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खंडेवला गांव का कुश्ती सितारा स्वर्गीय श्री हुकम सिंह की स्मृति में खड़ा होगा समर्पित



पटौदी खंड के ऐतिहासिक खंडेवला गांव के सपूत, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन करने वाले कुश्ती के दिग्गज स्वर्गीय श्री हुकम सिंह को लेकर ग्रामीणों में गर्व और भावनाओं का माहौल है। उनकी स्मृति में, गाँव के कुश्ती अखाड़े का नाम अब "हुकम सिंह अखाड़ा" रखा जाएगा।

सन 1940 में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे हुकम सिंह के जीवन की शुरुआत कठिनाइयों से हुई। जन्म के तुरंत बाद माता का निधन हो जाने के कारण उनका पालन-पोषण संयुक्त परिवार में हुआ। मात्र सात वर्ष की आयु में उन्होंने कुश्ती की शुरुआत की और स्थानीय स्तर पर अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी।

1960 के दशक की शुरुआत में उन्होंने पंजाब पुलिस में भर्ती होकर सेवा की और बाद में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में शामिल हुए। ड्यूटी के साथ-साथ उन्होंने अपनी कुश्ती की साधना को भी जारी रखा। 1966 में किंग्सटन, जमैका में आयोजित ब्रिटिश एम्पायर और कॉमनवेल्थ खेलों (अब कॉमनवेल्थ गेम्स) में उन्होंने वेल्टर वेट वर्ग में कांस्य पदक जीतकर देश का मान बढ़ाया।

इसके अलावा, उन्होंने कई राष्ट्रीय व सर्विस स्तर की प्रतियोगिताओं में विजय हासिल की और 1967 में नई दिल्ली में आयोजित विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में भी भाग लिया। खेल के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए 1969 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. वी.वी. गिरि ने उन्हें राष्ट्रपति प्रशंसा पत्र से सम्मानित किया।

देश सेवा में भी वे पीछे नहीं रहे। 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान जम्मू-कश्मीर में बीएसएफ की 100 बटालियन के साथ उन्होंने स्वेच्छा से सीमाओं की रक्षा का कार्य किया। खेल और सेवा, दोनों क्षेत्रों में समर्पण के चलते तत्कालीन बीएसएफ महानिदेशक श्री अश्विनी कुमार (आईपीएस) ने उन्हें सहायक कमांडेंट पद पर पदोन्नत किया।

सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने अपना जीवन गाँव व आसपास के युवाओं को कुश्ती प्रशिक्षण देने में लगा दिया। उन्होंने अपने निजी संसाधनों से अखाड़ा बनाया और निःशुल्क प्रशिक्षण देकर अनेक युवाओं को कुश्ती की बारीकियाँ सिखाईं। उनके प्रशिक्षित कई पहलवान आज राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर प्रदर्शन कर चुके हैं और जीवन में आगे बढ़ रहे हैं।

सन 2012 में 72 वर्ष की आयु में हृदयाघात के कारण उनका निधन हो गया। उनके संघर्ष, समर्पण और प्रेरणादायी जीवन के सम्मान में अब खंडेवला गाँव का अखाड़ा उनके नाम पर रखा जाएगा। ग्रामीणों का कहना है कि "हुकम सिंह केवल एक पहलवान नहीं थे, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा थे।"

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