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माता सती के शरीर से बने शक्तिपीठ: धार्मिक स्थल

सनातन धर्म में देवी शक्तिपीठों और सिद्धपीठ का पौराणिक और धार्मिक महत्व अत्यंत गहरा है। मान्यता है कि जब पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होकर माता सती ने आत्मदाह कर लिया, तो शोकाकुल शिव जी उनके शरीर को लेकर ब्रह्मांड में विचरण करने लगे। भगवान विष्णु ने शिव की वेदना शांत करने हेतु सुदर्शन चक्र चलाकर सती के शरीर के अंग विभिन्न स्थानों पर गिराए। जहाँ-जहाँ ये अंग गिरे, वहाँ दिव्य ऊर्जा का उद्भव हुआ और वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए।
पौराणिक ग्रंथों जैसे देवी भागवत और कलिका पुराण में इनकी संख्या 51 बताई गई है, जबकि कुछ परंपराओं में 108 मानी जाती है। प्रत्येक शक्तिपीठ में देवी और उनके साथ भैरव स्वरूप की पूजा अनिवार्य है। इन स्थलों पर दर्शन व साधना से साधक को भक्ति, शक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
महत्वपूर्ण शक्तिपीठों में विभिन्न अंगों के गिरने का उल्लेख मिलता है—
कामाख्या शक्तिपीठ (असम) – यहाँ माता का योनि अंग गिरा था, इसलिए इसे विशेष प्रजनन शक्ति और सृष्टि की देवी के रूप में पूजा जाता है।
ज्वालामुखी शक्तिपीठ (हिमाचल) – यहाँ माता की जीभ गिरी थी, जिसके कारण यहाँ अनादि ज्वालाएँ प्रकट होती हैं।
कालीघाट शक्तिपीठ (कोलकाता) – यहाँ माता का दाहिना पाँव की अंगुली गिरी थी।
हिंगलाज शक्तिपीठ (पाकिस्तान) – यहाँ माता का ब्राह्मरंध्र (सिर का हिस्सा) गिरा था।
त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ (त्रिपुरा) – यहाँ माता का दाहिना पाँव गिरा।
श्रृंगेरी शक्तिपीठ (कर्नाटक) – यहाँ माता का दांत गिरा।
इनके अतिरिक्त अम्बाजी (गुजरात), तुलजापुर (महाराष्ट्र) और विंध्यवासिनी (उत्तर प्रदेश) भी विशेष प्रसिद्ध शक्तिपीठ हैं।
चंद्रबदंनी शक्तिपीठ भी उत्तराखंड मे टिहरी के पास है जहाॅ सती का बदन गिरा था।. श्रीनगर (गढ़वाल) – कत्यायनी पीठ (श्रीशक्ति पीठ)
यहाँ माता सती का हाथ (कर) गिरा था।देवी यहाँ कत्यायनी नाम से पूजित हैं और भैरव चंद्रशेखर हैं।
ज्वाल्पा देवी शक्तिपीठ (पौड़ी गढ़वाल)मान्यता है कि यहाँ माता की जीभ का अंश गिरा था।
इसे ज्वाला देवी भी कहा जाता है और यहाँ हर वर्ष चैत्र नवरात्रि में भव्य मेला लगता है।चंडिका देवी शक्तिपीठ (हरिद्वार)
यहाँ माता सती का ह्रदय (हृदय देश) गिरा था।देवी यहाँ चंडिका स्वरूप में पूजित हैं।सुरकंडा देवी शक्तिपीठ (मसूरी-धनोल्टी मार्ग, टिहरी गढ़वाल)यहाँ माता का सिर (शीर्ष/मुख) गिरा था।इसलिए यह स्थान विशेष प्रसिद्ध है और दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।
किंवदंतियों के अनुसार प्रत्येक शक्तिपीठ में गिरे अंग या आभूषण के कारण देवी का स्वरूप और पूजा-पद्धति भिन्न है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इन पीठों की यात्रा करने से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और जीवन में दिव्यता का संचार होता है। इस प्रकार शक्तिपीठ सनातन धर्म में देवी शक्ति के शाश्वत स्वरूप और अखंड उपस्थिति का प्रतीक हैं।
कुछ देवी के सिद्धपीठ भी है जहाॅ देवी स्वयं प्रकट हुई थी।इसमे जम्मू-कश्मीर मे वैष्णो देवी,धारी देवी,अम्बा देवी आदि मुख्य है।
शक्तिपीठ और सिद्धपीठ के रूप मे माॅ विभिन्न स्थानो पर मौजूद है जो अपने बच्चो को आशीर्वाद देती है और उनकी रक्षा करती है।

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