दिवाली के दियों की रोशनी हर किसी ने देखी हैं लेकिन क्या देखा हैं दियों के पार का अंधेरा किसी ने तो. महसूस कीजिए वो अंधेरा जो एक झोपड़ी में मिलता है I
🌑 "दियों के पार का अंधेरा"आज दीवाली है —कहीं चाँदी के दियों में जल रही है अहंकार की लौ,कहीं मिट्टी के दिए में बुझता हुआ जीवन साँसें गिन रहा है।किसी के घर में रोशनी ने छत को छू लिया है,तो किसी की चौखट पर अब भी प्रश्न चिह्न है।मिठाइयों की ख़ुशबू में लिपटी हुई यह रात,भूख की गंध से बेख़बर है।धन के पटाखे फूटते हैं आसमान में,और नीचे धरती पर सपनों की राख बिखरती है।लक्ष्मी के आगमन की प्रतीक्षा में,मनुष्य ने शायद करुणा को ही निर्वासित कर दिया है।जहाँ धर्म दियों से सजाया जाता है,वहाँ अंधेरे को कोई नाम नहीं मिलता।ईश्वर, अगर तुम हो कहीं?आज भी, तुम्हारा आगमन होता है,इस धरती पर तो किसी महल की चौखट पर मत उतरना —उस झोपड़ी में जानाजहाँ रौशनी से ज़रूरी आज भी रोटी है।