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रीवा किले का दशहरा : धर्म, संस्कृति और राजवंश की धरोहर


🔱 रीवा राज्य और दशहरा परंपरा

1️⃣ रीवा राजपरिवार का इतिहास

* रीवा (बघेलखण्ड) का राजघराना **सोलहवीं सदी** से प्रसिद्ध है।
* इस वंश को **बघेल राजवंश** कहते हैं, जिनकी जड़ें गुजरात के सोमनाथ और काशी से जुड़ी मानी जाती हैं।
* रीवा नरेशों का विशेष महत्व रहा क्योंकि वे *रामायण-महाभारत* की परंपराओं से प्रेरित होकर शासन व धर्म का पालन करते रहे।

रीवा राजवंश की प्रमुख वंशावली

1. वीर सिंह देव– (1617 ई.) रीवा राज्य के संस्थापक
2. अमर सिंह
3. अनूप सिंह
4. अब्दुल्ला खान बघेल
5. गुरुदत्त सिंह
6. विष्णुनाथ सिंह
7. रघुराज सिंह – विद्वान, कला-प्रेमी राजा
8. विजय रघुराज सिंह
9. महाराजा गुलाब सिंह (1854-1880)
10. महाराजा रघुराज सिंह (1880-1918)
11. महाराजा मार्तंड सिंह जूदेव (1918-1995) – “श्वेत बाघ” (White Tiger) मोहन का पालन इन्हीं के समय में हुआ
12. पुष्पराज सिंह – (वर्तमान में राजपरिवार के प्रमुख)

2️⃣ दशहरे का महत्व

* रीवा किले में दशहरे का पर्व **राजपरिवार की गद्दी पूजा** के साथ मनाया जाता है।
* इस पूजा को *राज-धर्म पूजा* भी कहते हैं, जहाँ राजा अपने आपको "प्रजा का सेवक" मानकर सिंहासन की पूजा करता है।
* यह परंपरा त्रेतायुग में **रामराज्य** से प्रेरित मानी जाती है।

3️⃣ गद्दी पूजा

* विजयदशमी के दिन किले के भीतर विशेष पूजा होती है।
* राजगद्दी (सिंहासन) को शस्त्र, ग्रंथ और देवी-पूजा के साथ सजाया जाता है।
* राजा (या वर्तमान में राजपरिवार का उत्तराधिकारी) स्वयं इस गद्दी की पूजा करता है।
* यह संदेश देता है कि “गद्दी ईश्वर की है, हम केवल उसके सेवक हैं।”

4️⃣ धर्म और शास्त्र आधारित परंपरा

* दशहरा पर्व का वर्णन **कालिका पुराण, मार्कण्डेय पुराण और देवी भागवत** में मिलता है।
* शस्त्र पूजा (आयुध पूजन) का उल्लेख **महाभारत** और *अग्नि पुराण* में भी है।
* रीवा किले में यही परंपरा जीवित है—राजा पहले शस्त्रों की पूजा करते हैं, फिर गद्दी और फिर नगरयात्रा।

5️⃣ परंपरागत नगर यात्रा

* पूजा के उपरांत राजपरिवार नगरयात्रा निकालता है।
* इसमें हाथी-घोड़े, परंपरागत वेशभूषा, राजचिन्ह और धार्मिक ध्वज साथ चलते हैं।
* यह यात्रा नगरवासियों को दर्शन देने और आशीर्वाद स्वरूप होती है।

6️⃣ पीढ़ी दर पीढ़ी परंपरा

* पहले यह गद्दी पूजा स्वयं रीवा नरेश करते थे।
* आज भी रीवा राजघराने के उत्तराधिकारी इस परंपरा को निभाते हैं।
* इस अवसर पर नगर के सभी प्रबुद्धजन, विद्वान और नागरिक आमंत्रित होते हैं।

✨ निष्कर्ष
रीवा किले का दशहरा केवल एक उत्सव नहीं है, यह धर्म, परंपरा, शस्त्रपूजन और राजधर्म का अद्वितीय संगम है।
यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है और आज भी वैभव और आस्था के साथ जीवित है।
संकलन कर्ता
अभिलाष कुमार पाठक
AIMA MEDIA
RSIT School Of Excellence
RSIT INSTITUTE KARKELI

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