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बिहार चुनाव: बेरोजगारी और पलायन के बजाय 'माँ' के अपमान पर केंद्रित करने का आरोप, राजनीतिक बहस गरमाई

पटना, २८ सितंबर। बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मियों के बीच, एक राजनीतिक विश्लेषण ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी है। इसमें आरोप लगाया गया है कि बेरोजगारी, पलाayan, और कानून-व्यवस्था जैसे बिहार के मूल मुद्दों को दरकिनार कर, चुनाव को भावनात्मक और गैर-जरूरी मुद्दों पर केंद्रित करने की कोशिश की जा रही है।

विश्लेषण के अनुसार, बिहार इस समय कई गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है, जिनमें बढ़ती बेरोजगारी, अनियंत्रित अपराध, जहरीली शराब से होने वाली मौतें, नौकरी की मांग कर रहे युवाओं पर लाठीचार्ज, निरंतर पलायन, बाढ़ की विभीषिका, और चरमराती स्वास्थ्य व शिक्षा व्यवस्था शामिल हैं। लेखक ने चिंता व्यक्त की है कि "गोदी मीडिया और उनके पत्रकार" इन ज्वलंत सवालों पर चर्चा करने के बजाय, चुनावी विमर्श को ऐसे मुद्दों की ओर धकेल रहे हैं जिनसे बिहार की जनता का कोई भला नहीं होने वाला है।

इस टिप्पणी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा गया है कि वह "उसने मेरी माँ को गाली दी" के मुद्दे पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। इसे "पहलागांव हमले" के बाद बिहारवासियों को ठगने का एक और प्रयास बताया गया है, जिसमें पहले "घर-घर सिंदूर बांटने" की योजना के विफल होने का भी जिक्र है।

प्रधानमंत्री की माँ के अपमान के मुद्दे पर एक तीखा सवाल उठाते हुए पूछा गया है कि यदि यह घटना हुई है, तो इसके विरोध में बिहार बंद का आह्वान क्यों किया जा रहा है? तर्क दिया गया है कि प्रधानमंत्री और उनकी माँ गुजरात से हैं, इसलिए अगर बंद ही करना है तो गुजरात में होना चाहिए। टिप्पणीकार का आरोप है कि "गुजरात के अमीर कारोबारियों" को आर्थिक नुकसान न हो, इसलिए वहां कभी बंद नहीं कराया जाएगा, क्योंकि मोदी जी का काम "गुजरातियों का फायदा करवाना है, नुकसान करवाना नहीं।"

अंत में, बिहार के मतदाताओं से अपील की गई है कि वे सचेत रहें और "वोट चोरों द्वारा बनाए गए फालतू मुद्दों" के बजाय अपना ध्यान बिहार के वास्तविक विकास के मुद्दों पर केंद्रित करें। यह विश्लेषण मतदाताओं को याद दिलाता है कि अभी भी समय है कि वे संभल जाएं और यह सुनिश्चित करें कि बिहार का चुनाव सिर्फ बिहार के मुद्दों पर ही लड़ा जाए।

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