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संयुक्त किसान मोर्चा नागौर,राजस्थान द्वारा द्रोपदी मुर्मू राष्ट्रपति को जिला कलेक्टर नागौर के माध्यम से दिया ज्ञापन दिया।

संयुक्त किसान मोर्चा के राष्ट्रीय आह्वान के तहत आज़ दिनांक 13 अगस्त 2025 को देश भर में प्रदर्शन कर ज्ञापन दिए जा रहे हैं।
संयुक्त किसान मोर्चा ने "बहुराष्ट्रीय कंपनियों भारत छोड़ो" के केन्द्रीय नारे के तहत आंदोलन का आह्वान किया है। आज़ इस आह्वान के तहत नागौर सहित राजस्थान के सभी जिलों में भी विरोध प्रदर्शन किये गये हैं।

इस आंदोलन की प्रमुख मांगों में किसान आंदोलन के समझौते को लागू करने, बिजली का निजीकरण और स्मार्ट-मीटर लगाना बंद करने,सम्पूर्ण क़र्ज़ माफी, फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी जैसी पहले से लंबित पड़ी मांगों के साथ ही मुख्य रूप से केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न देशों के साथ किये जा रहे मुक्त व्यापार समझौतों में खेती-किसानी,किसानों और आम जनता के हितों को बलि चढ़ाना बंद करने की मांग प्रमुख रूप से शामिल हैं।
विभिन्न यूरोपीय देश,अमरीका और अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्रेड वार के जरिए दुनिया भर से अपने आयात पर मनमर्जी का टैरिफ बढ़ाने और अपने यहां से निर्यात पर टैरिफ घटाने के लिए केंद्र सरकार पर दबाब डाल रहे हैं।
हमारे देश के साथ भी इसी प्रकार का दबाव डाला जा रहा है।

भारत-अमरीका व्यापार समझौता में अमेरिकी कृषि व्यवसायी निगम एवं अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों का दबाब कृषि एवं डेयरी उत्पादों का आयात पूरी तरह से खोलने के लिए है।

भारत सरकार दबाब में किसी भी समय समझौते पर हस्ताक्षर कर सकती है तो यह तलवार देश के किसानों के सिर पर लटकेगी। लगभग सभी कृषि उत्पाद अनाज,दलहन,डेयरी आदि इन सबका निर्बाध आयात हमारी खेती-किसानी, आजीविका और ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था को बरबाद कर देगा।

इंग्लैंड आदि कुछ देशों के साथ इसी तरह के मुक्त व्यापार समझौते गुपचुप केंद्र सरकार ने कर भी लिये हैं।इन समझौतों से पहले देश की संसद,किसानों और किसान संगठनों के साथ कोई चर्चा करने की जरूरत भी नहीं समझी गई।

संयुक्त किसान मोर्चा भारत सरकार से खेती-किसानी विरोधी समझौता ना करने की मांग के साथ-साथ "बहुराष्ट्रीय कंपनियों भारत छोड़ो" के नारे के साथ साम्राज्यवादी विस्तारवादी आर्थिक नीतियों के प्रतीक अमेरिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एवं समर्पण की मुद्रा में खामोश बैठे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसा किया तो मजबूरन बड़े आंदोलन करने पड़ेंगे।
केन्द्र सरकार द्वारा किसानों के खिलाफ लाए गए तीन घोर किसान विरोधी कानून जिन्हें ऐतिहासिक किसान आन्दोलन के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को माफी मांगकर वापस लेना पड़ा था।

उस समय केन्द्र सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा को लिखित आश्वासन दिया था कि किसानों की सभी मांगों न्यूनतम समर्थन की कानूनी गारंटी,ऋण माफी और अन्य मांगों को शीघ्र पूरा किया जाएगा।
परंतु अत्यंत खेद का विषय है कि किसानों की वो सभी मांगे आज भी लंबित पड़ी हैं और केन्द्र की भाजपा-आरएसएस सरकार और प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों के साथ वादाखिलाफी करते हुये किसानों से आंखे फेर ली हैं।

देश में हर रोज़ किसान भारी कर्ज के नीचे दबे होने की वजह से आत्महत्यायें कर रहे हैं।

स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार सभी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किए जाने की मांग के लिये आज़ भी किसान को सड़कों पर लड़ना पड़ रहा हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून तो बहुत दूर की बात है।

- खेती-किसानी से जुड़े किसानों, खेतिहर मजदूरों एवं ग्रामीण दस्तकारों को सामाजिक सुरक्षा के लिए 10000/रुपए मासिक पेंशन की मांग भी लंबित है। केंद्र सरकार द्वारा लम्बे से इन सब मांगों को अनदेखा किया जा रहा है‌।

- दूसरी ओर केंद्र सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र, किसान,मजदूर और आम जनता की कीमत पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए नए-नए कदम उठाए जा रहे हैं और उन्हें बड़ी बेरहमी से लागू भी किया जा रहा है।
- ऐसा ही एक कदम बिजली क्षेत्र का निजीकरण करके उसे पूंजीपतियों के हाथ सौंपने का है।
इस योजना के तहत विश्व बैंक द्वारा पोषित 1.5 लाख करोड़ की योजना बनाई गई है, जिसके तहत देश भर में सभी बिजली उपभोक्ताओं के यहां पहले से लगे हुये और सही काम कर रहे बिजली मीटरों को हटाकर स्मार्ट मीटर लगवाये जा रहे हैं।
इस योजना के माध्यम से अडानी,एलएंडटी,जीनस और अन्य कार्पोरेट्स को अरबों रुपए का फायदा पहुंचाया जा रहा है।
इसके अलावा बिजली की दरें 200 प्रतिशत महंगी होने से किसानों और आम जनता पर भारी आर्थिक बोझ पड़ेगा।
ये स्मार्ट-मीटर को लगाने का खर्च भी येन केन प्रकरेण आम जनता पर ही पड़ने वाला है। बाक़ी जो और लूट-खसोट होगी वो अलग है।

- किसानों पर एक और बड़ा हमला भूमि अधिग्रहण (लैंड पूलिंग) के माध्यम की जा रही जमीन की लूट का है।
इस जमीन की लूट-खसोट में किसानों के लम्बे संघर्षों के बल पर हासिल किये गये भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।
इस लैंड पूलिंग की लूट में ना ग्राम पंचायत/ग्राम सभाओं के प्रस्ताव से स्वीकृति ली जाती है और ना ही किसानों की राय का कोई मतलब है।
सब नियम कानून ताक पर रख कर रेल, शहरी विकास,एक्सप्रेस हाईवे,बांध,खानों का खनन,औद्योगिक विकास,सौर ऊर्जा, विद्युत प्रसारण-वितरण,पर्यटन इत्यादि के नाम पर किसानों से जमीनें छीनी जा रही हैं।
दूसरी ओर वनाधिकार कानून बन जाने के बाद भी आदिवासी क्षेत्र के आदिवासी किसान घर और जमीन के पट्टे के लिए दर-दर भटक रहे हैं।
महोदया,देश का किसान अपनी ज़मीन और घर बचाने के लिए मरने-मारने पर उतारू हैं,लेकिन सत्तामद में चूर सरकार है कि अपने पूंजीपति आकाओं और कारपोरेट घरानों के दबाव में किसानों पर लगातार हमले किये जा रही हैं ।
महोदया,एक और बड़ा हमला केंद्र सरकार द्वारा देश के सहकारिता क्षेत्र पर किया जा रहा है।
सहकारिता जो कि राज्य के अधिकार क्षेत्र का विषय है, उसे भी केंद्र सरकार ने अपने अधिकार क्षेत्र में लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन कर दिया है।
यह राज्य के अधिकारों और देश के संघीय ढांचे पर हमला है ।सहकारिता का केंद्रीकरण सहकारिता की मूल आत्मा के ही विपरीत जिसका कि अत्यधिक नकारात्मक विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
इसका देश भर में तीव्र विरोध हो रहा हैं।
इनके अलावा केंद्र और राज्य सरकारों की जन-विरोधी नीतियों , जिंसों की खरीद की मांग, सिंचाई हेतु पानी की मांग, फसल बीमा के मुआवजे की मांग,भ्रष्टाचार,अच्छे और असली खाद-बीज की समय पर उपलब्ध कराने इत्यादि मांगें हैं जिनके लिए आज देश का किसान संघर्ष कर रहा हैं।
इन्हीं सब सवालों और प्रमुख नीतिगत मुद्दों को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा ने आज दिनांक 13 अगस्त 2025 को पूरे देश में " बहुराष्ट्रीय कंपनियों भारत छोड़ो" नारे के साथ विरोध प्रदर्शन किया है।
महोदया,
केंद्र की भाजपा-आरएसएस सरकार की घोर पूंजीवादी कार्पोरेट परस्त नीतियां देश के आम आवाम विशेषकर मेहनतकश जनता के हितों के खिलाफ हैं ।
अतः देश का मेहनतकश आवाम और केंद्रीय श्रमिक संगठन भी किसानों के इस संघर्ष के साथ हैं।
महोदया,
संयुक्त किसान मोर्चा, राजस्थान सभी किसानों, खेतिहर मजदूरों, श्रमिकों, महिला, छात्र , नौजवानों देश के बुद्धिजीवियों की ओर से केंद्र सरकार को यह चेतावनी देना चाहता है कि वह अपनी कार्पोरेट्स परस्त नीतियों को बदलें , साम्राज्यवादी ताकतों के समक्ष घुटने टेकना , गलबहियां करना बंद करें और अपने साम्प्रदायिक विभाजन पैदा करके राजसत्ता पर काबिज रहने की नीति का परित्याग करें अन्यथा आने वाले समय में एक बार पुनः ऐतिहासिक किसान आन्दोलन के दौरान किसानों, मजदूरों, शहरी ग्रामीण गरीबों और देश की आम जनता के एकजुट क्रांतिकारी आन्दोलन का सामना करने के तैयार रहे।
आज दिनांक 13 अगस्त 2025 का "बहुराष्ट्रीय कंपनियों भारत छोड़ो आंदोलन" आने वाले समय के संघर्षों की शुरुआत है।
ज्ञापन देने संयुक्त किसान मोर्चा के जिला संयोजक मेहराम नागवाड़िया,बीकेयू के जिलाध्यक्ष अर्जुनराम लामरोड़, उपाध्यक्ष प्रेमसुख जाजड़ा उपस्थित थे।
अर्जुन राम लोमरोड जिलाध्यक्ष भारतीय किसान यूनियन टिकैत नागौर।

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