
भूमि अधिग्रहण पर मुनाफाखोरी का खेल!
न्यू जोन कंपनी पर जमीन दूसरी कंपनी को बेचने की आशंका, किसान और नवयुवक दोनों परेशान
अनूपपुर।
रक्सा और कोलमी गांव के किसानों से अधिग्रहीत भूमि अब नए विवाद में फंसती दिख रही है। ग्रामीणों का कहना है कि न्यू जोन कंपनी स्थानीय युवाओं को रोजगार देने और क्षेत्र में विकास करने के वादे से मुकरती नज़र आ रही है। बल्कि आशंका जताई जा रही है कि कंपनी ने जिस जमीन का अधिग्रहण किया है, उसे किसी दूसरी बड़ी कंपनी को ऊँचे दामों पर बेचा जाएगा।
इससे पहले भी जिले में इसी तरह का मामला सामने आ चुका है। पूर्व में वेलस्पन विद्युत कंपनी ने भूमि अधिग्रहण कर किसानों से जमीन सस्ते दामों में ली और बाद में उसे अदानी ग्रुप को ऊँचे दामों पर बेच दिया था। अब ग्रामीणों को डर है कि कहीं न्यू जोन कंपनी भी वही रास्ता न अपनाए।
जानकारी के अनुसार, रक्सा और कोलमी गांव में कुल 191 किसानों की लगभग 776.788 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहीत की गई है। इसमें रक्सा के 143 और कोलमी के 48 किसान प्रभावित हुए हैं। अधिग्रहण के दौरान स्थानीय रोजगार का वादा किया गया था, लेकिन अब बाहर से गार्डों की भर्ती और कंपनी द्वारा बोर्ड तक न लगाए जाने से किसानों की शंकाएँ गहरी होती जा रही हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि कंपनी ने मजदूरी में भी छलावा किया है। जिन किसानों की जमीन अधिग्रहित की गई है, उन्हें 400 रुपए की मजदूरी दी जा रही है, जबकि जिनकी जमीन अधिग्रहित नहीं हुई है, उन्हें केवल 250 रुपए प्रतिदिन दिए जाते हैं। सवाल उठता है कि क्या वे मजदूर काम नहीं करते जिनकी जमीन नहीं गई है? मजदूरी में इस तरह का भेदभाव कर कंपनी ने स्थानीय श्रमिकों की नाराज़गी और बढ़ा दी है।
इसी मुद्दे को लेकर हाल ही में कंपनी और किसानों के बीच तनाव की स्थिति भी बन गई थी। ग्रामीणों का आरोप है कि कंपनी सीधे मजदूरों को भुगतान करने के बजाय ठेकेदार को राशि देती है और फिर ठेकेदार मनमाने ढंग से मजदूरी बांटता है। इस व्यवस्था से न तो मजदूरों को पूरा हक़ मिलता है और न ही पारदर्शिता रहती है।
जब कंपनी आई थी तो यहां के नवयुवकों ने सपने देखे थे कि अब उनकी बेरोजगारी दूर हो जाएगी और गांव में रोजगार के नए अवसर मिलेंगे। लेकिन मौजूदा हालात में न सिर्फ युवाओं का सपना टूटता दिख रहा है, बल्कि किसानों की चिंता भी गहरी हो गई है। किसानों और युवाओं का कहना है कि अगर जिस कंपनी ने हमारी भूमि अधिग्रहित की है, वही आगे इसे किसी दूसरी कंपनी को बेच देती है तो वे न्याय के लिए किसके पास जाएंगे? और क्या यह कंपनी उनके सपनों को साकार कर पाएगी? यही सवाल अब ग्रामीणों की नींद उड़ा रहे हैं।
ग्रामीणों का आरोप है कि कंपनी का उद्देश्य उद्योग स्थापित करना नहीं, बल्कि किसानों की जमीन सस्ते में खरीदकर बड़ी कंपनियों को महंगे दामों पर बेचकर मुनाफा कमाना है। वहीं, इस प्रक्रिया में सबसे अधिक नुकसान किसानों को उठाना पड़ रहा है, जिनकी जमीन तो चली गई लेकिन रोजगार और मुआवज़े के नाम पर खानापूर्ति की गई।
वहीं सबसे चिंताजनक बात यह है कि जिस न्यू जोन कंपनी ने सैकड़ों हेक्टेयर भूमि अधिग्रहीत की, उसने अब तक जिला मुख्यालय में कहीं भी अपना स्थायी कार्यालय स्थापित नहीं किया है। कंपनी का पूरा संचालन एक निजी होटल से किया जा रहा है। स्थानीय लोगों ने बताया कि कंपनी का सारा कामकाज मिश्रा और पांडे की जोड़ी द्वारा होटल से ही चलाया जा रहा है, और किसानों को लगातार बरगलाने का काम किया जा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि इस लापरवाही और छलावे का खामियाजा आज नहीं तो कल जिला प्रशासन को भुगतना पड़ सकता है।
इस संबंध में जब कंपनी के मैनेजमेंट हेड सुधाकर पांडे से संपर्क किया गया तो उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया