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स्ट्रीट डॉग्स बनाम सुप्रीम कोर्ट

-ओम प्रकाश उनियाल
स्ट्रीट डॉग्स की बढ़ती आबादी की समस्या हर शहर-गांव में है। दिनोंदिन बढ़ती इनकी आबादी सचमुच इंसानों के लिए खतरनाक भी साबित हो रही है। कुत्तों द्वारा अचानक हमला किए जाने की घटनाएं अक्सर उजागर होती रहती हैं। समस्या के हल के लिए किसी भी स्थानीय प्रशासन के पास कोई भी विकल्प नहीं होता। विकल्प होता है तो बहानेबाजी का। कुत्तों को अनावश्यक परेशान करने, भूख व बीमारी से पीड़ित होने के कारण भी वे आक्रामक हो जाते हैं। इनके अलावा अन्य कारण भी हो सकते हैं। कुत्तों को वफादार, इंसान का दोस्त व रक्षक माना जाता है। वे मनुष्य को कई अनहोनी घटनाओं से सचेत भी करते हैं। हिन्दू धर्म में भैरव देवता का वाहन भी माना जाता है। तो फिर इनके साथ दु्र्व्यवहार और दोगली नीति क्यों? समूचे देश में कुत्तों की बढ़ती आबादी के लिए यदि युद्ध स्तर पर समय-समय पर नसबंदी अभियान चलाया जाता तो आज दिल्ली जैसी नौबत नहीं आती। जहां सर्वोच्च न्यायालय ने आवारा कुत्तों को पकड़कर आश्रय गृहों में डालने के आदेश जारी किए हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पशु-प्रेमी विरोध कर रहे हैं। पशु-प्रेमियों का कहना है कि इस धरती पर केवल इंसानों का ही हक नहीं अपितु तमाम बेजुबानों का भी बराबर का अधिकार है। उनके साथ अन्याय हो रहा है। क्योंकि वे अपनी आवाज नहीं उठा सकते। समस्या गंभीर जरूर है लेकिन क्या दिल्ली में ही यह समस्या है अन्यत्र कहीं नहीं? समस्या का समाधान आसानी से निकाला जा सकता था। इसके लिए आपसी सहयोग की जरूरत थी।


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