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ऐ मेरे वतन के लोगो जरा याद करो कुर्बानी....

मेरे प्यारे साथियों।
जब-जब हम 15 अगस्त पर ‘आजादी’ का उत्सव मनाते हैं, जब-जब तिरंगा फहरता है, हमारे भीतर से एक आवाज़ उठती है — "हम भारत के लोग..." यही शब्द हैं जो हमें संविधान की प्रस्तावना में सुनाई देते हैं, और यही शब्द हमारे आज़ादी के संघर्ष की आत्मा हैं।
हम भारत के लोग — यही वे शब्द हैं जो गांधी के सत्याग्रह में दिखे, यही वे शब्द थे जो नेहरू के सपनों में गूंजे, यही वे शब्द थे जो सरदार पटेल की एकता के प्रयासों में दिखाई दिए। और यही शब्द थे जिनके लिए भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, अशफाक उल्ला खाँ और हजारों शहीदों ने फांसी का फंदा चूमा।
जब हमारे संविधान ने यह कहा — “हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए...” तो उसमें उस पूरी पीढ़ी का लहू, त्याग और बलिदान झलक रहा था जिसने आज़ादी की मशाल को बुझने नहीं दिया।
आजादी केवल अंग्रेज़ों से नहीं मिली थी, आजादी मिली थी उस सोच से, जो इंसान को जाति, धर्म, भाषा में बाँधना चाहती थी। आजादी मिली थी उस डर से, जो जनता को हुकूमत के आगे सिर झुकाने पर मजबूर करता था।
संविधान की प्रस्तावना ही वह सपना है, जो आज़ादी के दीवानों ने देखा था। जहाँ हर नागरिक को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे की गारंटी दी गई।
आज जब हम आज़ाद भारत की धरती पर खड़े हैं, तो यह याद रखें कि यह सिर्फ़ एक राजनीतिक आज़ादी नहीं, यह मानव गरिमा की रक्षा करने वाली आज़ादी है, यह हर व्यक्ति को उसकी पहचान और आत्म-सम्मान देने वाली आज़ादी है।
हमें उस आज़ादी की क़ीमत को समझना होगा। हमें फिर से उस प्रस्तावना को अपने दिल में दोहराना होगा — जहाँ हम हर नागरिक को ‘समान अधिकार’ और ‘समान अवसर’ देने के लिए प्रतिबद्ध हों।
आज, हम संकल्प लें कि उस प्रस्तावना के हर शब्द को अपने जीवन में उतारें। तभी हमारे शहीदों, गांधी, नेहरू और पटेल के सपनों का भारत सच में ‘सर्वोच्च भारत’ कहलाएगा।
जय हिंद, जय संविधान, जय भारत। वंदे मातरम्।
🇮🇳दीपक कुमार पाल (आनंद बोधि)🇮🇳

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