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राष्ट्रीय गौधन महासंघ ने गायों को समर्पित शिखर सम्मेलन का शुभारंभ, सतिगुरू नानक देव जी का 556वां प्रकाश पर्व मना कर किया।

05-11-2025 (नई दिल्ली) राष्ट्रीय गौधन महासंघ द्वारा 5 नवंबर से 10 नवंबर तक ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनाने के लिए ‘मेजर ध्यान चंद नेशनल स्टेडियम’ नई दिल्ली में ‘एक विचारात्मक अहिंसक आंदोलन’ चलाया जा रहा है। जिस का शुभारंभ वर्तमान नामधारी गुरू, सतिगुरू दलीप सिंघ जी महाराज के आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन में, सतिगुरू नानक देव जी का प्रकाश पर्व मनाया गया। इस कार्यक्रम की मुख्य अध्यक्षता श्री सतिगुरू दलीप सिंघ जी की सपुत्री बीबी सुश्री जीवन कौर जी ने की। इस अवसर पर हरियाणा के मुख्य मंत्री नायब सिंघ सैनी, विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री आलोक कुमार, नई दिल्ली के लोक सभा के सांसद सुश्री बांसुरी स्वराज जी, सिरसा से पूर्व सांसद सुश्री सुनीता दुग्गल जी, स्वामी सुधांशु जी महाराज, श्री सतीश तनेजा और इस शिखर सम्मेलन की संयोजक एवं सभी प्रतिष्ठित हस्तियाँ उपस्थित रहीं।

सुश्री जीवन कौर जी ने गाय की महत्वता बताते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में आरंभ से ही गाय की महत्वता रही है। गाय के उसी महत्व को पुनर्जागरण करने हेतु, इस समागम का आयोजन "राष्ट्रीय गौ-धन संघ" द्वारा गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व से आरंभ किया जा रहा है। गाय को “माता” के समान माना गया है। इसी कारण, इसे “गौ माता” भी कहा जाता है। गाय केवल हिंदुओं के लिए ही “माता” नहीं है, केवल हिंदुओं के लिए ही गाय की रक्षा करनी व सेवा करनी आवश्यक नहीं है। गौ सेवा को, गौ रक्षा को, सभी भारतीय धर्मों में महान कार्य स्वीकार किया गया है। भारतीय संस्कृति से उपजे चारों पंथ व धर्म सनातन हिंदू, सिख, जैन, बुद्ध: इन चारों धर्मों में ही गाय की सेवा को महान माना जाता है।

सुश्री जीवन कौर जी ने बताया कि सतिगुरू नानक देव जी के सिख पंथ ने गौ धन की रक्षा हेतु बहुत बड़े कार्य किए हैं। यहां तक कि गौ धन की रक्षा तथा वृद्धि के लिए नामधारी सिखों ने सब से अधिक बलिदान दिए हैं। अमृतसर, रायकोट में नामधारी सिखों को फांसी दे दी गई, मलेरकोटला में बिना मुकद्दमा चलाए 66 नामधारी सिखों को तोपों से और एक को तलवार से शहीद कर दिया गया था।

नामधारी पंथ के बारे में संक्षेप जानकारी देते हुए सुश्री जीवन कौर जी ने बताया कि सतगुरु राम सिंह जी ने सिखी, आत्म सम्मान, समाज सुधार एवं देश की स्वतंत्रता के लिए 1857 ई. में वैसाखी वाले दिन नामधारी ‘संत खालसा’ की स्थापना की थी। स्त्रियों को अमृतपान करवाया, दहेज-मुक्त, अंतर्जातीय, सामूहिक, 'गुरमति आनंद मर्यादा' की शुभारंभ किए, बाल विवाह बंद करवाए। उन्होंने गांधी जी से 50 वर्ष पहले असहयोग आंदोलन व स्वदेशीयत की लहर को आरंभ किया। अंग्रेज सरकार द्वारा श्री सतिगुरू राम सिंघ जी के भैणी साहिब से बाहर निकल कर प्रचार करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया, उसे तोड़ कर सतिगुरू राम सिंघ जी ने 1867 ई. अमृतसर एवं आनंदपुर में जन जागरण के लिए सभाएं की। देश की स्वतंत्रता के लिए नेपाल तथा रूस से संपर्क स्थापित किए, कश्मीर राज्य में 'कूका पलटन' की स्थापना की। अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत करने के अपराध में सतिगुरू जी को निर्वासित कर के रंगून भेज दिया गया। नामधारी सिखों को कड़ी सजाएं दी गई। उन की संपत्तियां जब्त कर नीलाम कर दी गईं। बहुत से नामधारी सिखों को पत्थरों से बांध कर, समुन्द्र में डुबो कर मार दिया गया।

राष्ट्रीय गौधन महासंघ द्वारा किए जा रहे इस कार्यक्रम में नामधारी सिखों ने विश्व शांति व गौ-रक्षा हेतु हवन यज्ञ भी किए गए।

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