logo

टाटानगर रेलवे हॉस्पिटल में डॉक्टर पर लगे गंभीर आरोप, मरीजों में आक्रोश

जमशेदपुर : टाटानगर रेलवे हॉस्पिटल को रेलवे कर्मचारियों और सेवानिवृत्त कर्मियों का प्रमुख उपचार केंद्र माना जाता है। यही कारण है कि कर्मचारी व उनके परिजन इलाज के लिए निश्चिंत होकर इसी अस्पताल का रुख करते हैं। हालांकि लंबे समय से यहां डॉक्टरों की कमी बनी हुई थी। हाल ही में गार्डन रिच द्वारा नए डॉक्टरों की नियुक्ति से मरीजों और उनके परिजनों को उम्मीदें जगीं थीं, लेकिन अब मरीजों ने ही इन नियुक्त डॉक्टरों के रवैये पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

रिटायर्ड कर्मचारियों ने लगाया दुर्व्यवहार का आरोप

मरीजों के परिजनों का आरोप है कि हॉस्पिटल में नियुक्त डॉक्टर गौमासा गौतमी भर्ती मरीजों और खासकर ओपीडी में इलाज कराने आए सेवानिवृत्त कर्मचारियों के साथ अभद्र व्यवहार करती हैं। आरोप यह भी है कि डॉक्टर कई बार रेलवे अस्पताल में उपलब्ध दवाओं के बजाय बाहर से दवा खरीदने पर जोर देती हैं।

रिटायर्ड कर्मचारियों का कहना है कि यह रवैया रेलवे की स्वास्थ्य सुविधा की मूल भावना के विपरीत है। एक मरीज के परिजन ने बताया कि – “हम अपने पिता को ओपीडी में लेकर गए थे। डॉक्टर ने न केवल तेज आवाज में बात की बल्कि यह भी कहा कि अस्पताल में जो दवा नहीं है, उसे बाहर से ही खरीदना होगा। हम सोचते हैं कि अगर दवा अस्पताल में नहीं है तो प्रबंधन जिम्मेदार है, लेकिन डॉक्टर का ऐसा व्यवहार बहुत कष्टप्रद है।”

रेस्ट हाउस में रहने को लेकर उठे सवाल

परिजनों ने यह भी आरोप लगाया है कि डॉक्टर गौतमी पिछले एक साल से कंस्ट्रक्शन विभाग के रेस्ट हाउस में रह रही हैं। जबकि नियमों के अनुसार, नियुक्ति के एक हफ्ते के भीतर रेलवे क्वार्टर उपलब्ध कराया जाना चाहिए। आरोप है कि डिप्टी चीफ इंजीनियर एस.के. सौरभ द्वारा उन्हें कंस्ट्रक्शन रेस्ट रूम आवंटित किया गया। इस मामले में यह भी चर्चा है कि अवैध लाभ लेकर उक्त कमरे में रहने की अनुमति दी गई।

पहले भी विवादों में रही हैं डॉक्टर

सूत्रों के अनुसार, टाटानगर रेलवे हॉस्पिटल में ज्वाइन करने से पहले डॉक्टर गौतमी दो महीने तक अनधिकृत छुट्टी पर रहीं, जिसके चलते उन पर विभागीय कार्रवाई भी की गई थी। ऐसे में उनका कार्यकाल लगातार विवादों में घिरा रहा है।
आरोपों पर डॉक्टर और इंजीनियर का पक्ष

जब उदित वाणी के प्रतिनिधि ने डॉक्टर गौमासा गौतमी से इन आरोपों पर प्रतिक्रिया मांगी, तो उन्होंने सभी आरोपों को सिरे से खारिज किया। उनका कहना था –
“सभी आरोप निराधार हैं। मैं कभी भी किसी मरीज से दुर्व्यवहार नहीं करती। डॉक्टर होने के नाते हमारा पहला कर्तव्य मरीज का इलाज करना है। मैं अपने कर्तव्यों का पालन कर रही हूं।”

इसी तरह, डिप्टी चीफ इंजीनियर एस.के. सौरभ ने भी अवैध लाभ के आरोपों से इंकार किया। उन्होंने कहा –
“मुझे इस मामले की कोई जानकारी नहीं है। इस पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगा।”

दोनों के बयानों की सत्यता अब रेलवे प्रशासन की जांच का विषय है।

रिटायर्ड रेल कर्मचारी का बयान

रिटायर्ड लोको पायलट ने कहा –
“हमने रेलवे में 35 साल सेवा की है। रेलवे हॉस्पिटल ही हमारी उम्मीद का सहारा है। पहले यहां डॉक्टरों का रवैया काफी सहयोगी था। लेकिन हाल के दिनों में कई रिटायर्ड कर्मचारियों को शिकायत है कि कुछ डॉक्टर मरीजों से ठीक से बात नहीं करते। हम बूढ़े हो चुके हैं, दवा और इलाज के लिए इसी हॉस्पिटल पर निर्भर हैं। अगर यहां भी हमें सम्मान नहीं मिलेगा तो कहां जाएंगे? हमारी मांग है कि रेलवे प्रशासन इस मामले की जांच करे और सुनिश्चित करे कि किसी भी डॉक्टर का व्यवहार रिटायर्ड कर्मचारियों और उनके परिजनों के साथ अपमानजनक न हो।”


रेलवे प्रबंधन पर उठे सवाल

इन लगातार विवादों के बीच रेलवे अस्पताल की छवि धूमिल हो रही है। रिटायर्ड कर्मचारियों और उनके परिजनों का कहना है कि प्रबंधन को मामले की जांच कर पारदर्शिता के साथ स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। साथ ही डॉक्टरों और स्टाफ से मरीजों के साथ बेहतर व्यवहार सुनिश्चित कराने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।

स्थानीय स्तर पर मरीजों और उनके परिवारों की मांग है कि रेलवे इस मामले की निष्पक्ष जांच कराए और अस्पताल की सेवाओं को और बेहतर बनाए। क्योंकि रेलवे हॉस्पिटल वही जगह है जहां हजारों कर्मचारी और उनके परिवार चिकित्सा के भरोसे रहते हैं।

0
44 views