
अन्नदाताओं की उम्मीदें इस बार बारिश की बेरुखी और बीमारी की मार से टूट गई
रिपोर्टर पुष्कर धाकड़
उज्जैन खाचरोद । तहसील के अन्नदाताओं की उम्मीदें इस बार बारिश की बेरुखी और बीमारी की मार से टूट गई हैं। सोयाबीन की फसलें पीली पड़कर पूरी तरह बर्बाद हो चुकी हैं, जिससे किसानों की मेहनत और लागत दोनों पर पानी फिर गया है। इसी गंभीर समस्या को लेकर श्री धाकड़ महासभा युवा संघ ने जिला अध्यक्ष श्री नारायण मंडावलिया के नेतृत्व में मोर्चा संभाला और अनुविभागीय अधिकारी नेहा साहू को मुख्यमंत्री के नाम एक ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में तत्काल राहत और उचित मुआवजे की मांग की गई है, साथ ही मांग पूरी न होने पर किसानों के साथ मिलकर बड़ा आंदोलन करने की चेतावनी भी दी गई है।
बारिश की कमी और 'पीला मोजेक' ने तोड़ी किसानों की कमर
ज्ञापन में किसानों ने अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि इस साल का सावन बिना बरसे ही बीत गया, जिससे खेतों में खड़ी सोयाबीन की फसलें सूखने लगीं। रही-सही कसर 'पीला मोजेक' नामक बीमारी ने पूरी कर दी। इस बीमारी के कारण सोयाबीन के पौधे पीले पड़कर सूख रहे हैं और उन पर फलियां नहीं आ रही हैं। किसानों का कहना है कि उनकी दो महीने की कड़ी मेहनत और हजारों रुपये की लागत पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है। कई किसानों ने तो कर्ज लेकर बुवाई की थी, जिसकी चिंता अब उन्हें सता रही है।
सरकार से तत्काल सर्वे और मुआवजे की मांग
श्री धाकड़ महासभा युवा संघ ने ज्ञापन के माध्यम से सरकार से मांग की है कि जवाबदार कृषि अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से खाचरोद और आस-पास के गांवों में नुकसान का सर्वे करने का आदेश दिया जाए। उन्होंने कहा कि यह सर्वे सिर्फ कागजी खानापूर्ति न हो, बल्कि वास्तविक नुकसान का सही आकलन किया जाए। ज्ञापन में यह भी साफ कहा गया है कि सरकार को किसानों की इस बर्बादी पर तुरंत ध्यान देना चाहिए और उन्हें जल्द से जल्द उचित मुआवजा देकर राहत प्रदान करनी चाहिए।
ज्ञापन सौंपते समय श्री धाकड़ महासभा युवा संघ के कई पदाधिकारी और बड़ी संख्या में ग्रामीण किसान मौजूद थे, जिन्होंने एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद की। इस दौरान नारायण मंडावलिया, शंकरलाल मंडावलिया, नेहा धाकड़, मुकेश मंडावलिया, रोशनी मंडावलिया, भरत कासनिया, नारायण मेहता, भेरूलाल नन्देड़ा, अजय वाक्तरिया, महेश नायमा, शिव हर्रा, दिनेश नागर और घनश्याम खमोरिया सहित कई प्रमुख सदस्य उपस्थित थे। इन सभी ने साफ किया कि अगर सरकार ने उनकी मांगों पर गंभीरता से विचार नहीं किया, तो वे बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन करने को मजबूर होंगे।