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नागपुर का अनोखा "मारबत-बडग्या" उत्सव : 145 वर्षों की परंपरा आज भी जीवंत



धनंजय शिंगरूपनागपुर (प्रतिनिधि) :
भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में अद्वितीय परंपरा के रूप में प्रसिद्ध "मारबत और बडग्या" की शोभायात्रा इस वर्ष भी नागपुर में पूरे उत्साह और जोश के साथ निकाली गई। यह परंपरा करीब 145 साल पुरानी है और आज भी नागपुर की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में जीवित है।

इस उत्सव की शुरुआत 1881 में नागपुर में तेली समाज के बंधुओं ने की थी। माना जाता है कि अंग्रेज़ों की समर्थक बांकाबाई के विरोध में उसका पुतला बनाकर, उसे गलियों में घुमाकर और अंत में दहन कर लोगों ने अपनी नाराज़गी व्यक्त की थी। बाद में उसके पति को भी दोषी माना गया और उसका पुतला भी तैयार होने लगा। महिला के पुतले को मारबत और पति के पुतले को बडग्या कहा गया।

मारबत दो प्रकार की होती है –
काली मारबत
पीली मारबत
इन दोनों को बांस, लकड़ी, कपड़े और रंगों से बनाया जाता है। बडग्या के गले में फटे-पुराने कपड़े, झाड़ू, बर्तन, टायर के टुकड़े इत्यादि की माला पहनाई जाती है।

यह उत्सव तन्हा पोला (पोल्यापूर्णिमा के अगले दिन) मनाया जाता है। इस दिन बच्चे गलियों में घूमते हुए आवाज़ लगाते हैं –
"ले जाओ रे मारबत, ले जाओ रे बडग्या!"
मारबत और बडग्या को समाज की बुराइयों, कुरीतियों और बुरे प्रभावों का प्रतीक माना जाता है। इन्हें जुलूस के रूप में पूरे शहर में घुमाकर अंत में दहन किया जाता है। इसका उद्देश्य है –
समाज से बुराइयों को दूर करना
रोग और विपदाओं से बचाव की प्रार्थना करना
प्रशासन और व्यवस्था के प्रति जनता का आक्रोश व्यक्त करना
वर्तमान स्वरूप
समय के साथ इस उत्सव ने आधुनिक रूप धारण कर लिया है। अब इसमें राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय और स्थानीय मुद्दों पर आधारित बडग्ये बनाए जाते हैं।
2017 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर आधारित बडग्या आकर्षण का केंद्र था।
पाकिस्तान और आतंकवाद के खिलाफ गुस्से का इज़हार भी पुतलों और नारों के माध्यम से किया गया।
इस साल भी नेहरू चौक पर पहुंचे जुलूस में डीजे की धुन पर थिरकते युवक-युवतियां, ढोल-ताशों की गूंज और "ईडा… पीडा… टलो…" के नारों से पूरा वातावरण गूंज उठा।

मारबत उत्सव केवल धार्मिक या सांस्कृतिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह जनता की सामूहिक अभिव्यक्ति का मंच है। इसमें नागरिक प्रशासन के खिलाफ अपने गुस्से और असंतोष को व्यंग्यात्मक अंदाज में प्रकट करते हैं। साथ ही, गांव-गांव से हजारों लोग नागपुर आकर इस अद्भुत दृश्य का आनंद लेते हैं।

145 सालों से चली आ रही यह परंपरा आज भी नागपुर की अस्मिता और सामाजिक चेतना का प्रतीक है। मारबत और बडग्या के दहन से नागपुरवासी मानते हैं कि समाज से बुराइयां दूर होंगी और नया साल शांति व समृद्धि लेकर आएगा।

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