
दो दिवसीय “पंचायत अभिलेख प्रशिक्षण कार्यशाला” का द्वितीय दिवस सफलतापूर्वक सम्पन्न!
प्रेस राम कुमार टेकाम
सोनभद्र, उत्तर प्रदेश
बनवासी सेवा आश्रम गोविंदपुर सोनभद्र उत्तर प्रदेश के द्वारा आयोजित दो दिवसीय “पंचायत अभिलेख प्रशिक्षण कार्यशाला” के द्वितीय दिन ग्राम पंचायतों से जुड़े महत्वपूर्ण विषयों पर विस्तार से चर्चा की गई।
सत्र की शुरुआत ग्राम सभा की शक्ति पर विचार-विमर्श से हुई। बताया गया कि नियमपूर्वक की गई ग्राम सभा के प्रस्ताव को देश के राष्ट्रपति के अलावा कोई रोक नहीं सकता, यही ग्राम सभा की वास्तविक ताकत है।
कार्यशाला में निम्न विषयों पर गहन चर्चा हुई –
1️⃣ ग्राम सभा व ग्राम की ताकत
2️⃣ ग्राम पंचायत व स्थायी समितियों का महत्व
3️⃣ ग्राम पंचायत विकास योजना (GPDP) तैयार करने के व्यवहारिक चरण
4️⃣ ग्राम पंचायत को मिलने वाले पुरस्कार व उनकी नियमावली
5️⃣ ग्राम पंचायत आय-व्यय खाता लेखन प्रक्रिया
6️⃣ मॉडल ग्राम सभा के मानक बिंदु
7) SDG शाश्वत विकास लक्ष्य।
कार्यशाला में कुल 60 प्रतिभागी शामिल रहे, जिनमें 13 ग्राम प्रधान, 14 ग्राम पंचायत प्रतिनिधि, 20 पंचायत एवं क्लस्टर स्तरीय कार्यकर्ता तथा 13 ग्रामीण अगुआ शामिल थे।
सत्र का संचालन एवं मार्गदर्शन श्री प्रभाकर सिंह जी (पूर्व ग्राम प्रधान, प्रतापगढ़) और शशांक जी (ग्राम विकास अधिकारी प्रयागराज) ने PAI तथा CRS के बारे में विस्तार से जानकारी साझा किया – भारत में सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (सीआरएस) का इतिहास 19वीं शताब्दी के मध्य तक जाता है। 1886 में, एक केंद्रीय जन्म, मृत्यु और विवाह पंजीकरण अधिनियम लागू किया गया था ताकि पूरे ब्रिटिश भारत में स्वैच्छिक पंजीकरण की व्यवस्था की जा सके। स्वतंत्रता के बाद, जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम (आरबीडी अधिनियम) 1969 में लागू किया गया था ताकि देश भर में जन्म और मृत्यु के पंजीकरण में एकरूपता और तुलना को बढ़ावा दिया जा सके और महत्वपूर्ण आंकड़ों का संकलन किया जा सके। अधिनियम के लागू होने के साथ, भारत में जन्म, मृत्यु और मृत जन्म के पंजीकरण अनिवार्य हो गए हैं।
यह अधिनियम देश में जन्म और मृत्यु के पंजीकरण को व्यवस्थित और मानकीकृत करने में मदद करता है, जिससे महत्वपूर्ण आंकड़ों का संकलन और विश्लेषण संभव हो पाता है।
पंचायत प्रगति सूचकांक (पीएआई) एक बहु-क्षेत्रीय और बहु-आयामी सूचकांक है जिसका उद्देश्य पंचायतों के समग्र विकास, प्रदर्शन और प्रगति का आकलन करना है। यह सूचकांक विभिन्न सामाजिक-आर्थिक संकेतकों और मापदंडों को ध्यान में रखता है ताकि पंचायत के अधिकार क्षेत्र में आने वाले स्थानीय समुदायों की भलाई और विकास की स्थिति का मूल्यांकन किया जा सके।
पंचायत प्रगति सूचकांक में आमतौर पर निम्नलिखित कारकों पर विचार किया जाता है:
1. *बुनियादी ढांचा*: सड़कों, बिजली, जल आपूर्ति, स्वच्छता सुविधाओं जैसी बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता।
2. *स्वास्थ्य और शिक्षा*: स्वास्थ्य सेवाओं, शैक्षिक संस्थानों, साक्षरता दर और स्कूलों में नामांकन तक पहुंच।
3. *आर्थिक संकेतक*: आय स्तर, रोजगार के अवसर, कृषि उत्पादकता और आर्थिक गतिविधियाँ।
4. *सामाजिक संकेतक*: गरीबी दर, लिंग समानता, सामाजिक समावेश और जीवन की समग्र गुणवत्ता।
5. *शासन और प्रशासन*: स्थानीय शासन की दक्षता और पारदर्शिता, सार्वजनिक सेवाओं की आपूर्ति और नागरिक भागीदारी।
6. *पर्यावरणीय स्थिरता*: पारिस्थितिक संतुलन, संरक्षण और स्थायी प्रथाओं से संबंधित उपाय।
पंचायत प्रगति सूचकांक सार्वजनिक प्रतिनिधियों, नीति निर्माताओं, सरकारी एजेंसियों और स्थानीय अधिकारियों को पंचायतों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले ग्रामीण क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता वाले क्षेत्रों में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा। यह असमानताओं की पहचान करने, विकास लक्ष्यों की प्राप्ति और ग्रामीण समुदायों की समग्र भलाई और जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए लक्षित नीतियों और हस्तक्षेपों को तैयार करने में मदद करता है।
पंचायत प्रगति सूचकांक की गणना में उपयोग किए जाने वाले विशिष्ट संकेतक और वजन शासी निकाय या संगठन के लक्ष्यों और प्राथमिकताओं पर आधारित हो सकते हैं जो सूचकांक का विकास और उपयोग करते हैं।