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गुरु नानक जयंती: मानवता, समानता और सेवा का सन्देश


गुरु नानक जयंती: मानवता, समानता और सेवा का सन्देश

– प्रकाश इंगळे

हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाने वाली गुरु नानक जयंती केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि मानवता और नैतिकता के शाश्वत मूल्यों को पुनः स्मरण करने का अवसर है। सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन और विचारों के माध्यम से समाज को सत्य, समानता और सेवा की दिशा दिखाई।

गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 में ननकाना साहिब (अब पाकिस्तान में) हुआ। उन्होंने “इक ओंकार – ईश्वर एक है” का सार्वभौमिक संदेश दिया। उनके अनुसार, सच्ची भक्ति केवल पूजा में नहीं, बल्कि सत्य, श्रम और सेवा में निहित है। उनका प्रसिद्ध सूत्र “नाम जपो, किरत करो, वंड छको” आज भी जीवन का आदर्श मार्गदर्शक बन सकता है — अर्थात् ईश्वर का स्मरण करो, ईमानदारी से श्रम करो और दूसरों के साथ बाँटो।

गुरु नानक जी ने जाति-भेद, ऊँच-नीच और अंधविश्वासों का विरोध किया। उन्होंने स्त्री-पुरुष समानता का समर्थन करते हुए कहा —
“सो क्यों मंदा आखिए, जित जन्मे राजान।”
अर्थात् जिस स्त्री से राजा तक जन्म लेते हैं, उसे हीन कैसे कहा जा सकता है?

आज जब समाज विभाजन, स्वार्थ और असहिष्णुता की ओर बढ़ रहा है, तब गुरु नानक देव जी का संदेश पहले से अधिक प्रासंगिक हो उठता है। उनके उपदेश हमें याद दिलाते हैं कि सच्चा धर्म वही है जो सबको जोड़ता है, किसी को तोड़ता नहीं।

गुरु नानक जयंती का सन्देश आज भी अमर है —
“मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है, और सेवा ही सबसे सच्ची पूजा।”

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