
आज पाकिस्तान की बात – व्यंग्य की झंकार में
आज फिर पाकिस्तान की बात हो रही है। वैसे तो पाकिस्तान का ज़िक्र होते ही हमारे पड़ोसियों के चेहरे पर बड़ी गंभीरता आ जाती है, मानो कोई अंतरराष्ट्रीय साजिश अभी-अभी उनके मोबाइल पर WhatsApp forward होकर पहुंची हो। लेकिन सच्चाई यह है कि पाकिस्तान आज भी वही है — क्रिकेट में हारा तो “साज़िश”, जीता तो “चमत्कार”; अर्थव्यवस्था डूबी तो “भारत की चाल”, पेट्रोल महँगा हुआ तो “अमेरिका की साज़िश”। कुल मिलाकर वहाँ हर घटना का कारण कोई बाहरी शक्ति ही होती है।
पाकिस्तान की राजनीति देखिए — वहाँ हर नेता अपने को कायदे-आजम का वारिस मानता है। मगर जनता की हालत देखकर लगता है जैसे यह कायदे-आज़म का वारिस नहीं बल्कि कर्ज़-ए-आज़म का वारिस है। IMF (अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष) उनके लिए भगवान से भी बड़ा “देवता” है — वहाँ की सरकार हर रोज IMF के चरणों में गिरकर यही प्रार्थना करती है: “हे दाता, एक और किस्त बख्श दो, अगली बार हम सच में सुधार करेंगे।”
अब क्रिकेट को ही ले लीजिए — पाकिस्तान की टीम जब मैदान में उतरती है तो पूरा मुल्क टीवी से चिपक जाता है। हार गए तो टीवी टूट जाते हैं, जीत गए तो टीवी पर दूध चढ़ा दिया जाता है। यानी क्रिकेट सिर्फ खेल नहीं, पाकिस्तानी जनमानस की मानसिक बीमा पॉलिसी है।
मज़े की बात यह है कि पाकिस्तान की राजनीति और क्रिकेट, दोनों में एक समानता है — दोनों ही अनिश्चितता से भरे हैं। वहाँ सरकारें गिरती हैं जैसे बल्लेबाज़ विकेट खोता है — अचानक और बिना वजह।
और कश्मीर का क्या कहें! पाकिस्तान को तो रोज़ सुबह उठकर दवा की जगह “कश्मीर की गोली” चाहिए। वहाँ का हर नेता चुनावी रैली में यही कहता है: “हम कश्मीर लेंगे।” लेकिन खुद के बिजली-पानी के बिल भरने की फुर्सत किसी को नहीं।
कुल मिलाकर पाकिस्तान आज भी वही है — एक ऐसा पड़ोसी जो अपने घर में आग बुझाने के बजाय, हमेशा हमारी खिड़की में झाँकता रहता है। शायद यही वजह है कि जब भी “आज पाकिस्तान की बात” होती है, तो भारतवासी हँसते-हँसते यही सोचते हैं — “पड़ोसी का हाल देखकर अपना दुख भी छोटा लगने लगता है।”