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आदिवासी अस्मिता पर हमला—कांग्रेस देगी कल तक का अल्टीमेटम, फिर होगा थाना घेराव - पूर्व मंत्री अमरजीत भगत



*सीतापुर की आदिवासी बेटी पर अन्याय—सरकार की चुप्पी, पुलिस की ढिलाई, न्याय कब?*

*आदिवासी अस्मिता पर हमला—कांग्रेस देगी कल तक का अल्टीमेटम, फिर होगा थाना घेराव*

*FIR दबाने की कोशिश, आरोपियों को संरक्षण—सरकार किसके इशारे पर बचा रही है अपराधियों को?*

सीतापुर की धरती पर हुई यह घटना न सिर्फ़ शर्मनाक है, बल्कि मौजूदा सरकार के प्रशासनिक असंवेदनशीलता और ढुलमुल रवैये का एक और सबूत है। एक आदिवासी बेटी के साथ खुलेआम छेड़छाड़ की गई, आरोपियों पर त्वरित कार्रवाई करने के बजाय पुलिस और प्रशासन ने इस मामले को दबाने की कोशिश की। सोचने वाली बात है कि FIR भी तभी लिखी गई, जब कांग्रेस के साथी अगले दिन थाने पहुँचे और पीड़िता के पक्ष में खड़े हुए।

यह चुप्पी और देरी केवल लापरवाही नहीं है—यह एक संदेश है कि आदिवासी समाज की आवाज़ इस सरकार के लिए मायने नहीं रखती। क्या यही है “सबका साथ, सबका विकास” का असली चेहरा, जहाँ आदिवासी बेटियाँ सुरक्षित नहीं, और इंसाफ़ के लिए उन्हें नेताओं और समाज को सड़क पर उतरना पड़ता है?

मैंने स्वयं इस मामले को गंभीरता से उठाया है। ज्ञापन सौंपते हुए प्रशासन को साफ़ चेतावनी दी है—अगर कल तक दोषियों के खिलाफ़ ठोस कार्रवाई नहीं हुई, तो थाना का घेराव किया जाएगा। यह कोई धमकी नहीं, बल्कि न्याय की लड़ाई में उठाया जाने वाला लोकतांत्रिक कदम है।

सर्व आदिवासी समाज भी इस मामले को लेकर पहले ही ज्ञापन सौंप चुका है। यह लड़ाई अब किसी एक परिवार की नहीं रही, यह पूरे समाज की अस्मिता की लड़ाई है। सरकार को यह समझ लेना चाहिए कि जब समाज सड़क पर उतरता है, तो सत्ता की कुर्सियाँ भी हिल जाती हैं।

आज सवाल सिर्फ़ सीतापुर की एक बेटी का नहीं है—सवाल यह है कि क्या आदिवासी समाज की सुरक्षा और सम्मान इस राज्य में सुनिश्चित है या नहीं? क्या हमारी बेटियों को न्याय पाने के लिए नेताओं और संगठनों के सहारे रहना पड़ेगा? और सबसे बड़ा सवाल—आखिर किसके दबाव में पुलिस अब तक खामोश बैठी है?

हमारी कांग्रेस पार्टी और मैं, अमरजीत भगत, इस लड़ाई में पीड़िता और उसके परिवार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। यह सरकार चाहें जितनी कोशिश कर ले, हम चुप नहीं बैठेंगे। कल तक अगर कार्रवाई नहीं होती, तो सीतापुर का थाना देखेगा कि किस तरह आदिवासी समाज और कांग्रेस कार्यकर्ता एकजुट होकर न्याय की लड़ाई लड़ते हैं।

सरकार को यह याद रखना चाहिए कि आदिवासी समाज ने हमेशा लोकतंत्र की रक्षा की है और अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ बुलंद की है। अगर आज इस बेटी को इंसाफ़ नहीं मिला, तो कल हर गाँव, हर कस्बे से आवाज़ उठेगी—और यह आवाज़ सिर्फ़ पुलिस थाने तक नहीं, विधानसभा और सत्ता के गलियारों तक जाएगा

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