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गोकुलाष्टमी विशेष : आज केवल कृष्ण ही नहीं, योगमाया का भी जन्मोत्सव!

वृत्त द्वारा: धनंजय शिंगरुप
१६, अगस्त २०२५

आज देशभर में गोकुलाष्टमी का पर्व हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की कथा तो हर कोई जानता है, लेकिन इसी दिन जन्मी एक और दिव्य शक्ति को लोग अक्सर भूल जाते हैं वह हैं योगमाया।
कथाओं के अनुसार, जब कंस को आकाशवाणी से चेतावनी मिली कि देवकी का आठवां पुत्र उसका संहार करेगा, तब उसने जन्म-जन्मते ही शिशुओं का वध करना शुरू किया। श्रीकृष्ण के जन्म के समय भी देवकी की कोख से एक कन्या प्रकट हुई। उस कन्या का अदलाबदल कर वासुदेव ने श्रीकृष्ण को गोकुल में पहुँचाया।
यह कन्या साधारण बालिका नहीं, बल्कि आदिशक्ति का अवतार योगमाया थी। जब कंस ने क्रोधित होकर उसे जमीन पर पटकना चाहा, तब वह हाथ से छूटकर आकाश में चली गई और घोषणा की
“कंसा! तेरा संहारक जन्म ले चुका है। मैं चाहूँ तो अभी तुझे नष्ट कर दूँ, परंतु तूने मेरे चरणों को स्पर्श किया है। इसे मैं तेरी विनम्रता मानती हूँ और तुझे क्षमा करती हूँ।”
इस प्रकार योगमाया स्वर्ग लोक में विलीन हो गईं।
शास्त्रों में यह स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता कि योगमाया का वध हुआ था। बल्कि वे स्वयं दिव्य शक्ति थीं, जो भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के साथ वचन-पालन हेतु प्रकट हुईं।

कृष्ण जन्म का संदेश हमने समझना चाहिए
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कारागार की अंधेरी रात में हुआ। उसी क्षण पहरेदार गहरी नींद में सो गए, बेड़ियाँ टूट गईं और बंद दरवाजे अपने आप खुल गए।
यह प्रतीक है कि जब कृष्ण (चेतना, जागरूकता) हृदय में जन्म लेते हैं, तब जीवन का हर अंधकार मिट जाता है।
सभी बंधन अहंकार, "मैं और मेरा" टूट जाते हैं और भीतर के दरवाजे (जाति, संबंध, व्यवसाय आदि) खुल जाते हैं।
कृष्ण का त्यागमय जीवन हमने अनुभवना चाहिए
जग में सबसे त्यागमय पुरुष यदि कोई हुआ तो वह है कृष्ण।
माँ-बाप, बंधु-बांधव, गाँव-राज्य, यहाँ तक कि गोपियां और सखा-सखियाँ — सबको समयानुसार छोड़ना पड़ा।
लेकिन उन्होंने कभी मोह नहीं किया, सहज भाव से आगे बढ़ते गए।
उनका जीवन सिखाता है
न्याय-अन्याय का निर्णय न करो, किसी पर आसक्ति न करो, केवल कर्म करते रहो।
योगमाया और कृष्ण का संदेश
योगमाया और कृष्ण दोनों का जीवन एक ही शिक्षा देता है :
गुंथो मत, बस अपना कार्य करते रहो।
क्षणभंगुर जीवन में शाश्वत महत्व केवल भक्तिभाव और कर्मयोग का है।
आज गोकुलाष्टमी के इस पावन अवसर पर हमें स्मरण करना चाहिए कि यह दिन न केवल श्रीकृष्ण का जन्मदिन है, बल्कि योगमाया का भी जन्मोत्सव है — वह शक्ति जिसने श्रीकृष्ण के अवतरण को संभव बनाया।

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