
श्रीबालाजी गुरु हेमन्त कुमार शिक्षक दिवस विशेष
श्रीयुत् हेमन्त कुमार शर्मा (गुरू)
श्रीबालाजी (नागौर) राजस्थान
(वरिष्ठ अध्यापक-सामान्य
सेवारम्भ तिथि : 03 अगस्त 1991-
सेवा-निवृत्ति तिथि : 31.08.2024
वीर प्रसविनी राजस्थान की देवरमण धरती बाड़मेर जिले के ग्राम सनावड़ा की पावन धरा पर दिनांक 08 अगस्त 1964 को पिता श्री नत्थूलालजी शर्मा एवं माता श्रीमती गायत्रीदेवी की गृहस्थ वाटिका में श्री हेमन्तकुमार शर्मा के रुप में एक ऐसा सुरभित पुष्प पल्लवित हुआ, जिसने एक दीप पुंज की भांति अपने क्षेत्र को ही नहीं अपितु कार्यक्षेत्र के रूप में अपनी कर्मधरा की पावन भूमि को भी वर्षों तक संपोषित किया। अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्राम सनावड़ा की स्वर्णाभसिकता में माटी की सौंधी महक के साथ आरम्भ करते हुए आगामी शिक्षा श्रीबालाजी एवं नागीर में पूर्ण अनुशासन एवं शैक्षिक उन्नयन के मापदण्डों के साथ सम्पन्न की। महाविद्यालयी शिक्षा छोटी काशी अभिधान से विश्रुत बीकानेर नगर के श्री जैन पी. जी. महाविद्यालय से वाणिज्य विषय में वरेण्य अंकों के साथ उपाधि प्राप्त की।
आपके पिताश्री स्व. नत्थूलालजी शर्मा ने ग्रामसेवक पद की शाब्दिक सार्थकता सिद्ध करते हुए सर्वतो भावेन सेवा की सुरभि से जन-मन को सुवासित किया। बालाजी महाराज की अपरिमित अनुकम्पा से सुदीर्घ सेवावधि पूर्ण कर यहां के जन-गण-मन में अपनी कर्मजा शक्ति व सेवापूरित मनः भावनाओं से यहीं के होकर रह गये। आतिथ्य सत्कार का सद्गुण इनके परिवार के आबालवृद्ध परिजनों में नैसर्गिक रूप से सप्तकल्पांतजीवी महर्षि मार्कण्डेय सदृश सबके रोम-रोम में अनुगुंजित रहा है। राजकीय सेवा में रहते हुए ग्राम्य जनों की सेवा में अपनी सामर्थ्य से बढ़कर समर्पित रहे। आपकी सेवा मूलक स्मृतियाँ आज भी जन-मन के हृदयाकाश में सतरंगी आभा युक्त इंद्रधनुष सी उन्मुक्त रूप में भावांकित है अपने पिताश्री के पावन पदचिह्नों का सम्यक्तया अनुगमन करते हुए अपने परिजनों, बालसखाओं एवं बांधवों के समेकित कोलाहलमिश्रित स्नेहिल स्वरों की अनुगुजित प्रतिध्वनियों से सतत् अनुप्रेरित किशोरवय में कर्म और भाग्य के युगल तरंगों से सुसज्जित यह प्रगति रथ समयसारथी के पदचिह्नों का आदर्श अनुकरण करता हुआ दिनांक 03 अगस्त 1991 को समाज द्वारा सर्वाधिक समादूत अध्यापक पद पर राजकीय प्राथमिक विद्यालय संख्या-1, श्री बालाजी में सर्वप्रथम पदस्थापित हुए एवं निरन्तर इसी परिक्षेत्र में ही अपनी अहर्निश सेवाएँ दीं। सेवाकाल में आपनी ने पदोन्नति पर राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय श्रीबालाजी में वरिष्ठ अध्यापक के पद पर अपनी निःस्पृह सेवाएँ देते हुए अपनी 33 वर्ष की सनिष्ठ, समर्पित, संकल्पित एवं समर्चनीय सेवाएँ प्रदान की आपके संवापूरित शैक्षिक निर्देशन एवं स्वयं द्वारा रोजगारोन्मुखी शिक्षण से अनेक विद्यार्थियों का राजकीय सेवा में चयन हुआ है। आपने विद्यार्थियों के स्वर्णिम भविष्य की सर्वोच्च संभावनाओं से सृजित करते हुए जिम्मेदारियों की खुशबू से सुवासित कर्तव्यपरायणता की सिद्ध माटी से निर्मित कठोर परिश्रम और पसीने के आवाँ पर परिपक्व प्राकृतिक अमशैली से परिपूर्ण यह अक्षय पावन घट शबनम सी आँखों सदृश छलकता हुआ हीरक मौक्तिक जैसी तुहिन कणों से युक्त आज एक प्राचीन मौन साधना शिखर के स्वर्णिम कलश जैसा प्रतीत हो रहा है। सफरनामे में इतिश्री लिख आखिरी पन्ने को पलटती हुई तनिक विश्राम हेतु कम्पायमान अंगुलियों से कलम अब कलमदान की ओर बढ़ रही है। बैंक कर्मी पुत्र लोकेश शर्मा और शिक्षिकाद्वयी पुत्रियाँ दीपिका शर्मा व निशा शर्मा सहित परिजनों के चिरप्रतीक्षारत सजल नयन आँखों में उमड़ते सावन भादों की घनघोर घटाओं को बड़ी बेसब्री से संभालती हुई माँ के साथ गृहस्थ जीवन को सार्थकता देने वाली सहधर्मिणी श्रीमती किरण शर्मा के अवरुद्ध कंठों के सुरीले स्वागत गीत बालपरिजनों के करकंजों में सुशोभित मौन विजय मालाएँ, ढोल-तासों की हर्षवर्द्धक सांकेतिक सुमधुर ध्वनियाँ मुखारविन्द पर बहुरंगी गुलाल पाणि पल्लवों में शोभित फलस्वरूप श्रीफल सभी धूप छाया की भांति सुख दुख सम्मिलित जीवन कानन की समस्त संचित अनुभूत्तियाँ ही इस आशिक शाब्दिक अभिनन्दन को पूर्णता प्रदान करती हुई प्रतीत हो रही है।सुदीर्घ सेवाकाल का सरकारी सफर सम्पूर्ण कर सकल बंधनों से नैसर्गिक मुक्ति ले अस्ताचल की ओर बढ़ता हुआ क्षिप्रगामी ताम्रवर्णी तनिक क्लांत दिनकर सागर की लहरों का हमराज़ बनकर कारवां से दूर आज इस लवाजमे की तमाम नजरों से ओझल होने को आतुर लगता है।ये रिटायरमेट हो गए फिर भी ये अपनी सेवा में लगे हुए अगर कोई भी व्यक्ति आधी रात को भी इनके पास भी अगर कोई चला जाता है तो ये कोई बहाना नहीं बना ते किसी को खाली नहीं निकालते ये पहले घर पर गए हुए को चाय पानी खाना खिलाते हैं बाद उसका काम करते है फिर उसको आराम बैठाकर उसका काम करते हैं इन्होंने आज तक सभी को निशुल्क कोचिंग कराके और अगर किसी के पास फॉर्म भरने के पैसे नहीं होते तो ये अपनी जेब से पैसा देकर कईयों के फॉर्म भरवादिए और नौकरी लगादी हीरक हार सी सुसज्जित तमस की श्यामल सेज पर विश्रामोपरांत कलभोर की स्वर्णिम रश्मियां क्रमशः कर्म रेखाओं में प्रारब्धानुसार परिवर्तन करती हुई नियमित स्वाध्याय, समाजसेवा, ईश्वरोपासना की ओर आपको सतत् अग्रेषित करती रहेगी।