
राष्ट्रीय राजमार्गों और ग्रामीण सड़को की गुणवत्ता में असमानता
भारत में सड़क नेटवर्क देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति की रीढ़ है। यह हमें एक-दूसरे से जोड़ता है और व्यापार को गति देता है। लेकिन जब हम इस नेटवर्क को गहराई से देखते हैं, तो एक चौंकाने वाली असमानता सामने आती है:
राष्ट्रीय राजमार्गों की शानदार गुणवत्ता और ग्रामीण सड़कों की दयनीय स्थिति ।
हमारे राष्ट्रीय राजमार्गों पर सरकार का पूरा ध्यान होता है। इन्हें आधुनिक तकनीक से बनाया जाता है, इनकी नियमित मरम्मत होती है और इन्हें सुरक्षित बनाने के लिए हर संभव प्रयास किया जाता है। ये राजमार्ग चिकने, चौड़े और अच्छी तरह से चिह्नित होते हैं, जो लंबी दूरी की यात्रा को आरामदायक और तेज बनाते हैं। इनकी गुणवत्ता पर कोई समझौता नहीं किया जाता, क्योंकि ये देश के प्रमुख शहरों और बंदरगाहों को जोड़ते हैं।
इसके विपरीत,ग्रामीण सड़कों की कहानी बिल्कुल अलग है। ये सड़कें अक्सर कच्ची या बहुत ही निम्न गुणवत्ता की होती हैं। इन्हें बनाने में अक्सर घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है, जिसके कारण ये जल्द ही टूट-फूट जाती हैं,और कुछ जगहों पर ईंटों से बनी सड़कों की ईंटें तक चोरी हो जाती हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि इन सड़कों की देखभाल और निर्माण में कितनी लापरवाही बरती जाती है।
यह असमानता न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए असुविधाजनक है, बल्कि यह उनके जीवन को कई तरह से प्रभावित करती है:
स्वास्थ्य और शिक्षा: खराब सड़कें स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच को मुश्किल बनाती हैं। आपातकालीन स्थिति में एंबुलेंस का समय पर न पहुँच पाना जानलेवा हो सकता है। इसी तरह, बच्चों के लिए स्कूल तक पहुँचने में भी मुश्किलें आती हैं, खासकर बारिश के मौसम में।
आर्थिक विकास:ग्रामीण सड़कें किसानों को उनकी उपज मंडियों तक पहुँचाने में मदद करती हैं। खराब सड़कें परिवहन की लागत बढ़ाती हैं और उपज को नुकसान पहुँचाती हैं, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान होता है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों का समग्र आर्थिक विकास धीमा हो जाता है।
सामाजिक अलगाव:खराब सड़कों के कारण ग्रामीण क्षेत्र अक्सर मुख्यधारा से कट जाते हैं। इससे लोगों को शहर के अवसरों तक पहुँचने में दिक्कत होती है और वे विकास से वंचित रह जाते हैं।
इस समस्या का समाधान केवल अच्छी गुणवत्ता वाली सड़कों का निर्माण करना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि उनकी नियमित मरम्मत और रखरखाव हो। इसके लिए, निर्माण में पारदर्शिता लाना और जवाबदेही तय करना बहुत ज़रूरी है। ग्रामीण सड़कों को राष्ट्रीय राजमार्गों के समान प्राथमिकता देना ही इस असमानता को खत्म कर सकता है।
सरकार को प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसे कार्यक्रमों जिसमें केंद्र की 60% और राज्यों की 40% तक योगदान होती है इसकेऔर भी प्रभावी बनाना चाहिए ताकि हर गाँव को एक मजबूत और टिकाऊ सड़क नेटवर्क मिल सके। जब तक हर गाँव को बेहतर सड़कों से नहीं जोड़ा जाता, तब तक एक सच्चे और विकसित भारत की कल्पना अधूरी रहेगी।
पुरुषोत्तम झा
पटना
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