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बङी रोक होती है यहां की रामलीला

एक समय था हरियाणा के हांसी शहर की रामलीला व रात्री समय निकलने वाली झांकी जिन्हें लाग कही जाता था दूर दूर तक मशहूर थी। नवरात्रों में होने वाली यहां की रामलीला देखने के लिए दूसरे प्रदेशों में गये हांसी के लोग अपने परिजन, मित्रों के साथ यहां आ जाते थे। ठीक इसी तरंह इन में काम करने वाले,कलाकार भी अपना सब कामधाम छोङकर यहां आ जाते थे। बङा ही रोमांचकारी वातावरण बन जाता था। विभिन्न नाटक और राम के जीवन का मंचन देखते ही बनता था। लेकिन जब रामानंद सागर की फिल्मी रामायण आयी और आधुनिकता में नयी पीढी संस्कारहीन होकर उद्दंड होने लगी तो। इसका असर रामलीलाओं कौ मंचन पर पङा और हांसी की बेहतरीन रामलीला के मंच एक एक कर 2004 तक बंद होते चले गये।
शहर की पंचायती रामलीला कमेटी अपनी परंपरा को निभाने के लिए मैदान मे पर्दा लगाकर फिल्म रामायण दिखाकर अपना फर्ज निभाने लगी।
अर्सा बीस साल के बाद स्व. पं. विनोद जी के प्रयासों से, पंचायती रामलीला कमेटी व शहर के दानी समाज सेवकों के सहयोग से राम लीला का मंचन गत वर्ष से एक बार फिर शुरू किया है।
आधुनिक कलेवर ,साज सज्जा के साथ बहुत ही मनमोहक मंचन हो रहा है।
यह अलग बात है कभी रात के समय पांच मंच सजते थे।
पंचायती रामलीला मैदान में सांयकाल कैसे होती थी?
यह सांयकाल क्यों होती थी और हांसी में रात के समय रामलीला का मंचन किसने कब शुरू कर एक नया रूप किसने दिया?आज शायद कोई नहीं जानता?
क्यों
हांसी की रामलीलाओं को नाट्य मंच की पाठशाला कहा जाता था?
इसका बहुत ही रोचक इतिहास है।
सबसे पहले पंचायती रामलीला कब, कहां, कैसे, किसने, क्यों, शुरू की। और बाद में इसमें क्या क्या बदलाव आये ? पंचायती राम लीला का अपना एक अलग रोचक और गौरवशाली अतीत है।
आज पंचायती रामलीला कमेटी हांसी इस इतिहास को जिंदा रख रही है।
मंच सज्जा और प्रस्तुतीकरण देखते ही बनता है। एक बार फिर हांसी की रामलीला दर्शकों को आकर्षित कर रही है।
बहुत ही सराहनीय कदम है।

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