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सस्ती जमीन के जाल में फंसे लोग, चौहान के कारनामों से परेशान – गुलरिहा थाने की चुप्पी पर सवाल

यदि आप भी जमीन की तलाश में है और वो जमीन गुलरिहा थाना क्षेत्र में है तो यकीन मानिए ये खबर आपको थाने और कोर्ट के चक्कर लगाने से बचा सकती है।
खास तौर से तब जब इस सौदे में गुलरिहा के जंगल एकला नं 2 के अजय चौहान का नाम हो।
सस्ती जमीन की तलाश में निकले लोग अब पछता रहे हैं कि उन्होंने लालच किया या गलती। गुलरिहा थाना क्षेत्र इन दिनों ऐसे कई मामलों का गवाह बना है जहां जमीन का सौदा तो हुआ, पर सौदा करने वाले के साथ जमीन भी चली गई और जमीन पर चलने का हक भी।

इन तमाम मामलों के केंद्र में है एक नाम—अजय चौहान।
कहने को तो एक आम व्यक्ति, लेकिन इलाके में उसका नाम अब धोखाधड़ी का पर्याय बनता जा रहा है।




तीन साल, तीन कारनामे – और हर बार नया शिकार

पहला मामला 2023 का बताया जाता है, जब अजय चौहान ने इंद्रेश नामक व्यक्ति की 22 डिसमिल जमीन मात्र दो लाख रुपये में लिखवा दी गई नाम आया अजय चौहान ।
रक़म सुनकर ही समझा जा सकता है कि खेल कितना गहरा था।
लोग कहते हैं, "इतनी सस्ती जमीन तो ख्वाब में भी नहीं मिलती," लेकिन चौहान ने ये खेल हकीकत में खेल दिखाया।

2024 में उसने फिर नया करतब दिखाया।
अपने ही चाचा रामप्रताप की जमीन को किसी और व्यक्ति को रामप्रताप  काश्तकार के रूप में दिखाकर जमीन को एक मैरेज लॉन के मालिक को बैनामा कर दिया।
इस बार मामला करीब 28 लाख रुपये की हेराफेरी का था।
जब मामला खुला, तो रिश्तों की आड़ में रचा गया यह नाटक पूरे गांव की चर्चा बन गया।

2025 में चौहान के कारनामे की तीसरी किस्त सामने आई—
मानसिक रूप से अक्षम व्यक्ति नंदलाल की जमीन को गोरखपुर के शाहपुर थाना क्षेत्र के एक व्यक्ति को लिखवा दी।
इस बार रकम 30 लाख के करीब बताई जाती है।
यानी तीन साल में तीन बार ठगी, और हर बार तरीके इतने सधे कि कानून बस देखते रह गया।




इसे कानून की आंखों पर पट्टी बांधी होने का फायदा उठाना कह लीजिए या गुलरिहा थाने की खामोशी?

सवाल सिर्फ चौहान की चालाकी का नहीं, उस सिस्टम का भी है जो ऐसे लोगों को बार-बार मौका देता है।
तीनों मामले गुलरिहा थाना क्षेत्र के हैं।
लोग कहते हैं—“थाना सब जानता है, पर बोलता नहीं।”
कभी मामला दर्ज नहीं होता, कभी पुलिस ‘जांच में है’ कहकर फाइल बंद कर देती है,
और यदि मामला दर्ज हो गया तो  अजय चौहान अग्रिम जमानत लेकर फिर से उसी इलाके में नए सौदे की तैयारी में जुट जाता है।

यह सिलसिला अब खुला रहस्य बन चुका है।
लोग खुलकर बोलने लगे हैं—“यह सिर्फ एक व्यक्ति का खेल नहीं, इसमें कुछ हाथ और भी हैं जो पर्दे के पीछे से धक्का देते हैं।”
लेकिन पुलिस प्रशासन अब तक मौन है।
कहते हैं—मौन भी कभी-कभी सहमति जैसा लगता है।




नतीजा ये हुआ कि लोगों को न जमीन मिली, न पैसा, उल्टा  थाने और कोर्ट का चक्कर अलग लगा रहे।

जिन लोगों ने अजय चौहान पर भरोसा किया, वे आज कोर्ट-कचहरी के चक्कर काट रहे हैं।
किसी को जमीन नहीं मिली, किसी को पैसा नहीं लौटा।
ऊपर से वकीलों की फीस, तारीख पर तारीख और निराशा।
लोग कहते हैं—“सस्ती जमीन के चक्कर में जिंदगी महंगी पड़ गई।”
और अजय चौहान उन्हीं के पैसे से केस लड़ रहा और लोग अपने पैसे के लिए और पैसे लगा रहें। कमाल की बात है पर उसके लिए ये आम बात है।

गांव में अब यह चर्चा आम है कि चौहान के लिए यह सब “बाएं हाथ का खेल” बन चुका है।
वो कानून के हर छेद को जानता है, और उसका इस्तेमाल करना भी।
थोड़ी देर में पकड़, थोड़ी देर में जमानत—फिर वही शुरुआत, वही इलाका, वही शिकार।




कौन है अजय चौहान?

अब सबसे बड़ा सवाल—कौन है अजय चौहान?
कैसे इतनी सफाई से करता है खेल, और हर बार बच निकलता है?
स्थानीय लोग कहते हैं, “जहां उसके पिता आचार बनाने में माहिर हैं, वहीं बेटा कदाचार में माहिर हो गया है।”
बाप ने आम का अचार बेचा, बेटे ने आम लोगों को ही बेच डाला।






इन घटनाओं के बाद भी प्रशासन इसे “छोटे स्तर की जमीन संबंधी अनियमितता” बताकर टाल देता है।
लेकिन सच यह है कि हर ठगी के साथ किसी गरीब की मेहनत, किसी परिवार की जमा पूंजी और किसी बूढ़े की उम्मीद लुट जाती है।
अगर ऐसे मामलों पर समय रहते कार्रवाई नहीं हुई तो गुलरिहा धीरे-धीरे ठगों की सुरक्षित शरणस्थली बन जाएगा।
फिलहाल सवाल वही है – क्या गुलरिहा की खामोशी में कोई राज़ छिपा है या कानून की किताबें अब भी चौहान जैसे लोगों से अनजान हैं?

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