
चुनाव आयोग ने राहुल गांधी की वोट चोरी के आरोपों का किया खंडन
हाल ही में राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर "वोट चोरी" का आरोप लगाया, जिसके बाद चुनाव आयोग ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए उनके आरोपों का खंडन किया। इस खंडन से संबंधित विवेचना इस प्रकार है:
राहुल गांधी के आरोप
राहुल गांधी ने कर्नाटक के बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा सीट के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र का उदाहरण देते हुए मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर हेरफेर का आरोप लगाया। उनके मुख्य आरोप इस प्रकार थे:
* मतदाता सूची में डुप्लिकेट, फर्जी और अमान्य पते वाले वोटरों को शामिल किया गया।
* एक ही पते पर कई-कई मतदाताओं के नाम दर्ज थे, जिससे वोट चोरी की संभावना बनी।
* चुनाव आयोग विपक्षी दलों को 'मशीन-पठनीय' (machine-readable) मतदाता सूची उपलब्ध नहीं करा रहा है, ताकि इस तरह की धांधली का पता न चल सके।
* उन्होंने आरोप लगाया कि यह सब बीजेपी और चुनाव आयोग की मिलीभगत से किया जा रहा है।
* उन्होंने दावा किया कि यह केवल एक चुनावी घोटाला नहीं, बल्कि संविधान और लोकतंत्र के खिलाफ एक अपराध है।
चुनाव आयोग का खंडन और प्रतिक्रिया
चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के आरोपों को "निराधार" और "घिसी-पिटी बातें" बताकर खारिज कर दिया। आयोग ने अपने खंडन में कई महत्वपूर्ण बिंदु उठाए:
* शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करने की चुनौती: चुनाव आयोग ने राहुल गांधी से कहा कि यदि उनके पास अपने आरोपों को साबित करने के लिए ठोस सबूत हैं, तो वे संबंधित चुनावी नियमों (नियम 20(3)(बी) के तहत) के तहत एक विधिवत हस्ताक्षरित घोषणा पत्र या शपथ पत्र प्रस्तुत करें। आयोग ने कहा कि यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, तो उन्हें अपने "बेतुके" आरोपों के लिए देश से माफी मांगनी चाहिए।
* शिकायत दर्ज न करना: आयोग ने बताया कि राहुल गांधी ने व्यक्तिगत रूप से कभी भी कोई लिखित शिकायत या शपथ पत्र आयोग को नहीं भेजा है। अतीत में भी जब उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर किसी अन्य माध्यम से शिकायतें आईं, तो उन्होंने बाद में उनसे पल्ला झाड़ लिया।
* कर्नाटक सरकार का हवाला: चुनाव आयोग ने एक महत्वपूर्ण तर्क यह दिया कि कर्नाटक में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार खुद अपने जाति जनगणना के लिए उन्हीं मतदाता सूचियों का उपयोग कर रही है। आयोग ने कहा कि एक तरफ कांग्रेस सरकार इन्हीं सूचियों को विश्वसनीय मानती है, वहीं दूसरी ओर विपक्ष के नेता इन पर सवाल उठा रहे हैं।
* पुराने आरोपों की पुनरावृत्ति: आयोग ने राहुल गांधी के आरोपों को "पुरानी बोतल में नई शराब" बताया। उन्होंने कहा कि इसी तरह के आरोप पहले भी 2018 में तत्कालीन मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ द्वारा लगाए गए थे।
* चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता: आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि मतदाता सूची बनाने की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी है, और किसी भी राजनीतिक दल के पास मतदाता सूची में शामिल किए गए या हटाए गए नामों पर आपत्ति दर्ज कराने का अधिकार होता है।
विवेचना
इस पूरे घटनाक्रम से कुछ प्रमुख बातें सामने आती हैं:
* राजनीतिक बनाम संस्थागत मुद्दा: राहुल गांधी ने अपने आरोपों को लोकतंत्र और संविधान पर हमले के रूप में पेश किया, जबकि चुनाव आयोग ने इसे नियमों और प्रक्रियाओं के उल्लंघन के बजाय एक राजनीतिक आरोप के रूप में देखा। आयोग का खंडन मुख्य रूप से कानूनी और प्रशासनिक पहलुओं पर केंद्रित था।
* सबूत बनाम आरोप: चुनाव आयोग ने बार-बार सबूतों के साथ शपथ पत्र देने की मांग की, जबकि राहुल गांधी ने सार्वजनिक मंचों पर डेटा का विश्लेषण प्रस्तुत करके अपने आरोप लगाए। इससे यह सवाल उठता है कि क्या सार्वजनिक मंचों पर लगाए गए आरोपों को संस्थागत जांच के लिए पर्याप्त माना जा सकता है।
* चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर बहस: विपक्ष के आरोपों ने एक बार फिर चुनाव आयोग की निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। हालांकि, आयोग ने अपने खंडन में अपने बचाव के लिए मजबूत तर्क प्रस्तुत किए हैं, लेकिन इस तरह के आरोप लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लोगों के विश्वास को कमजोर कर सकते हैं।
* संवैधानिक संस्थानों का सम्मान: दोनों पक्षों के बीच चल रही इस बहस से यह भी स्पष्ट होता है कि भारत में चुनावी प्रक्रिया से जुड़े संस्थानों पर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दबाव बढ़ रहा है। यह देखना महत्वपूर्ण है कि कैसे एक संवैधानिक निकाय इस तरह की चुनौतियों का सामना करता है।
कुल मिलाकर, चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के आरोपों को तथ्यों और प्रक्रियाओं के आधार पर जोरदार तरीके से खारिज कर दिया। आयोग ने राहुल गांधी से या तो अपने आरोपों को कानूनी रूप से साबित करने या माफी मांगने की मांग की है, जिससे यह मुद्दा और भी गहरा गया है।