
मकरंडा के जराईकेला उप स्वास्थ्य केंद्र बना जर्जर खंडहर, स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह बदहाल
मनोहरपुर : प्रखंड अंतर्गत मकरंडा पंचायत का जराईकेला उप स्वास्थ्य केंद्र आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. यह उप स्वास्थ्य केंद्र जो कभी ग्रामीणों के लिए स्वास्थ्य सुविधा का एकमात्र सहारा था, आज झाड़ियों और जर्जर दीवारों के बीच खंडहर बन चुका है. अस्पताल की स्थिति इतनी दयनीय हो चुकी है कि इसे देख कर कोई भी सहज ही समझ सकता है कि ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था किस हाल में है.
अस्पताल भवन के चारों ओर झाड़ियाँ उग आई हैं, दीवारों पर पपड़ी झड़ चुकी है और परिसर में सफाई का नामोनिशान नहीं है.जबकि सफाई के नाम पर हर साल लाखों रुपए आता है तो आखिर जाता कहां है. भवन के मुख्य गेट का दरवाजा टूटा हुआ है, जिससे जानवर और असामाजिक तत्व आसानी से अस्पताल परिसर में प्रवेश कर जाते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि रात के समय अस्पताल परिसर में अंधेरा रहता है क्योंकि बिजली से जलने वाला लाइट जो आजकल जलती ही नहीं है जिसके कारण रात में भी अस्पताल परिसर में अंधेरा रहता है. सोलर सिस्टम भी लंबे समय से खराब पड़ा हुआ है और मुख्य गेट का बल्ब महीनों से नहीं जला.
डॉक्टर हफ्ते में सिर्फ दो दिन आते हैं, मरीज हर दिन मरीज आते हैं
ग्रामीणों और अस्पताल कर्मियों के अनुसार, अस्पताल के प्रभारी डॉक्टर सप्ताह में केवल दो दिन उप स्वास्थ्य केंद्र में आते हैं.बाकी दिनों में उनसे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में काम लिया जाता है. जबकि, जराईकेला उप स्वास्थ्य केंद्र में प्रतिदिन औसतन 15 से 25 मरीज इलाज के लिए आते हैं.
अस्पताल फिलहाल कुछ एएनएम (ANM) और कुछ एमपीडब्ल्यू (MPW) के भरोसे चल रहा है. दोनों कर्मचारी अपनी ड्यूटी पूरी निष्ठा से निभाने की कोशिश करते हैं, परंतु बुनियादी सुविधाओं के अभाव में वे भी असहाय महसूस करते हैं.
उपस्थिति दर्ज कराने में भी होती है परेशानी
अस्पताल कर्मियों का कहना है कि हर महीने उपस्थिति दर्ज कराने और वेतन से जुड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. प्रभारी चिकित्सक के माध्यम से हस्ताक्षर करवाने में देरी होती है, जिससे कई बार स्पष्टीकरण पत्र और वेतन कटौती जैसी समस्याएं सामने आती हैं. यह स्थिति लंबे समय से बनी हुई है, लेकिन विभागीय अधिकारी अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठा पाए हैं.
लेबर रूम में नहीं आता पानी, मोमबत्ती की रोशनी में प्रसव
जराईकेला उप स्वास्थ्य केंद्र की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि लेबर रूम में पानी की सुविधा तक नहीं है. अस्पताल में मौजूद सिंटेक्स टैंक खराब पड़ा हुआ है. हर बार एएनएम को मरीजों की देखभाल के लिए बाहर से पानी लाना पड़ता है. रात्रि के समय बिजली न रहने के कारण गर्भवती महिलाओं का प्रसव मोमबत्ती की रोशनी में कराया जाता है.
अस्पताल में तैनात स्वास्थ्यकर्मियों ने बताया कि उन्होंने कई बार विभाग को लिखित आवेदन देकर पानी की समस्या और सोलर सिस्टम के सुधार की मांग की, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
अस्पताल परिसर में सांपों का प्रवेश, सुरक्षा पर संकट
अस्पताल के जर्जर हालत के कारण कई बार परिसर में सांपों के प्रवेश की घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं. स्टाफ का कहना है कि रात में ड्यूटी पर रहना बेहद जोखिम भरा है, खासकर महिला कर्मियों के लिए. टूटा हुआ गेट, झाड़ियों का फैलाव और अंधेरा माहौल सुरक्षा की दृष्टि से गंभीर खतरा बन गया है.
दवाइयों का टोटा, मरीजों को निजी क्लीनिकों का सहारा
ग्रामीणों ने बताया कि अस्पताल में दवाइयों की भारी कमी है. सामान्य बुखार, खांसी-जुकाम, ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों के लिए भी आवश्यक दवाइयां उपलब्ध नहीं रहतीं. मजबूरन मरीजों को मनोहरपुर या चाईबासा के निजी क्लीनिकों का रुख करना पड़ता है. गरीब वर्ग के लोगों के लिए यह स्थिति अत्यंत कष्टदायक है क्योंकि उन्हें इलाज के लिए अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ता है.
*ग्रामीणों की मांग — अस्पताल में स्थायी डॉक्टर की नियुक्ति हो*
मकरंडा पंचायत के ग्रामीणों ने कहा कि जराईकेला उप स्वास्थ्य केंद्र पूरे दीघा पंचायत, मकरंडा पंचायत, लाईलोर पंचायत एवं कोलपोटका पंचायत के कुछ गांव का एकमात्र सरकारी अस्पताल है. यदि यहां एक स्थायी डॉक्टर की नियमित तैनाती हो जाए तो न केवल मरीजों को राहत मिलेगी, बल्कि आसपास के गांवों के लोग भी यहां से स्वास्थ्य सुविधा प्राप्त कर सकेंगे. ग्रामीणों ने विभाग से यह भी आग्रह किया है कि अस्पताल भवन की मरम्मत, सोलर सिस्टम की बहाली, लेबर रूम में पानी की आपूर्ति और दवाइयों की नियमित उपलब्धता सुनिश्चित की जाए.
*वास्तविकता में सरकारी दावे बन रहे खोखले*
राज्य सरकार द्वारा ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं को सशक्त बनाने के लिए हर वर्ष करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं, परंतु जराईकेला उप स्वास्थ्य केंद्र जैसी स्थिति यह दिखाती है कि जमीनी स्तर पर योजनाएं केवल कागजों में सीमित रह गई हैं. अस्पताल की दुर्दशा न केवल स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलती है, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही की ओर भी स्पष्ट संकेत देती है.
जराईकेला उप स्वास्थ्य केंद्र आज सिर्फ एक प्रतीक बनकर रह गया है — सरकारी योजनाओं की नाकामी का, ग्रामीणों की उपेक्षा का और उस संवेदना की कमी का जो स्वास्थ्य व्यवस्था का मूल आधार होना चाहिए था. ग्रामीण अब भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि विभाग जल्द उनकी आवाज सुनेगा और इस अस्पताल को फिर से जीवंत बनाएगा.
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