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हिंदुस्तान की आजादी हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई की मुश्तरका कुर्बानियों का नतीजा है।।।।।। ( दानिश आलम फारुकी)

हिंदुस्तान की आजादी हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई की मुश्तरका कुर्बानियों का नतीजा है।।।।।।
( दानिश आलम फारुकी)
हर साल 15 अगस्त को हिंदुस्तानी एक नए जोश खरोश के साथ अपनी आजादी का जश्न मनाते है। लाल किले से लेकर शहर के हर चोरहे और गांव की चौपाल तक, तिरंगा अपनी पूरी आबओ ताब के साथ लहराता है। यह दिन सिर्फ एक राष्ट्रीय त्योहार नहीं, बल्कि उन लाखों शहीदों की कुर्बानियों की याद दिलाता है, जिन्होंने हमें यह अनमोल आजादी दिलाई।
हिंदुस्तान को तन के गोरे मन के काले अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए हमारे बुजुर्गों ने अपनी जान का नजराना पेश किया था। देश की आजादी हिंदू-मुस्लिम, सिख ईसाइयों की मुशतरका कुर्बानियों का नतीजा है।

जहां महात्मा गांधी, नेता सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, शहीद भगत सिंह ने देश के लिए क़ुर्बानी दी हैं, वहीं मुफ़्ती किफायतुल्ला, अताउल्लाह शाह बुखारी, शैखुल हिंद मौलाना महमूदूल हसन, मौलाना हुसैन अहमद मदनी, मौलाना उबेदुल्ला सिंधी, मौलाना जाफर थानेसरी, मौलाना अबुल कलाम आजाद, खान अब्दुल गफ्फार टीपू सुल्तान अशफ़ाकउल्ला खान नवाब सिराजुद्दौला जैसे आजादी के मतवालों ने कुर्बानियां देकर मुल्क को आजादी दिलाने में अहम किरदार अदा किया था।
तकरीबन 200 साल से भी ज्यादा समय तक अंग्रेजों से जिद्दौ जेहद के बाद, 15 अगस्त, 1947 को हमें आज़ादी मिली। यह दिन हमें याद दिलाता है कि आज़ादी कितनी मुश्किलो और कुरबानीयो से मिली है और हमें इसे संजोए रखना है।
आज, हम एक आज़ाद देश में सांस ले रहे हैं, लेकिन हमारी आज़ादी को बनाए रखने और इसे और मजबूत बनाने की जिम्मेदारी हम सभी पर है।
मिलेगी मंजिले मकसूद ये इमान रखते हैं
हम अपनी रहनुमाई के लिए कुरान रखते हैं
वफादारी वतन से हो यही कुरान काहता है
हम अपने दिल के हर गोशे में हिंदूस्तान रखते हैं हम अपने दिल के हर गोशे में हिंदूस्तान रखते हैं
(दानिश आलम फारूकी नजीबाबादी)

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