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शारदीय नवरात्र: भारतीय संस्कृति की अनमोल शक्ति उपासना का पर्व

दिव्य दैवीय शक्ति उपासना का पर्व…. शारदीय नवरात्र
शारदीय नवरात्र विशेष
या देवी सर्वभूतेषु सृष्टिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

यह अलौकिक सृष्टि शक्ति से ही उत्पन्न हुई है और शक्ति से ही संचालित हो रही है। शक्ति के विभिन्न स्वरूपों का अवलोकन हम जीवन में हर पर और हर क्षण अनुभव किया करते हैं।
प्रकृति के पंच महाभूतों अग्नि,वायु,आकाश, पृथ्वी और जल भी अपने प्रत्येक स्वरूप में शक्ति का ही स्रोत हैं। जिनकी हम नित्य किसी न किसी रूप में उपासना करते हैं।
शारदीय नवरात्र इस वर्ष 22 सितम्बर से प्रारंभ होकर 1 अक्तूबर तक सम्पन्न होंगे .2 अक्तूबर को दशहरा महापर्व होगा.
सनातन परंपरा में हमारी आस्था और श्रद्धा को अभिव्यक्त करने केलिए वर्ष भर अनेक पर्व और त्योहार मनाए जाते हैं,जिनका आस्था के साथ साथ वैज्ञानिक महत्व भी होता है।
शारदीय नवरात्रों का दैवीय शक्ति उपासना में अपना अद्वितीय और अलौकिक महत्व है जो कि हिन्दू संस्कृति में उपासना के महत्व को दर्शाता है।
मानव जीवन में शक्ति और ऊर्जा का विशेष महत्व होता है और यह शक्ति और ऊर्जा हम उपासना के द्वारा ही अर्जित कर सकते हैं।
नवरात्रों के दिव्य अवसर पर देवी मां के नौ स्वरूपों की पूजा अर्चना और उपासना करके हम अपने आप को दैवीय शक्ति के सानिध्य का अहसास करते हैं।
भारतीय संस्कृति की सनातन परंपरा में शक्ति उपासना का विशेष महत्व है। शारदीय नवरात्रों में भिन्न भिन्न शक्तिपीठों में शीश नवाकर अपने जीवन में श्रद्धा भाव और आस्था को प्रकट करते हैं। नौ दिनों में देवी मां के भिन्न भिन्न स्वरुपों की उपासना करते हैं।
देवी दुर्गा के स्वरुपों में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध स्वरूप महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती का माना जाता है!
जो कि मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं और क्षेत्रों से संबंधित हैं।
जीवन में बुद्धि,विद्या , ज्ञान के महत्व को मां सरस्वती की उपासना से जाना जाता है।धन और वैभव के लिए मां लक्ष्मी के स्वरूप की उपासना करना महत्वपूर्ण माना जाता है । मां का तीसरा स्वरुप शक्ति और पराक्रम की उपासना करना है महाकाली रूप धारण कर माता ने आसुरी शक्तियों के विनाश और सात्विक शक्ति के प्रसार का संदेश दिया है।
नवरात्रों में उपासना के समय द्वीप प्रज्जविलत करना अपने आप में एक अद्वितीय संस्कृति है क्योंकि दीपज्योति हमारे मन और जीवन से अज्ञानता के अंधकार को मिटाकर ज्ञान और विवेक का प्रकाश फैलाने का कार्य करती है।
" शुभं करोति कल्याणं , आरोग्यं धन संपदाम्
शत्रु बुद्धि विनाशाय,दीपं ज्योति नमोस्तुते"
नवरात्रों में उपवास रखना सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है क्योंकि उपवास का अर्थ ही उप +वास अर्थात अपने आप को शक्ति के साथ या समीप स्थित करना या जोड़ने का प्रयास किया जाता है। उपवास रखने से शरीर,मन और आत्मा की शुद्धि होती। कई प्रकार की शारीरिक और मानसिक व्याधियां मात्र उपवास रखने से ही दूर हो जाती हैं।मन शांत और शरीर ऊर्जावान बनता है।आयु ,बल और तेज़ बढ़ता है क्योंकि हम अपने आप को दिव्य शक्ति के साथ जोड़ने का प्रयास करते हैं।
नवरात्रों में अन्न दान और कन्या पूजन से देवी शक्ति के स्वरूप का बालिकाओं में दर्शन करने से संसार में नारी को देवी शक्ति के स्वरूप मानकर सृष्टि की रचना और संचालन में उनके योगदान के महत्व को माना जाता है।
आधुनिकता के इस दौर में पूरी तरह से भौतिक सुख सुविधाओं और वस्तुओं पर आश्रित हो चुकी हमारी वर्तमान सामाजिक व्यवस्था और युवा पीढ़ी अपने जीवन में प्रकृति और प्राकृतिक शक्तियों के महत्व से अनजान और अनभिज्ञ हैं जो कि सनातन परंपरा के लिए विचारणीय विषय है। इसके लिए हमें अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करने की परम आवश्यकता है।
हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि यह संपूर्ण ब्रह्मांड शक्ति से ही उत्पन्न हुआ है और शक्ति से ही संचालित भी होता है। प्राकृतिक शक्तियों की उपासना और उनके समीप वास करने से हम अपने जीवन में सकारात्मक भावनाओं को पल्लवित और पुष्पित करने का ही प्रयास करते हैं।
जीवन में सर्वश्रेष्ठ को पाने के लिए और आत्म अभिव्यक्ति के लिए हमें शक्ति और ऊर्जा की ही आवश्यकता होती है । अतः नवरात्रों में उपवास रखने और उपासना करके हम अपने आप को दिव्य शक्ति के साथ एकाकार होकर जीवन में मंगल को प्राप्त करते हैं।
वर्तमान समय में यह हम सभी का नैतिक कर्तव्य और उत्तरदायित्व भी है कि हम अपने मन से अंधकार और नकारात्मकता को दूर करने और सकारात्मकता और दिव्यता हासिल करने के लिए अपने आप को प्राकृतिक शक्तियों के साथ जोड़ने का प्रयास करें और उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है कि हम अपने बच्चों तथा भावी पीढ़ी को सनातन परंपरा की अनमोल धरोहर से अवगत करवा कर उन्हें भी संस्कृति के प्रति ज्ञानवान और जागरूक करने का प्रयास करें। ताकि वे भी अपनी महान सांस्कृतिक परंपराओं के प्रति आकर्षित होकर उसके दिव्य और अलौकिक स्वरूप के महत्व को समझें और जीवन में अपनाने का प्रयास करें ताकि मानव जीवन की सार्थकता और साधना फलीभूत हो पाए।
नवरात्रों के दिव्य पर्व की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं मां का आशीर्वाद सभी पर बना रहे।
" देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि मे परम सुखम्
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि"

विक्रम वर्मा
स्वतंत्र लेखक
चम्बा हिमाचल प्रदेश.

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