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यमुना एक्सप्रेसवे: सुविधा का हाईवे या मौत का फंदा? 13 साल में 9,826 हादसे, 1,579 मौतें और 14,265 घायल

बागपत, 26 सितंबर 2025: दिल्ली और आगरा को जोड़ने वाला 165 किलोमीटर लंबा यमुना एक्सप्रेसवे, जिसे कभी विकास और आधुनिकता का प्रतीक माना गया, आज मौत का पर्याय बन चुका है। 2012 से 2025 तक के 13 वर्षों में इस हाईवे पर 9,826 हादसे हुए, जिनमें 1,579 बेकसूर जिंदगियां छिन गईं और 14,265 लोग घायल हुए। ये दिल दहला देने वाले आंकड़े RTI कार्यकर्ता और विश्व भारती जनसेवा संस्थान के उपाध्यक्ष नौशाद अली ने सूचना के अधिकार (आर टी आई ) के जरिए यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण से हासिल किए हैं। हादसों की वजह? तेज रफ्तार, नशे में ड्राइविंग और लापरवाही, जो हर साल सैकड़ों परिवारों को तबाह कर रही है।

आंकड़ों का खौफनाक सच
नौशाद अली की आर टी आई ने यमुना एक्सप्रेसवे की काली सच्चाई को बेपर्दा कर दिया है। इन 13 सालों में हर साल औसतन 110 लोग इस हाईवे पर अपनी जान गंवा रहे हैं। 2019 का साल सबसे खूनी रहा, जब 357 हादसों में 145 लोगों ने दम तोड़ा। 2024 तक के आंकड़े भी कम भयावह नहीं—7,625 हादसे, 1,320 मौतें और 11,168 घायल। 2025 में ये तादाद और बढ़ गई, जो साफ बताती है कि यह हाईवे अब सुविधा कम, खतरा ज्यादा बन चुका है।

नौशाद अली ने गहरे दर्द के साथ कहा, “यह आंकड़ा सिर्फ यमुना एक्सप्रेसवे का है। अगर देश के बाकी हाईवे और सड़कों का हिसाब जोड़ा जाए, तो तस्वीर और भयानक होगी। सरकार टोल वसूल रही है, हाईवे की सौगात दे रही है, लेकिन क्या जिंदगियों की कीमत टोल के बराबर है?” उनकी यह बात हर उस शख्स की आंखें खोलने के लिए काफी है, जो इस हाईवे पर रोज सफर करता है।

हादसों का जिम्मेदार कौन?
यमुना एक्सप्रेसवे पर हादसों की जड़ में कई कारण हैं। सबसे बड़ा गुनहगार है तेज रफ्तार। 100 किमी/घंटा की स्पीड लिमिट को नजरअंदाज कर चालक 120-150 किमी/घंटा की रफ्तार से गाड़ियां दौड़ाते हैं। नशे में ड्राइविंग भी कम जिम्मेदार नहीं। शराब या नशीले पदार्थों के नशे में चालक न सिर्फ अपनी, बल्कि दूसरों की जिंदगी भी खतरे में डालते हैं। खराब मौसम में लापरवाही, रात में अपर्याप्त रोशनी, कमजोर साइनेज और पुलिस गश्त की कमी ने इस हाईवे को 'डेथ ट्रैप' बना दिया है।

सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ प्रोफेसर डॉ. अजय सिंह कहते हैं, “यमुना एक्सप्रेसवे पर हादसों का ग्राफ हर साल बढ़ रहा है। अगर मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे की तरह सख्त निगरानी, स्पीड कैमरे और नियमित पैट्रोलिंग लागू की जाए, तो मौतों का आंकड़ा कम हो सकता है।” लेकिन सवाल यह है कि जब टोल के नाम पर लाखों रुपये वसूले जा रहे हैं, तो सुरक्षा के लिए फंड कहां जा रहा है?

एक आर टी आई कार्यकर्ता की जंग
नौशाद अली, जो विश्व भारती जनसेवा संस्थान के उपाध्यक्ष भी हैं, सिर्फ आंकड़े जुटाने वाले आर टी आई कार्यकर्ता नहीं, बल्कि समाज में बदलाव की मशाल थामने वाले योद्धा हैं। उनकी आर टी आई ने न सिर्फ यमुना एक्सप्रेसवे की सच्चाई उजागर की, बल्कि सरकार और प्रशासन को कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने अपनी अपील में कहा, “सड़क सुरक्षा नियम मानें, हेलमेट पहनें, सीट बेल्ट बांधें। सावधानी से चलाएं, जिंदगी बचाएं।” उनकी यह पुकार हर उस नागरिक के लिए है, जो इस हाईवे पर सफर करता है।

सरकार की चुप्पी, जनता की पुकार
यमुना एक्सप्रेसवे पर टोल बूथ तो हर कुछ किलोमीटर पर दिखते हैं, लेकिन सड़क सुरक्षा के उपाय कहीं नजर नहीं आते। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय की 2024 की रिपोर्ट बताती है कि भारत में हर साल 1.5 लाख लोग सड़क हादसों में जान गंवाते हैं। इसमें एक्सप्रेसवे का योगदान छोटा नहीं। फिर भी, सख्ती और सुधार के नाम पर सिर्फ कागजी कार्रवाई होती दिखती है। नौशाद जैसे कार्यकर्ता बार-बार सवाल उठा रहे हैं, लेकिन जवाब कौन देगा?

रास्ता क्या है?
सड़क सुरक्षा विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कई समाधान सुझाए हैं:
सख्त निगरानी: स्पीड कैमरे, लेजर गन और स्वचालित चालान प्रणाली से तेज रफ्तार पर लगाम लगाई जाए।
नशे पर रोक: रैंडम ब्रेथलाइजर टेस्ट और नशे में ड्राइविंग के लिए कठोर सजा।
बुनियादी ढांचे में सुधार: रात में बेहतर रोशनी, स्पष्ट साइनबोर्ड, और आपातकालीन सेवाओं की तैनाती।
जागरूकता अभियान
: स्कूलों, कॉलेजों और सार्वजनिक स्थानों पर सड़क सुरक्षा को लेकर व्यापक प्रचार।

एक सवाल, एक उम्मीद
नौशाद अली की आर टी आई ने यमुना एक्सप्रेसवे को सिर्फ एक सड़क नहीं, बल्कि एक सामाजिक बहस का केंद्र बना दिया है। यह हाईवे हमें सुविधा देता है, लेकिन क्या हम इसकी कीमत अपनी जिंदगी से चुका रहे हैं? यह समय है कि सरकार, प्रशासन और हम सब मिलकर इस मौत के सिलसिले को रोकें। हर जिंदगी कीमती है, और इसे बचाने के लिए सावधानी हमारा सबसे बड़ा हथियार है।

नौशाद अली की यह लड़ाई सिर्फ आंकड़ों की नहीं, बल्कि उन हजारों परिवारों की है, जो अपनों को खो चुके हैं। क्या उनकी आवाज सरकार तक पहुंचेगी? यह सवाल हर उस शख्स का है, जो इस हाईवे पर एक कदम रखता है।

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