होती है।

कभी गुड्डे-गुड़ियों की शादी में सहभागी बनते भाई-बहन, कभी स्कूल के रास्ते में एक-दूसरे के झगड़े और सुलह के साथी, कभी किताबें साझा करते हुए भावनाओं की साझेदारी करते हैं। राखी वह मौन वाचा है, जो कहती है —

"तू चाहे दुनिया के किसी कोने में हो, मैं तेरे लिए प्रार्थना में हूँ।"

आधुनिक समाज में रक्षाबंधन का महत्व

आज जब एकल परिवार, व्यस्त जीवनशैली और डिजिटल युग ने संबंधों को सीमित कर दिया है, ऐसे में रक्षाबंधन एक अवसर है — रिश्तों को फिर से जीवित करने का, संवाद के सेतु बनाने का, और संवेदनाओं को स्पर्श करने का।

भाई यदि अपनी बहन की कलाई पर राखी बँधवाकर कुछ क्षणों के लिए ही सही, अपनी दिनचर्या से बाहर आता है, तो वह प्रेम का पल उसे ताजगी से भर देता है।

सामाजिक संदर्भ में राखी : भाई से बढ़कर मानवता का बंधन

आज राखी उन वीर जवानों की कलाइयों पर भी बाँधी जाती है जो सीमाओं पर तैनात हैं। यह पर्व उन पुलिस कर्मियों, डॉक्टरों, सफाईकर्मियों के लिए भी प्रेम का प्रतीक बन गया है, जो समाज की रक्षा में जुटे हैं।

बहन, केवल एक जन्मजन्मांतर की सगी नहीं होती। समाज में हर महिला — माँ, बेटी, मित्र, सहकर्मी — वह भी किसी न किसी रूप में राखी की हकदार है।

बालिकाओं और पर्यावरण शिक्षा के लिए सीड राखी एक क्रांतिकारी पहल

विद्यालयों, महिला समूहों और ग्राम सभाओं में सीड राखी का प्रचार बच्चों को पर्यावरण से जोड़ने का सुंदर माध्यम है। शिक्षक जब बालिकाओं को बीजों से बनी राखियाँ बनाने और बाँधने को प्रेरित करते हैं, तो वहाँ एक नया अध्याय जन्म लेता है।

यह शिक्षा है — प्रेम की, संरक्षण की, और प्रकृति की चेतना की।

राखी और भारतीय अर्थव्यवस्था : महिला स्वावलंबन की ओर

सीड राखी न केवल प्रकृति-सम्मत है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त करने वाला नवाचार भी है। हजारों स्वयं सहायता समूह, महिला मंडल और स्थानीय कारीगर आज सीड राखी के निर्माण में लगे हैं।

यह एक ऐसा मॉडल है जो परंपरा को जीविका में बदलता है।

कविता: "धरती की कलाई"

बांधी बहन ने जो राखी, वो बीज बन गई धरती में,

हर पत्ती में नाम उसका, हर शाखा में गीत बहे।

भाई की रक्षा की कामना, अब वृक्षों की छाँव बने,

सीड राखी के धागे में, प्रकृति का प्रण पले।

कलाई पर बंधा जो स्नेह, जड़ों तक उतर गया,

एक धागा बाँधा गया, और जंगल उग आया !!

रक्षाबंधन और आत्मनिरीक्षण

आज रक्षाबंधन के इस पावन अवसर पर आइए हम सब स्वयं से एक प्रश्न करें —
क्या हम केवल अपने रिश्तों की रक्षा कर रहे हैं, या इस ब्रह्मांड के प्रति भी अपना धर्म निभा रहे हैं?

सीड राखी केवल एक प्रतीक नहीं, यह आत्मनिरीक्षण का अवसर है —

क्या हम अपने जीवन में सततता को प्राथमिकता दे रहे हैं?
क्या हम भविष्य के लिए कुछ बचा रहे हैं?
एक धागा, अनेक संदेश

रक्षाबंधन का एक धागा अनेक संदेश लेकर आता है —

प्रेम का,
सुरक्षा का,
सृजन का,
समर्पण का,
और अब — पर्यावरणीय चेतना का।

आइए, इस बार केवल एक रिश्ते की नहीं, धरती, हवा, जल और पेड़ों की भी रक्षा का व्रत लें।
राखी बाँधें, पेड़ उगाएँ — यही हो रक्षाबंधन की सच्ची साधना।

एक राखी बहन के लिए, एक धरती माँ के लिए

सीड राखी: रक्षा का वह सूत्र जो जीवन भी बोता है!

रक्षाबंधन केवल भाई-बहन के प्रेम का पर्व नहीं, यह प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारी का भी स्मरण है। इस बार बाँधिए एक ऐसी ‘सीड राखी’, जो न केवल भाई की कलाई को सजाएगी, बल्कि धरती माँ की कोख में हरियाली भी बोएगी।

यह राखी है बीजों से बनी – प्राकृतिक रेशों से सजी, जैविक रंगों में रंगी और पूर्णतः पर्यावरण-मित्र। भाई की कलाई पर बँधने के बाद, यह राखी मिट्टी में मिलकर एक नन्हा पौधा बन जाती है – एक ऐसा पौधा, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेम, पर्यावरण और परंपरा की अनमोल निशानी बन जाता है।

आज जब हमारी पृथ्वी प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग और वन क्षरण से कराह रही है, तो क्यों न इस रक्षाबंधन पर हम एक बीज बोएं – भविष्य के लिए आशा का, प्रकृति के लिए प्रेम का, और रिश्तों के लिए जिम्मेदारी का।

राखी बाँधें… लेकिन ऐसी जो धरती को भी सहेजे।
प्यार बाँटें… लेकिन ऐसा जो पेड़ों में पनपे।
रक्षा करें… न केवल भाई की, बल्कि धरती की भी।

इस रक्षाबंधन, एक अनूठा उपहार दीजिए – सीड राखी, जो रिश्तों के साथ-साथ प्रकृति की रक्षा का भी व्रत लेती है।

Request:
‘सरहद का साक्षी’ परिवार की ओर से आप सभी को हरियाली से भरा, पर्यावरण के प्रति जागरूक और प्रेम एवं स्नेहमयी पर्व 'रक्षाबंधन' की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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केदार सिंह चौहान 'प्रवर', सम्पादक - सरहद का साक्षी Digital Media

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