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रक्षा बंधन :इतिहास के पन्नो से

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वाम् अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥

अर्थात जिस प्रकार से दानवीर और महाबली राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षा सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूँ। तटस्थता से रक्षा करना। ये मंन्त्र रक्षा सूत्र बांधते वक्त पढा जाता है ।

"मंत्र का इतिहास भारतीय पौराणिक कथा और रक्षाबंधन की परंपरा से जुड़ा है। यह मंत्र रक्षासूत्र (राखी) बांधते समय बोला जाता है और इसका अर्थ है कि जिस रक्षा सूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को धर्म और बंधन में बांधा गया था, उसी रक्षा सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, जो तुम्हारी रक्षा करेगा और स्थिर रहेगा। राजा बलि एक महान, शक्तिशाली और दानवीर दानवों के राजा थे, जिनकी कथा विष्णु पुराण, वामन पुराण और भविष्य पुराण में मिलती है।

कथा के अनुसार, राजा बलि ने अपनी दानवीरता और भक्ति के कारण भगवान विष्णु के वामन अवतार से अपनी परीक्षा दी। तीन पग भूमि के दान में उन्होंने दो पग में पूरी पृथ्वी और आकाश माप लिया और तीसरे पग के लिए अपना सिर दिया। इसके बाद भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल जाना पड़ता है। माँ लक्ष्मी ने श्रावण पूर्णिमा के दिन राजा बलि की कलाई में रक्षा सूत्र बाँधा था, जो रक्षाबंधन की परंपरा का मूल आधार है।

राजा बलि की दानवीरता का सर्वोच्च उदाहरण भगवान विष्णु के वामन अवतार को तीन पग भूमि दान देना है, जहां उन्होंने अपने मस्तक तक भूमिपूजा के रूप में सौंप दिया था। यह त्याग और भक्ति का अद्भुत उदाहरण है, जिसे भारतवर्ष में रक्षाबंधन जैसे पर्वों के माध्यम से सम्मानित किया जाता है।

राजा बलि का संदेश विश्व स्तर पर सत्ता, अहंकार और शक्ति से ऊपर भक्ति, दानशीलता और न्याय की प्रेरणा देता है। उनका लोकतांत्रिक और धर्मपरायण स्वभाव उन्हें सार्वभौमिक रूप से सम्माननीय बनाता है, जो असली राजतंत्र की मिसाल है। उनके जीवन से हमें दिखता है कि सच्ची महानता बल और धन में नहीं, बल्कि उदारता और धर्मपालन में होती है।
पुरुषोत्तम झा
पटना
On X {twitter} @pranamya_parash

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