
स्वरचित कविता - विषय - बेरोजगार का हाल
कविता नहीं यह हर बेरोजगार की चीख एवं उसके हाल है
ज़ब उसकी मेहनत से ज्यादा बिकता रिश्वत का माल है l
कलम थमा कर मैंने एक सुनहरा ख्वाब बुना था
नींद बेचकर जागी थी, बस मेहनत का रास्ता चुना था l
ज़ब आया परीक्षा का दिन, सब कुछ खत्म सा हो गया
पेपर पहले ही बाजार में बिक गया
फिर मेरे पास बचा ही क्या था??
न जाने कौन लुटेरा चुरा ले गया
मेरे परिश्रम का मान?
कौन था वह दलाल जो बिकवा दिए मेरी सब उम्मीदों का स्थान?
सरकार ने चुप्पी साधी
दोषी को किया फरार
सी. बी. आई. जाँच कराएंगे बस मिलता रहा यह जबाब....
हर पेपर में घोटाले पर घोटाला होने लगा
हर कोने में फैला जाल
न्याय की चौखट भी अब
खुद हो गयी जैसे बेहाल l
बेरोजगार पूछे सरकार से
अब तो बस जबाब चाहिए
हर भर्ती पर पेपर लीक
बस बहाना बेहिसाहब चाहिए?
मेरी मेहनत का पसीना बिक गया, कागज पहले ही छप गया
रातों की जो नीदें थी, पेपर उससे पहले ही लुट गया था l
ना सिस्टम बदला, ना जाँच हुयी
बस तारीखें बढ़ती, बदलती रही
और मेरी मेहनत सिमटती रही..
सालों की मेरी मेहनत मिल गयी राख में
टॉपर वही बनते जो रहते
चालाकी (घोटाले)की झांझ में....
नाम - ललिता डोभाल ' प्रज्ञा'
पता - बड़कोट, उत्तरकाशी (उत्तराखंड)