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सरगुजा का दशहरा मेला बना दर्दनाक हादसों का गवाह

उदय साहू सीतापुर सरगुजा

त्योहारों की खुशियों में क्यों घुलने लगा है मातम?

सरगुजा का दशहरा मेला बना दर्दनाक हादसों का गवाह

सरगुजा, छत्तीसगढ़ —
कभी खुशी, उमंग और मिलन का प्रतीक माने जाने वाले त्योहार अब दर्द और मौत की खबरों से जुड़ते जा रहे हैं। सवाल गंभीर है — क्या हमारे पर्व अब असुरक्षित हो चुके हैं?

सरगुजा जिले में दशहरा उत्सव के दौरान हुई भीषण सड़क दुर्घटनाओं ने पूरे क्षेत्र को झकझोर दिया। राष्ट्रीय राजमार्ग-43 पर अलग-अलग हादसों में चार लोगों की मौके पर मौत हो गई, जबकि बतौली क्षेत्र से 16 लोग गंभीर रूप से घायल बताए जा रहे हैं।
जगह-जगह अफरा-तफरी का माहौल है, अस्पतालों में परिजनों की चीखें गूंज रही हैं और कई घरों में मातम पसरा हुआ है।

ये सिर्फ हादसे नहीं, बल्कि समाज के लिए एक गहरी चेतावनी हैं —
कहीं भीड़ का प्रबंधन कमजोर पड़ रहा है, तो कहीं रफ्तार पर लगाम नहीं लग पा रही। त्योहारों के नाम पर बढ़ती भीड़, अनियंत्रित वाहन संचालन, पुलिस-प्रशासन की सीमित व्यवस्था और जनता की लापरवाही — सब मिलकर मौत को दावत दे रहे हैं।

त्योहार का मकसद खुशी बांटना है, लेकिन जब वही दिन किसी के जीवन का आखिरी दिन बन जाए, तो समाज को सोचना होगा कि गलती कहाँ हो रही है।

अब वक्त आ गया है कि हम सिर्फ उत्सव मनाना नहीं, बल्कि उसे सुरक्षित बनाना भी सीखें।
प्रशासन को ट्रैफिक और सुरक्षा व्यवस्थाओं को सख्ती से लागू करना होगा, वहीं नागरिकों को भी जिम्मेदारी से त्योहार मनाने की समझ विकसित करनी होगी।

वरना हर पर्व के बाद यही सवाल गूंजेगा —

> “खुशी का मौका... या किसी का आखिरी दिन?

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