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हलाल सर्टिफिकेशन पर चला योगी आदित्यनाथ का हथौड़ा

"धर्म के नाम पर कारोबार — योगी सरकार ने तोड़ा मौन"

✍️ दीपक सिंह की कलम से

उत्तर प्रदेश की राजनीति में योगी आदित्यनाथ का हर कदम अक्सर एक संदेश देता है — “सरकार केवल शासन नहीं, व्यवस्था का अनुशासन भी है।”
हलाल सर्टिफिकेशन पर प्रतिबंध उसी अनुशासन की नवीन अभिव्यक्ति है।

वर्षों से देश के बाज़ार में एक अदृश्य समानांतर व्यवस्था चल रही थी — हलाल प्रमाणन के नाम पर।
यह केवल मांस या खाद्य उत्पादों तक सीमित नहीं रहा; धीरे-धीरे दूध, साबुन, नमकीन, दवा और सौंदर्य प्रसाधनों तक फैल गया।
बाजार में “हलाल” की मोहर लगने लगी और “झूठे शुद्धिकरण” का खेल शुरू हो गया।
सरकार ने इस पर नकेल डालकर संकेत दिया है कि अब धर्म के नाम पर व्यापार और भ्रम के नाम पर कारोबार नहीं चलेगा।

योगी की नीति, राष्ट्रहित की नीयत

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह कहते हुए जनता से अपील की —

> “हलाल प्रमाणन के नाम पर चल रहा यह कारोबार केवल धार्मिक भावनाओं से नहीं, बल्कि आर्थिक हितों से भी जुड़ा है। इससे होने वाली कमाई का दुरुपयोग आतंकवाद और धर्मांतरण जैसी गतिविधियों में किया जा रहा है।”



यह बयान केवल प्रशासनिक निर्णय नहीं है, बल्कि राष्ट्रहित की नीयत से जुड़ा एक राजनीतिक संदेश भी है —
कि भारत की अर्थव्यवस्था और आस्था, दोनों विदेशी या एकांगी प्रमाणनों की मोहताज नहीं।

बाज़ार की पारदर्शिता और उपभोक्ता की सजगता

किसी भी व्यवस्था का पहला धर्म है — पारदर्शिता।
जब बाज़ार में प्रमाणन के नाम पर एक समानांतर व्यवस्था खड़ी हो जाती है, तो उपभोक्ता भ्रमित होता है, प्रतिस्पर्धा टूटती है और नीति का संतुलन बिगड़ता है।
योगी सरकार का यह कदम न केवल “धार्मिक लेबल” पर अंकुश है, बल्कि बाज़ार की शुचिता बहाल करने की दिशा में ठोस प्रयास भी है।

स्वदेशी और स्वाभिमान का संदेश

यह निर्णय उपभोक्ता को आत्मनिर्भरता और स्वदेशी भावना की ओर लौटने का आह्वान करता है।
जो वस्तुएं भारत के मानक संस्थानों से प्रमाणित हैं, वे ही भारतीय उपभोक्ता की पहली पसंद बननी चाहिए।
“हलाल” या “कोशर” जैसे शब्दों के मोहजाल में फँसना केवल भ्रम नहीं — आर्थिक पराधीनता का संकेत है।

अंत में...

योगी सरकार का यह निर्णय केवल एक प्रतिबंध नहीं, बल्कि एक संस्कृति-संकेत है —
कि धर्म, व्यापार और राष्ट्र — तीनों के बीच संतुलन तभी टिकेगा जब सत्य और स्वदेशी की भावना सर्वोपरि होगी।
अब सवाल केवल इतना है — क्या देश के अन्य राज्य भी इस दिशा में कदम बढ़ाने का साहस दिखाएँगे?


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(लेखक — दीपक सिंह)

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