logo

मसूरी की मॉल रोड: विरासत बनाम रोज़गार की खींचतान

मसूरी की मॉल रोड: इतिहास से आज तक की यात्रा

मसूरी की मॉल रोड, जिसे पहली बार ब्रिटिश काल में बनाया गया था, आज एक आकर्षण का केंद्र है, लेकिन इसके साथ जुड़ी समस्याएँ भी उतनी ही पुरानी हैं। यह सड़क जब पहली बार बनी थी, तब यह अंग्रेज़ों के लिए एक विशिष्ट स्थल था, जहां वे आराम करते, घूमा-फिरा करते और सामाजिक मेलजोल स्थापित करते थे। यह कालखंड उस समय का है जब मसूरी “क्वीन ऑफ हिल्स” के नाम से जानी जाती|

औपनिवेशिक दौर और प्रारंभिक इतिहास

ब्रिटिश अधिकारियों ने 19वीं सदी के प्रारंभ में मसूरी के प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर इसे एक आरामदायक स्थल के रूप में विकसित किया। उन दिनों, यहाँ की ऊंचाई – लगभग 2000 मीटर — गर्मियों में आराम का स्थान थी। अंग्रेज़ों ने इस क्षेत्र पर अपना अधिकार बना कर मकान, क्लब, थिएटर और चर्च जैसी संरचनाएँ बनाईं, जो आज भी मॉल रोड के वास्तुशिल्प में देखी जा सकती हैं। उस समय भारतीयों का प्रवेश यहाँ वर्जित था, पर धीरे-धीरे समय के साथ यह प्रतिबंध खत्म हुआ और यह सड़क पर्यटकों के लिए खुल गई। ब्रिटिश काल में यहाँ का मॉल रोड मुख्य सामाजिक केंद्र था। यह वह स्थान था जहां ब्रिटिश अधिकारी घूमते थे, युवा क्लब सुरक्षा से मिलते थे, और शाम को ये जगहें रोशनी और सजीवता से भरपूर हो जाती थीं। फिर भी, इतिहास में कहा जाता है कि उस समय भारतीयों का यहाँ प्रवेश वर्जित था, जिसे मोतीलाल नेहरू जैसे स्वतंत्रता संग्रामियों ने तोड़ा।

आधुनिक समय का विकास और बदलाव

आज़ादी के बाद यह सड़क सबकी हो गई—स्थानीयों की भी, पर्यटकों की भी। लेकिन धीरे-धीरे आज़ादी की हवा के साथ अव्यवस्था की धूल भी यहाँ जमने लगी। जहाँ कभी सैर और संवाद होता था, वहाँ अब पहली समस्या आई—अतिक्रमण और अवैध निर्माण की आदत, मानो सड़क भी कह रही हो: “मुझे चलने दो, मुझ पर चढ़कर मत बैठो।” 1960–70 के दशक में तिब्बती बाज़ार खड़ा हुआ—शुरुआत में यह शरणार्थियों का संघर्ष था, ऊनी कपड़ों की महक और हस्तशिल्प की गर्माहट थी। लेकिन वक्त के साथ चेहरों में भी बदलाव आया। आज उस बाज़ार में कई दुकानें ऐसे चेहरों की हैं जिनमें तिब्बती पहचान ढूँढना मुश्किल है—ज्यादातर पट्टे पर ली गईं या खरीदी गईं दुकानें मैदानों से आए व्यापारियों के पास हैं। नाम अभी भी “तिब्बती” है, पर आत्मा कहीं और की है। भोटिया बाज़ार की कहानी भी कुछ अलग नहीं। कभी यह स्थानीय हस्तशिल्प और भोटिया परंपरा का केंद्र था, लेकिन अब यह सस्ते आयातित सामान और बाहरी व्यापारियों का ठिकाना बन गया है। चेहरों का रंग-रूप और भाषाएँ बदल चुकी हैं, पर बोर्ड अब भी वही “भोटिया” कहता है—मानो नाम और बाज़ार के भीतर की सच्चाई में अब कोई रिश्ता न रहा हो। 1990 के दशक में कैमेल्स बैक रोड पर घोड़ों के लिए दुकानें बनीं—इरादा नेक था, पर वहाँ भी जल्द ही वही हुआ। घोड़ों की जगह पट्टों और पुनर्विक्रय की मंडी ने ले ली। यह वही पुरानी कहानी है: इरादे हमेशा साफ़ थे, पर अमल हमेशा गंदा निकला।

नीति, प्रशासन और चुनौतियां

2014 में सरकार ने Street Vendors Act पारित किया, जिसमें यह निर्देश था कि पाँच वर्ष में बार-बार सर्वे और सत्यापन किया जाए। इसके बावज़ूद, स्थानीय प्रशासन और नगर पालिका ने इस पर ध्यान नहीं दिया। प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा था कि अगर कभी सर्वे हुआ तो भी ठोस कदम उठाने के बजाय कागजी कार्रवाई तक ही सीमित रहा। 2023 में शहरी विकास विभाग ने आदेश दिया कि मॉल रोड की देखरेख Public Works Department (PWD) के जरिये होगी, और अतिक्रमण हटाने का दायित्व जिलाधिकारी और नगर पालिका का होगा। मगर, इन आदेशों का भी ठीक से पालन नहीं हुआ। 2024-2025 में पालिका ने वहां कियोस्क बनाने का प्रयास किया, जिस पर नागरिकों और दुकानदारों का भारी विरोध हुआ। यह दर्शाता है कि आदेश और क्रियान्वयन में दूरी कितनी अधिक है।

राजनीति, बहस और सामाजिक धाराएँ

मसूरी की समस्या का एक बड़ा पहलू राजनीति भी है। यहाँ के नेता व पार्षद अपने-अपने तरीके से प्रस्ताव रखते हैं। एक ओर, मुख्य पार्षद गीता कुमांई ने किंक्रेग पार्किंग में फ्ली मार्केट बनाने का सुझाव दिया है, तो दूसरी ओर, नगरपालिका की अध्यक्ष मीरा सकलानी का कहना है कि मॉल रोड को वेंडर मुक्त रखना आवश्यक है ताकि यह पर्यटकों के लिए आकर्षक बना रहे। पूर्व पालिका अध्यक्ष अनुज गुप्ता ने वेंडरों के पक्ष में आवाज़ उठाई है। उनका कहना है कि पटरी व्यापारियों की आजीविका सुरक्षित रहनी चाहिए, लेकिन यह काम केवल व्यवस्थित ढंग से हो। उन्होंने मांग की है कि पहले एक पारदर्शी सर्वे कराया जाए और उसी आधार पर वेंडर ज़ोन की पहचान की जाए। उनका स्पष्ट मत है कि बिना सर्वे और सूचीकरण के किसी भी वेंडर को बैठाना अराजकता को और बढ़ा देगा। वहीं, पूर्व अध्यक्ष मनमोहन सिंह मल्ला का तर्क है कि यदि समय पर कार्रवाई होती तो आज यह स्थिति न होती। यह बहस राजनीति और प्रशासन के बीच फंसी हुई है, जिसमें समाधान न होकर आरोप-प्रत्यारोप का खेल चलता रहता है।
ताज़ा घटनाक्रम में, भाजपा युवा मोर्चा के वरिष्ठ नेता और अधिवक्ता आर्यन देव उनियाल ने नगर पालिका अध्यक्ष मीरा सकलानी के प्रयासों का खुलकर समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि मॉल रोड और फुटपाथ व्यापारियों को लेकर जो व्यवस्था लागू की जा रही है, वह Street Vendors Act 2014 के दायरे में रहकर और जनहित को ध्यान में रखते हुए की जा रही है। उनके अनुसार, टाउन वेंडिंग कमेटी की प्रक्रिया के तहत ही वेंडरों की सूची तैयार की जा रही है और जल्द सार्वजनिक की जाएगी, जिससे पारदर्शिता बनी रहे। आर्यन देव ने विपक्ष पर आरोप लगाया कि वे पटरी व्यापारियों के मुद्दे का इस्तेमाल केवल राजनीति करने के लिए कर रहे हैं, जबकि वास्तविक ज़रूरत इसे रोज़गार और शहर के विकास के नजरिये से देखने की है। उन्होंने पूर्व पालिका अध्यक्ष अनुज गुप्ता पर भी भ्रष्टाचार और लीज़ समझौतों के ज़रिये नगर की संपत्तियों को लंबे समय तक बांध देने का गंभीर आरोप लगाया। वहीं अपने पिता और पूर्व पालिका अध्यक्ष ओ.पी. उनियाल के कार्यकाल को याद करते हुए उन्होंने कहा कि उस समय विकास और रोज़गार के कई प्रोजेक्ट लाए गए थे, लेकिन स्थानीय राजनीति ने उन्हें सफल नहीं होने दिया।

नागरिक और व्यापारी आवाज़ें

मसूरी के लोग इस बहस के बीच खुद को तीन हिस्सों में बंटा हुआ महसूस करते हैं। सबसे पहले होटल और पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोग हैं। उनकी चिंता साफ़ है—मसूरी का असली आकर्षण उसकी शांति और सौंदर्य है। यदि मॉल रोड पर भीड़ और अराजकता बनी रही तो उच्च आय वर्ग के पर्यटक यहाँ आना छोड़ देंगे। यह सिर्फ़ होटलों या दुकानों का नुकसान नहीं होगा, बल्कि पूरे नगर की अर्थव्यवस्था को डगमगा देगा। इसके बाद आते हैं वे नागरिक और दुकानदार जो कर अदा करते हैं, नगर की मशीनरी को जीवित रखते हैं। उनकी व्यथा कम मुखर है, पर गहरी है। “हमारे टैक्स से शिक्षा योजनाएँ, अन्न वितरण और मिड-डे मील चलते हैं—पर हमें क्या मिलता है?” उनका उत्तर है—“अव्यवस्था।” घंटाघर और सिविल हॉस्पिटल bottleneck बन चुके हैं, लैंडौर तक पहुँचना रोज़ का संघर्ष है, बरसाती नाले बंद पड़े हैं। हालात यह हैं कि कभी-कभी देहरादून से मसूरी आने में जितना समय लगता है, उतना ही समय बड़ा मोड़ से अपने घर पहुँचने में लग जाता है। असली सवाल उनका यही है: क्या नियम-कानून सिर्फ़ एक वर्ग के लिए हैं या सब पर बराबर लागू होंगे? यह व्यथा केवल व्यापारियों की नहीं, बल्कि हर उस करदाता की है जो नगर से व्यवस्था और सम्मान चाहता है।
यही से बहस और गहरी होती है। कुछ नागरिक कहते हैं कि अवैध कब्ज़ों को वैध कर देना कोई समाधान नहीं, बल्कि अराजकता को इनाम देना है। असली vendor zone वह है जिसे योजना और सर्वे से तय किया जाए, न कि सड़क पर कब्ज़ा करने वालों को स्थायी दुकान दे दी जाए। कोई दिल्ली की पालिका मार्केट का उदाहरण देता है, तो कोई कहता है कि मसूरी जैसे पर्यटन-निर्भर नगर में वही मॉडल नहीं चलेगा। सुझाव यह भी हैं कि कसमंडा और पोस्ट ऑफिस जैसी पुरानी जगहों का पुनः सत्यापन किया जाए, ताकि असली वेंडरों को वहीं शिफ्ट किया जा सके। कुछ लोग नियम तय करने की मांग करते हैं—“किसे वाकई गरीब माना जाए? कौन स्थायी निवासी है? कौन वर्षों से यहाँ बैठ रहा है? और कौन महज़ किराए की स्कूटी चलाता है या करोड़ों की ज़मीन का मालिक होते हुए भी सड़क पर दुकान लगाता है?” उनका कहना है कि यदि यही हाल रहा तो ईमानदार दुकानदार भी अपनी दुकानें बंद कर पलंग सड़क पर डालने के लिए मजबूर हो जाएंगे। कई नागरिक गुस्से में कहते हैं कि वेंडर अब सिर्फ़ मॉल रोड पर ही नहीं, बल्कि जोड़ने वाली गलियों और रास्तों तक फैल चुके हैं। वहाँ से न गाड़ियाँ निकल पाती हैं, न लोग। सुनवाई कहीं नहीं, बस राजनीति। वार्ड सदस्य गीता कुमाई भी पूछती हैं कि तीन महीने में आखिर सर्वे क्यों नहीं हुआ और विवादित स्थल पर ही टेंडर क्यों निकाला गया। उनका व्यंग्य तीखा है—“अगर हेमकुंड अपार्टमेंट के रास्ते में बक्से रख दिए जाएं तो क्या कोई परेशानी नहीं होगी?” और अंततः आते हैं वेंडर—वे छोटे व्यापारी जिन्होंने धूप-बारिश झेली है, दशकों से अपनी रोज़ी-रोटी इस सड़क से जोड़ी है। उनकी मांग बस इतनी है कि उन्हें सम्मान मिले, सुरक्षा मिले, और उनकी आजीविका का रास्ता पूरी तरह बंद न हो। वे भी नगर का हिस्सा हैं, लेकिन अक्सर सबसे असुरक्षित स्थिति में खड़े रहते हैं। इन तमाम आवाज़ों का निचोड़ यही है कि असली लड़ाई रोज़गार बनाम विरासत की नहीं है, बल्कि न्याय बनाम अव्यवस्था की है।

पर्यटन, अर्थव्यवस्था और विकास

मसूरी हर साल लगभग 25-30 लाख पर्यटक आकर्षित करता है। इनमें से कई उच्च आय वर्ग के पर्यटक हैं, जो होटलों, रेस्टोरेंट्स, वेस्टर्न शॉपिंग और स्थानीय हस्तशिल्प में पैसा खर्च करते हैं। यदि यहाँ अतिक्रमण और अव्यवस्था बनी रही, तो ये पर्यटक कहीं और चले जाएंगे, जिससे मसूरी का पर्यटन उद्योग प्रभावित होगा। यह नुकसान न सिर्फ़ वेंडरों का होगा, बल्कि पूरे क्षेत्र की दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता पर भी असर पड़ेगा।
समाधान: नया पर्यटन मॉडल और स्थायी व्यवस्थाएँ
अब जरूरत है पार्किंग, साफ-सफाई, और स्थानीय हस्तशिल्प को प्रमोट करने वाले मॉडल की, जैसे “Himalayan Haat” या “Winterline Market”। ये बाजार स्थायी, सुविधाजनक और पर्यटक आकर्षण बनने चाहिए। ये बाजार छोटे, हरित और पेशेवर बन सकते हैं। इसमें वेंडरों को प्रशिक्षित करें, यूनिफ़ॉर्म कियोस्क बनें, और नियमित रूप से ऑडिट और निरीक्षण से इसे पारदर्शी बनाएं। स्थान: किंक्रेग पार्किंग का एक तल, कंपनी गार्डन, जॉर्ज एवरेस्ट ग्राउंड या नगरपालिका की जमीन का इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन इस प्रस्ताव पर भी निवासियों की आशंका है। उनका कहना है कि किंक्रेग पार्किंग मॉल रोड के दोनों मुख्य छोरों—गांधी चौक और पिक्चर पैलेस—से काफी दूर है। इसका नतीजा यह होगा कि लोग वहां तक पहुँचने से बचेंगे और बाजार का आकर्षण घट सकता है। और यदि मान भी लें कि यह सफल हो जाए, तब भी यह स्थान एक महत्वपूर्ण डायवर्जन पर स्थित होने के कारण सीजन में भारी ट्रैफिक जाम की स्थिति पैदा कर सकता है। यानी किसी भी तरह यह ‘डेविल्स चॉइस’ जैसी दुविधा है। उपयुक्त स्थान की तलाश अभी भी एक कठिन प्रश्न है। यह बाजार स्थानीय हस्तशिल्प, स्वदेशी खाद्य पदार्थ और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मंच बनाना चाहिए।

मॉल रोड का संरक्षण और जिम्मेदारी

मसूरी की मॉल रोड न सिर्फ़ एक सड़क है, बल्कि यह शहर की आत्मा, विरासत और संस्कृति का प्रतीक है। यदि इसे अतिक्रमण और गैरकानूनी गतिविधियों के हवाले कर दिया गया, तो आने वाली पीढ़ी इसे सिर्फ तस्वीरों में ही देख पाएगी। यह संघर्ष रोज़गार और विरासत के बीच का नहीं है, बल्कि सुख, समृद्धि और सांस्कृतिक विरासत का संतुलन खोजने का प्रयास है। मोमो की भाप उड़ सकती है, लेकिन मसूरी की आत्मा यहीं रहनी चाहिए। इसकी सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है।
“Save the Walk, Save the Work, Save Mussoorie.”
“मॉल रोड बाज़ार नहीं, मसूरी की पहचान है।”

5
20 views