
शब्दों के मोती स्मृतियों की माला
🪔शब्दों के मोती – स्मृतियों की माला🪔
🏵️1
भावों का सागर थम भी जाए,
लहरें फिर लौट बुलाती हैं।
स्मृतियों की माला में मोती,
गीत बन जगमग छा जाती हैं।।
🏵️2
कहीं योद्धा-से शब्द खड़े हैं,
अन्यायों को ललकार रहे।
कहीं प्यार-भरी सरगम बनकर,
नफरत की दीवारें तोड़ रहे।।
🏵️3
कभी दीप बन अंधियारे में,
नई राह दिखलाते जाते।
कभी स्वप्न बन मन के आँगन,
सपनों को रंग सजाते जाते।।
🏵️4
कभी बूँद बन आँसू ढलते,
चुपके से हँसी जगा जाते।
कभी उड़ान बन हौसलों की,
आसमान को छू आते जाते।।
🏵️5
ये अनमोल धरोहर शब्दों की,
जीवन को अर्थ दिलाती हैं।
हर धड़कन में छिपकर चुपके,
नई कहानियाँ कह जाती हैं।।
🏵️6
कभी प्रार्थना बन होठों पर,
सुकून सा बरसा जाते।
कभी ज्वाला बन अन्यायों से,
संघर्ष में लहर दिखा जाते।।
🏵️7
कभी ऋतु बन बहारों जैसी,
मन को महका जाते हैं।
कभी अमृत बन धरती पर,
जीवन-धारा सजाते हैं।।
🏵️8
शब्द ही तो आत्मा की गूँज,
जो युगों-युगों तक रहती।
सागर से गहरे, नभ से ऊँचे,
अनंत सत्य में ढल जाती।।
🏵️9
कभी दर्पण मन का चेहरा,
सारे रंग दिखलाता है।
कभी शरण बन हाथ थामकर,
पीड़ा का रूप बदल जाता है।।
🏵️10
कभी शंख-नाद गगन गूँजे,
जाग्रत कर चेतना जगाए।
कभी शीतल छाँव बनकर,
मन का ताप हर ले जाए।।
🏵️11
ये शब्द ही जीवन-धारा,
हर पल बहते जाते हैं।
स्मृतियों की गहराई में,
रत्न अनमोल बन जाते हैं।।
🏵️12
अनंत है ये यात्रा उनकी,
हर हृदय में घर करती।
भाव-सागर के हर मोती से,
नई गाथा जग रचती।।
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✒️ यह मौलिक रचना कवि -: सुरेश पटेल "सुरेश"🖌️🖌️ की है, किसी अन्य कवि की कृति से ली हुई नहीं है।