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रावण के पुतले तो जलते रहेंगे, खुद के अंदर के रावण को जलाएगा कौन

रिपोर्ट : जयदीप कुमार सिन्हा

खुद के अंदर छिपे रावण को जलाने की है आवश्यकता, पुतले की नहीं

बरही । विजयादशमी के मौके पर प्रत्येक वर्ष महापंडित दशानन रावण, उनके भाई कुंभकरण और महाबली पुत्र मेघनाद के पुतले जलाए जाते है. जिसका मुख्य उद्देश्य बुराइयों का त्याग कर उसे सदा के लिए जला देना है. परंतु यह एक यक्ष प्रश्न है कि क्या पुतला दहन के साथ खुद के अंदर छिपे रावण को जलाया क्या ?
आज हर पग पर रावण बैठा है. बहु-बेटियों को अस्मिता असुरक्षित है, सरकारी खजाने लूटने के लिए एक से एक वाण चलाए जा रहे है. सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार चरम पर है. योजना बनाने वाले हीं कमीशन तय कर उगाही कर रहा है. भाई भाई का दुश्मन बन बैठा है. दहेज के लिए बेटियां जलाई जा रही है. वहीं दहेज हत्या के मामले में बेगुनाहों को भी फंसाया जा रहा है. हर एक व्यक्ति एक दूसरे को दबाने पर लगा है. अपने स्वार्थपूर्ति के लिए दूसरे को हत्या करने या करवाने में भी गुरेज नहीं किए जा रहे हैं. मां बाप की दौलत पर जीने वाले बेटे भी वृद्धाश्रम में रखकर खुद को खुशनसीब समझ रहे हैं. कहने को मानव हैं पर अमानवीय गुणों से स्वभाव भरा पड़ा है. चंदा के नाम पर अवैध पैसे उगाही किए जा रहे हैं. गुरु और शिष्य के रिश्ते कलंकित हो रहे हैं. ऐसे ने रावण दहन जैसे कार्यक्रम उद्देश्य विहीन नजर आते हैं. पुतले जलाने से बुराइयां दूर नहीं होंगे, दूर करने के लिए संकल्पित होना होगा. खुद के अंदर छिपे रावण को जलाना होगा. तभी रावण दहन की सार्थकता सिद्ध हो सकती है अन्यथा आकर्षक रावण दहन का आयोजन कर भीड़ इकठ्ठा किया का जा सकता है ! बुराइयों को खत्म नहीं. खुद के अंदर छिपे बुराई रूपी रावण को जलाने की आवश्यकता है, पुतले को नहीं.

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