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यह कैसा व्यवस्था परिवर्तन है. ...हर कोई हैरान है..

बार बार कर्मचारियों की अनदेखी. .या सरकार की बेबसी..

जब से हिमाचल में वर्तमान सरकार ने कार्यभार संभाला हुआ है, आम जनता ठगी ठगी महसूस कर रही है. .सरकार के आधारहीन और अनुभव हीन वादों ने हिमाचल की जनता को स्तब्ध कर दिया है…कभी ऐसा भी महसूस होता हैकि सरकार की किसी भी दिशा में अनुभवहीन कार्यशैली हिमाचल के वर्तमान के साथ साथ भविष्य को भी धूमिल कर के ही रहेगी.

कभी कभी सरकार की इस लाचारी पर अचरज भी होता हैकि सरकार जनता की पालनहार होती है जनता की तकलीफें दूर करना सरकार का उतरदायित्व़ होता है..परंतु यहां तो व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर सब कुछ अस्त व्यस्त करके रख दिया है…कोई भी कार्ययोजना या घोषणा धरातल पर लागू होती नहीं दिख रही है. .लोग हैरान परेशान हैं कि सरकार का काम सुविधा प्रदान करना होता है परंतु इस सरकार ने तो सर जन जन को दुविधा में डाल दिया है..
जनता अब अपने निर्णय पर पछता रही है और पूर्व की सरकारों को याद कर रही है.
व्यवस्था इतनी अस्त व्यस्त हो चुकी है कि सरकारी व्यवस्था के अधिकतर कार्य न्यायालय के माध्यम से ही कार्यान्वित हो रहें हैं. …..व्यवस्था परिवर्तन. .
अविभावक बच्चों के विद्यालयों के बंद होने पर हैरान हैं. .क्योंकि हिमाचल की भौगोलिक परिस्थितियों में विद्यालय बंद करना बिल्कुल अनुचित है… शिक्षित बेरोजगार लोग नौकरी के इंतजार कर कर के थक चुके हैं. .
वो कर्मचारी वर्ग जो बड़ी उम्मीदों से इस सरकार को बनाने में आगे आया था,वो हैरान परेशान हैकि पता नहीं पैंशन लेने तक सलामत भी रहेंगे या नहीं. .क्योंकि वर्तमान समय तो सरकार ने धूमिल कर के रख दिया है..भविष्य की पेंशन किसने देखी….
हिमाचल के इतिहास में पहली बार घटित हुआ है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री की बजट घोषणाएं मजाक बन कर रह गई हैं. …प्रदेश के महत्वपूर्ण दिवस पर सभी की उम्मीदें लगी रहती हैं. .15 अप्रैल और 15 अगस्त जैसे महत्वपूर्ण दिवस भी इस सरकार ने फीके और महत्वहीन कर दिए हैं. .आखिर ऐसा व्यवस्था परिवर्तन जो आम जनता के लिये दुख लेकर आया है,क्या इसी में सरकार सुख का अहसास कर रही है…या यह एक संवेदनहीनता और अनुभवहीनता का ज्वलंत उदाहरण है..
कर्मचारियों के दम पर ही हर सरकार अपनी योजनाओं को अमलीजामा पहनाने का कार्य करती है परंतु यहां आलीशान कमरों में बैठे अधिकारी ही व्यवस्था चला रहे हैं।
एक दौर होता था जब कर्मचारी हित में संगठन सरकार और व्यवस्था को हिला कर रख देते थे..परंतु अब न वो संगठन रहे न संगठन के क्षमतावान नेता. ..जो भी हैं वो अपने अपने स्वार्थपूर्ति में और अस्तित्व के लिये परेशान हैं. …
आने वाला समय देवभूमि की जनता और सरकार की व्यवस्था के लिये कैसा होगा. …यह अब प्रदेश में हर किसी को महसूस होता दिख रहा है..

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