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फल्गु नदी की कहानी सुने।द्वितीया श्राद्ध पर,आइए हम सब मिलकर सभी पितरों की आत्मा की शांति और परम मोक्ष की कामना करें ।

फल्गु नदी की कहानी सुने।द्वितीया श्राद्ध पर,आइए हम सब मिलकर सभी पितरों की आत्मा की शांति और परम मोक्ष की कामना करें ।

फल्गु नदी की कहानी माता सीता से जुड़ी है, जिन्हें त्रेतायुग में भगवान राम द्वारा अपने पिता राजा दशरथ के श्राद्ध (पिंडदान) के लिए फल्गु नदी के तट पर साक्षी बनाने की ज़रूरत पड़ी थी, लेकिन नदी ने गवाही नहीं दी। इससे क्रोधित होकर, सीता माता ने फल्गु नदी को शाप दिया कि वह भूमि के नीचे बहेगी, और तब से यह नदी 'भू-सलिला' (भूमिगत नदी) कहलाती है।
पौराणिक कथा
पिंडदान का अवसर: त्रेतायुग में, जब भगवान राम और लक्ष्मण अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान करने गया पहुँचे, तो पिंडदान के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने में वे नगर चले गए थे, और उन्हें देर हो गई।
सीता का प्रयास: पिंडदान का समय निकलता जा रहा था। इस दौरान, फल्गु नदी के तट पर बैठी माता सीता को राजा दशरथ ने दर्शन दिए और पिंडदान करने का आग्रह किया।
नदी की गवाही: समय निकलता देख, माता सीता ने फल्गु नदी, अक्षय वट, एक ब्राह्मण, तुलसी और गौमाता को साक्षी मानकर रेत से पिंड बनाए और पिंडदान किया।
नदी का झूठ: जब भगवान राम और लक्ष्मण लौटे, तो माता सीता ने उन्हें सारी बात बताई। अक्षय वट ने भी सीता की बात की पुष्टि की, लेकिन फल्गु नदी कुछ नहीं बोली।
सीता का श्राप: सीता माता फल्गु नदी के इस झूठ से क्रोधित हो गईं और उन्होंने नदी को शाप दिया कि वह भूमि के नीचे बहकर रेत की नदी हो जाएगी, क्योंकि उसने सत्य का साथ नहीं दिया। इसी श्राप के कारण आज भी फल्गु नदी मुख्य रूप से भूमिगत बहती है और कहीं-कहीं ही जलधारा दिखाई देती है।
नदी का वर्तमान स्वरूप
फल्गु नदी, जिसे अब 'भू-सलिला' भी कहा जाता है, मुख्य रूप से भूमि के नीचे बहती है।
यह नदी हिन्दू और बौद्ध धर्मों के लिए एक पवित्र स्थान है और गया के विष्णुपद मंदिर के पास स्थित है।
यहां किया गया पिंडदान पूर्वजों के लिए मोक्ष का मार्ग खोलता है, यह एक धार्मिक मान्यता है।
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नम्र निवेदन👉 मेरा जमीन का लफरा सिंघौल वाला जब तक सॉल्व नहीं होगा बेगुसराय प्रमंडल Bannane में कोई दिलचस्पी नहीं लेंगे । सरकारी नापी के बाद भी लोग जमीन पे बाउंड्री करने नहीं दिये हैं ।कृपा कर जोर ना डाला करे ।

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