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भारत की हरित ऊर्जा क्रांति

भारत आज दुनिया की सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए देश लंबे समय तक कोयला, तेल और गैस जैसे पारंपरिक ईंधनों पर निर्भर रहा। लेकिन इन स्रोतों से न केवल पर्यावरण प्रदूषित होता है, बल्कि विदेशी मुद्रा का भी भारी व्यय होता है। ऐसे में भारत के लिए ऊर्जा आत्मनिर्भरता और स्वच्छ ऊर्जा दोनों ही समय की मांग हैं। इसी दिशा में केन्द्रीय नवीन और नवीनीकरणीय ऊर्जा मंत्री प्रल्हाद जोशी का यह बयान कि “भारत 2028 तक सौर ऊर्जा उपकरणों के निर्माण में पूरी तरह आत्मनिर्भर हो जाएगा” न केवल उत्साहजनक है, बल्कि भविष्य की ऊर्जा रणनीति का स्पष्ट रोडमैप भी प्रस्तुत करता है।
हरित ऊर्जा का महत्व-
जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और ऊर्जा सुरक्षा आज दुनिया की सबसे बड़ी चुनौतियाँ हैं। जीवाश्म ईंधन पर आधारित अर्थव्यवस्था अब टिकाऊ नहीं रह सकती। ऐसे में हरित ऊर्जा (ग्रीन एनर्जी) जैसे सौर, पवन, जल और बायो-एनर्जी, जो न केवल पर्यावरण की रक्षा करती है, बल्कि लंबे समय तक सस्ती और सुरक्षित ऊर्जा भी उपलब्ध कराती है।
भारत पेरिस समझौते और ‘नेट जीरो 2070’ लक्ष्य के तहत पहले ही भारत नवीनीकरणीय ऊर्जा को प्राथमिकता देने का संकल्प ले चुका है। वर्तमान में भारत की स्थापित नवीनीकरणीय ऊर्जा क्षमता लगभग 190 गीगावॉट से अधिक है, जिसमें सौर ऊर्जा का योगदान सबसे बड़ा है।
सौर ऊर्जा : आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम -
भारत के पास सौर ऊर्जा के लिए अपार संभावनाएँ हैं। देश की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि साल के अधिकांश हिस्से में पर्याप्त मात्रा में धूप मिलती है। यही कारण है कि भारत ने 2030 तक 500 गीगावॉट नवीनीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। इसमें सौर ऊर्जा की भूमिका निर्णायक होगी।
लेकिन अभी तक सौर ऊर्जा के लिए पैनल, सेल और अन्य उपकरणों के निर्माण में भारत चीन और कुछ अन्य देशों पर निर्भर है। इस आयात-निर्भरता से न केवल लागत बढ़ती है, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी यह स्थिति सुरक्षित नहीं है।
मंत्री प्रल्हाद जोशी का यह आश्वासन कि 2028 तक भारत इन उपकरणों के निर्माण में आत्मनिर्भर हो जाएगा, घरेलू उद्योगों, स्टार्टअप्स और ऊर्जा उपभोक्ताओं सभी के लिए उत्साहजनक है।
आत्मनिर्भरता का रोडमैप-
भारत सरकार ने सौर उपकरण निर्माण को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं, जैसे --
1. पीएलआई योजना (Production Linked Incentive): इस योजना के तहत घरेलू स्तर पर सौर मॉड्यूल और सेल उत्पादन को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
2. ‘मेक इन इंडिया’ पहल: देशी और विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
3. अनुसंधान एवं विकास (R&D) में निवेश: उन्नत तकनीक और उच्च क्षमता वाले सौर मॉड्यूल के लिए अनुसंधान केंद्रों को सहयोग दिया जा रहा है।
4. राज्यों की भूमिका: गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु जैसे राज्य बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा परियोजनाओं में अग्रणी हैं।
इन प्रयासों से न केवल भारत की आयात-निर्भरता कम होगी, बल्कि लाखों रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे।
हरित ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की स्थिति-
आज चीन सौर पैनल निर्माण में विश्व का नेता है। यूरोप और अमेरिका भी इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की कोशिश कर रहे हैं। यदि भारत 2028 तक इस लक्ष्य को हासिल कर लेता है तो वह विश्व ऊर्जा बाजार में एक अहम भूमिका निभा सकता है।
भारत के पास सस्ती श्रमशक्ति, बढ़ता हुआ बाजार और सरकारी सहयोग जैसी खूबियाँ हैं। इनका लाभ उठाकर भारत ग्रीन एनर्जी सप्लाई चेन में प्रमुख निर्यातक भी बन सकता है।
सौर ऊर्जा उपकरणों के स्वदेशी निर्माण के लाभ —
1- आर्थिक बचत: आयात पर होने वाला अरबों डॉलर का व्यय बचेगा।
2- रोजगार सृजन: छोटे-बड़े उद्योगों में लाखों नौकरियाँ पैदा होंगी।
3- ग्रामीण विकास: गांवों और छोटे कस्बों में सौर परियोजनाएँ ऊर्जा उपलब्धता बढ़ाएँगी।
4- पर्यावरण संरक्षण: कार्बन उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी आएगी।
5- ऊर्जा सुरक्षा: वैश्विक अस्थिरता का असर भारत की ऊर्जा आपूर्ति पर नहीं पड़ेगा। यद्यपि चुनौतियाँ भी कम नहीं फिर भी यह लक्ष्य महत्वाकांक्षी और सराहनीय है।
चुनौतियाँ -
1- उच्च गुणवत्ता वाले सिलिकॉन और अन्य कच्चे माल की आपूर्ति।
2- अत्याधुनिक तकनीक के विकास और हस्तांतरण की आवश्यकता।
3- अनुसंधान में निरंतर निवेश और मानव संसाधन का प्रशिक्षण।
4- ग्रामीण क्षेत्रों तक ग्रिड और स्टोरेज सुविधाओं का विस्तार।
यदि इन चुनौतियों का समाधान किया जाता है, तो आत्मनिर्भरता का सपना शीघ्र ही साकार हो सकता है।
निष्कर्ष -
भारत का भविष्य स्वच्छ ऊर्जा में ही सुरक्षित है। केन्द्रीय मंत्री प्रल्हाद जोशी का यह कथन कि “देश ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में जल्दी ही अपनी पहचान बनाएगा और 2028 तक सौर ऊर्जा उपकरणों में आत्मनिर्भर होगा” केवल घोषणा नहीं, बल्कि राष्ट्र के लिए ऊर्जा क्रांति का शंखनाद है।
यह लक्ष्य न केवल भारत को ऊर्जा आत्मनिर्भर बनाएगा, बल्कि वैश्विक मंच पर देश को ग्रीन एनर्जी लीडर के रूप में स्थापित करेगा। यदि सरकार, उद्योग और समाज मिलकर प्रयास करें तो भारत निश्चित ही आने वाले वर्षों में “सूर्य से शक्ति और आत्मनिर्भरता से समृद्धि” का आदर्श प्रस्तुत करेगा।

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