
चौथा स्तम्भ पत्रकारिता जो खो गई है। हर पत्रकार को सच की लड़ाई में साथ चलने की ज़रूरत।
रामपुर बिशेष। जब कलमें बिखरी हों, तो सच्चाई की आवाज़ कमजोर पड़ती है; लेकिन जब पत्रकार एकजुट हों, तो सत्ता भी जवाब देने को मजबूर होती है।पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है यह बात अक्सर कही जाती है, लेकिन यह स्तंभ तभी मजबूत होता है जब उसे थामने वाले हाथ आपस में बंटे न हों। आज के समय में पत्रकारों के सामने कई चुनौतियाँ हैं राजनीतिक दबाव, आर्थिक असुरक्षा, सुरक्षा की कमी, और सबसे गंभीर – सच बोलने की कीमत। इन परिस्थितियों में "पत्रकार एकता" केवल एक आदर्श नहीं, बल्कि एक अनिवार्यता बन गई है। जब पत्रकार एक मंच पर आते हैं, तब न केवल उनके अधिकार सुरक्षित होते हैं, बल्कि समाज भी एक निष्पक्ष और निर्भीक मीडिया का भरोसा करता है। जब एक पत्रकार पर हमला होता है, तो वो केवल एक व्यक्ति नहीं बल्कि अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला होता है। एकजुटता हमें साहस देती है गलत के खिलाफ बोलने का, झूठ के पर्दाफाश का। यह हमें मानसिक, सामाजिक और कानूनी समर्थन का आधार देती है। सूचनाओं का आदान-प्रदान, प्रशिक्षण और संसाधनों की साझेदारी सामाजिक समर्थन, उत्पीड़न या धमकी की स्थिति में संगठनों द्वारा एकजुट प्रतिक्रिया। नैतिक एकता पत्रकारिता की मूल मर्यादाओं और मानकों को सामूहिक रूप से बनाए रखना।