
वृंदावन में अखिल भारत हिंदू महासभा ने बनाया श्रावणी उपाकर्म
श्रावणी उपाकर्म : प्राचीनकाल में श्रावणी उपाकर्म का ज्यादा महत्व था जबकि बालकों को गुरुकुल भेजा जाता था। उन्हें द्विज बनाया जाता था और उनमें वैदिक संस्कार डाले जाते थे। हालांकि वर्तमान में यह सब नहीं होता बस यज्ञोपतिव संस्कार और तर्पण ही अब रह गया है। जो वैदिक या वेदपाठी ब्राह्मण है वे यह कर्म करते हैं या जिन्हें ब्राह्मण बनना हो वे भी ये कर्म करते हैं। श्रावण पूर्णिमा के दिन यदि ग्रहण या संक्रांति हो तो श्रावणी उपाकर्म श्रावण शुक्ल पंचमी को करना चाहिए।
अखिल भारत हिंदू महासभा जिला संयोजक
पंडित आकाश कृष्ण शास्त्री जी ने बताया
क्या होता है श्रावणी उपाकर्म में : दसविधि स्नान कर मनाया जाता है श्रावणी पर्व। इसमें पितरों तथा आत्मकल्याण के लिए मंत्रों के साथ हवन यज्ञ में आहुतियां दी जाती है। इस महत्वपूर्ण दिन पितृ-तर्पण और ऋषि-पूजन या ऋषि तर्पण भी किया जाता है। ऐसा करने से पितरों का आशीर्वाद और सहयोग मिलता है जिससे जीवन के हर संकट समाप्त हो जाते हैं।
श्रावणी उपाकर्म उत्सव में वैदिक विधि से
हेमादिप्राक्त, प्रायश्चित संकल्प, सूर्याराधन, दसविधि स्नान, तर्पण, सूर्योपस्थान, यज्ञोपवीत धारण, प्राणायाम, अग्निहोत्र व ऋषि पूजन किया जाता है।